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________________ संन्यास की नई अवधारणा लेकिन कृष्ण इन सेवकों की बात नहीं कर रहे हैं। कृष्ण कह रहे - बुद्धि तो सदा ही कहेगी, कर्म किया मैंने, तो फल मिले मुझे। हैं, ईश्वर-अर्पण पहले। हां, जिस दिन किसी को चारों ओर ईश्वर बुद्धि का गणित साफ है। ठीक भी है। कर्म किया मैंने, फल मिले ही ईश्वर दिखाई पड़ने लगे, फिर वह आपकी सेवा नहीं कर रहा | मुझे। है, वह परमात्मा की ही सेवा कर रहा है। फिर वह धन्यवाद मांगता | कृष्ण बड़ी अबौद्धिक बात कहते हैं, कर्म करो तुम, फल दे दो नहीं, धन्यवाद देता है कि आपने सेवा करने दी, अनुगृहीत हूं। प्रभु को! तो बुद्धि कहेगी, कर्म भी कर ले प्रभु, फल भी ले ले वही। अनुग्रह है आपका कि सेवा करने दी; क्योंकि मेरी प्रार्थना, मेरी हमें क्यों फंसाता? हमारा क्या लेना-देना है? हम तो कर्म करेंगे, साधना, मेरी आराधना पूरी हो सकी। तो फल भी लेंगे हम। गणित सीधा और साफ है। ठीक दुकान और परमात्मा सब ओर दिखाई पड़ने लगे, तो सेवा प्रभु-अर्पित हो | बाजार का गणित है! सकती है। या भीतर अहंकार बिलकुल न रह जाए, तो सेवा कर्म करेंगे हम, तो फल वह कैसे लेगा? यह तो अन्याय है, प्रभु-अर्पित हो सकती है। सरासर अन्याय है। और अगर कहीं कोई अदालत हो विश्व के प्रभु-अर्पण की कीमिया योगाग्नि से कम कठिन नहीं, ज्यादा ही | | नियंता की, तो वहां हम सबको फरियाद करनी चाहिए कि कर्म करें कठिन है। योगाग्नि तो टेक्निकल है, उसका तो तकनीक है। | हम, फल लो तुम! फल दें तुम्हें और कर्म करें हम? यह तो सरासर तकनीक अगर पूरा किया जाए, तो योगाग्नि पैदा होगी ही। लेकिन | लूट है! प्रभु-अर्पण टेक्निकल नहीं है। प्रभु-अर्पण बड़े भाव की उदभावना नहीं, बुद्धि के लिए यह गणित काम नहीं करेगा। इसलिए बुद्धि है; बड़े भाव का जन्म है। टेक्नोलाजी से उसका संबंध नहीं है, की समझ कभी भी इस स्थिति में नहीं पहुंच पाती कि कर्म मेरा, टेक्नीक से उसका संबंध नहीं है। टेक्नीक के लिए तो कठिन से | | फल तेरा। सिर्फ हृदय की समझ पहुंच पाती है। कठिन चीज सरल हो सकती है। क्योंकि टेक्नीक विकसित किया | लेकिन हृदय की समझ का क्या मतलब होता है ? समझ तो सब जा सकता है। लेकिन भाव-अर्पण के लिए कोई टेक्नीक विकसित | | बुद्धि की है हमारे पास। हृदय की हमारे पास कोई समझ नहीं है। नहीं हो सकता। उसके लिए तो समझ चाहिए। | हृदय की समझ का मतलब यह है कि श्वास मुझे मिलती है, तो और ध्यान रहे, नासमझ आदमी भी टेक्नीशियन हो सकता है। परमात्मा से; प्राण मुझे मिलता है, तो परमात्मा से। जन्म मुझे अगर योगाग्नि की कला पूरी कोई सीख ले, तो कोई भी जो कला मिलता है, तो परमात्मा से; जीने का क्षण मुझे मिलता है, तो पूरी सीख गया है, योगाग्नि पैदा कर सकता है। कितनी ही कठिन परमात्मा से। अगर मैं न जीता होता, तो कोई भी तो उपाय नहीं था हो, फिर भी बहुत कठिन नहीं है। लेकिन भाव-समाधि, कि मैं किसी से भी कह सकता कि मैं जीता क्यों नहीं हूं? अगर मैं ईश्वर-अर्पण बड़ी अंडरस्टैंडिंग, बड़ी गहरी समझ की बात है। | अस्तित्व में न होता, तो शिकायत करने की भी तो कोई जगह न थी और गहरी समझ की अर्थात एक तो वह समझ है, जो बुद्धि से | | कि मैं अस्तित्व में क्यों नहीं हूं? और अगर आज मैं अस्तित्व में हूं, आती है; वह बहुत गहरी नहीं होती है। एक और समझ है, जो हृदय तो मैं यह भी तो नहीं जानता कि मैं अस्तित्व में क्यों हूं? से आती है। ___ जब अस्तित्व के दोनों ही छोर अज्ञात हैं, तो तर्क से उन्हें नहीं ईश्वर-अर्पण बद्धि से कभी भी नहीं हो सकता, यह भी खयाल खोला जा सकता, क्योंकि तर्क सिर्फ ज्ञात को खोल सकता है। श्वर-अर्पण बद्धि से कभी नहीं हो सकता। क्योंकि अज्ञात तर्क के लिए बिलकल बेमानी है। अज्ञात में तो हृदय ही बुद्धि कभी भी अहंकार के पार नहीं जाती है। बुद्धि सदा कहती है, टटोलता है। अज्ञात में तो टटोला ही जा सकता है। मैं। कभी-कभी हृदय कहता है, तू। बुद्धि तो सदा कहती है, मैं। । न मुझे पता है कि मैं कहां से आता, न मुझे पता है कि मैं कहां इसलिए जब भी आप प्रेम में होते हैं, तब बुद्धि को छुट्टी दे देनी जाता। न मुझे पता है कि मैं क्यों हूं, न मुझे पता है कि अगली सांस पड़ती है। क्योंकि तू कहने का क्षण आ गया। अब हृदय से कहना आएगी कि नहीं आएगी। जहां इतना सब अज्ञात है, जहां सारा का पड़ा। इसलिए बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी प्रेम के क्षणों में सारा मेरा होना ही अज्ञात शक्तियों पर निर्भर है, वहां मेरा किया बुद्धिमान नहीं होता; बालक जैसा हो जाता है; छोटे बच्चे जैसा हो हुआ कर्म, पागलपन की बात है। जब मैं ही अज्ञात शक्तियों का जाता है। | किया हुआ कर्म हूं, तो मेरा कर्म भी अज्ञात शक्तियों का किया हुआ 149
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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