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________________ गीता दर्शन भाग-20 अनेक मित्र खबर ले आते हैं कि कहीं मेरा संप्रदाय तो नहीं बन जाएगा! कहीं ऐसा तो नहीं हो जाएगा! कहीं कोई मत, पंथ तो नहीं बन जाएगा! मत, पंथ ऐसे ही बहुत हैं। नए मत, पंथ की कोई जरूरत नहीं है। बीमारियां ऐसे ही काफी हैं; और एक बीमारी जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए आपसे कहता हूं, यह कोई संप्रदाय नहीं है। संप्रदाय बनता ही किसी के खिलाफ है। संप्रदाय बनता ही किसी के खिलाफ है। ये संन्यासी किसी के खिलाफ नहीं हैं। ये सब धर्मों के भीतर जो सारभूत है, उसके पक्ष में हैं। परसों तो एक मुसलमान महिला ने संन्यास लिया है। उसके छः दिन पहले एक ईसाई युवक संन्यास लेकर गया है। ये जाएंगे अपने चर्चों में, अपनी मस्जिदों में, अपने मंदिरों में। इसमें जैन हैं, हिंदू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं। उनसे कुछ उनका छीनना नहीं है। उनके पास जो है, उसे ही शुद्धतम उनसे कह देना है। अभी गीता पर बोल रहा हूं, अगले वर्ष कुरान पर बोलूंगा, फिर बाइबिल पर बोलूंगा; ताकि जो-जो शुद्ध वहां है, वह पूरी की पूरी बात मैं आपको कह दूं। जिसे जहां से लेना हो, वहां से ले ले। जिसे जिस कुएं से पीना हो, पानी पी ले। क्योंकि पानी एक ही सागर का है। कुएं का मोह भर न करे; इतना भर न कहे कि मेरे कुएं में ही पानी है, और किसी के कुएं में पानी नहीं है। फिर कोई | संप्रदाय नहीं बनता, कोई मत नहीं बनता, कोई पंथ नहीं बनता। सोचें। और स्फुरणा लगती हो, तो संन्यास में कदम रखें; जहां हैं, वहीं। कुछ आपसे छीनता नहीं। आपके भीतर के व्यर्थ को ही तोड़ना है; सार्थक को वहीं रहने देना है। फिर गीता पर सुबह बात करेंगे। अब संन्यासी उनके नृत्य में जाएंगे-कीर्तन में तो थोड़ी यहां जगह बना लें। जिनको देखना हो, देखें; सम्मिलित होना हो, सम्मिलित हो जाएं, लेकिन थोड़ी जगह ज्यादा बना लें। 156
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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