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गीता दर्शन भाग-2
फल है, वह ईश्वर को अर्पित; जो भी कर्म है, वह मेरा; जो भी | आप। गर्भ में थी बात। कुछ पता न था। दिया छाता उठाकर। अगर प्रतिफल है, वह प्रभु का-ऐसी दृष्टि हो, तो इस मार्ग से भी | | उसने धन्यवाद दे दिया, तो भी पता नहीं चलेगा। प्रसन्न होकर अपने परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है।
रास्ते पर चले जाएंगे। लेकिन अगर वह धन्यवाद न दे; चुपचाप सरल दिखती है बात। योगाग्नि की बात तो बहुत कठिन दिखती | | छाता बगल में ले और ऐसा चल पड़े, जैसे आप थे ही नहीं; तब है। लेकिन आपसे मैं कहूं, योगाग्नि की बात सरल है; यह | | आपको अखरेगा। तब आपको पता चलेगा कि कहीं कोई गहरे में, ईश्वर-अर्पण की बात कठिन है।
अचेतन में कोई आकांक्षा थी; उसी आकांक्षा ने छाता उठवाया, जो सरल दिखाई पड़ता है, वह सरल होता है, ऐसा जरूरी नहीं | अन्यथा सवाल क्या था। है। जो कठिन दिखाई पड़ती है बात, वह कठिन होती है, ऐसा ___ मां जब बेटे को जन्म देती है, तो इसलिए नहीं देती कि बुढ़ापे में जरूरी नहीं है। अक्सर धोखा होता है।
उससे सेवा लेगी। नहीं; कहीं इसका कोई पता नहीं होता। जब असल में जो सरल दिखाई पड़ती है, उसके सरल दिखाई पड़ने | | रात-रातभर जागती; बीमारी में, अस्वास्थ्य में, पीड़ा में महीनों सेवा में ही खतरा है। सरल हो नहीं सकती। सरल दिखाई पड़ती है। करती: वर्षों तक बेटे को बड़ा करती. तब उसे कभी खयाल नहीं
लगता है, ठीक; यह बिलकुल ठीक। सेवा करेंगे, होता। लेकिन एक दिन बेटा बहू को लेकर घर आ जाता है और ईश्वर-अर्पित कर देंगे। लेकिन ईश्वर-अर्पण, अहंकार का | | अचानक मां देखती है कि उस बेटे की आंख अब मां को देखती ही जरा-सा रेशा भी भीतर हो, तो नहीं हो सकता। रेशा मात्र भी | नहीं है। तब उसे अचानक खयाल आता है कि क्या मैंने इसलिए अहंकार का भीतर हो, तो ईश्वर-अर्पण भाव नहीं हो सकता। जब | | तुझे नौ महीने पेट में रखा था? क्या इसलिए मैं रात-रातभर जागी तक मैं हूं-जरा-सा भी, रंच मात्र भी-तब तक परमात्मा के लिए | थी? क्या इसलिए मैंने तुझे इतना बड़ा किया? पाला-पोसा, तेरे अर्पित नहीं हो सकता हूं।
लिए चक्की पीसी, गिट्टियां फोड़ी-इसलिए? जब देखेंगे इसको गौर से, तो पाएंगे ईश्वर-अर्पण अति कठिन __बेटा तो पैदा हो गया बहुत वर्ष पहले, लेकिन अहंकार अब तक है। करने में मैं प्रवेश कर जाता है। किया नहीं, कि उसके पहले ही | | प्रेगनेंट था। अब तक भीतर छिपा था। गर्भ में बैठा था। मौका पाकर मैं खड़ा हो जाता है। रास्ते पर जा रहे हैं, पता भी नहीं होता, किसी | बाहर निकला। उसने कहा, इसलिए! मां के भीतर अहंकार है; यह का छाता गिर गया है हाथ से। आप उठाकर दे देते हैं; तब पता भी | बहू के आने तक उसे प्रतीक्षा करनी पड़ती है। बहू के आने पर पैदा नहीं होता है कि कहीं कोई अहंकार है, कि सेवा कर रहा हूं, कुछ | | होता है। चोट पड़ती है। रहा भीतर, अन्यथा आ नहीं जाएगा। पता नहीं होता। स्पांटेनियस, सहज किसी का छाता गिरा, आपने सेवक तो बहुत हैं दुनिया में; कृष्ण उनकी बात नहीं कर रहे हैं। उठाया। लेकिन वह आदमी छाता बगल में दबाए, आपको | | सेवक जरूरत से ज्यादा हैं! हमेशा हाथ जोड़े खड़े रहते हैं कि सेवा बिलकुल न देखे और अपने रास्ते पर चला गया। तब फौरन पता का कोई अवसर। लेकिन जरा सोच-समझकर सेवा का अवसर चलता है कि अरे! इस आदमी ने धन्यवाद भी न कहा। माना कि | | देना। क्योंकि जो आदमी पैर पकड़ता है, वह सिर्फ गर्दन पकड़ने पहले से धन्यवाद की कोई आकांक्षा न थी; सोचा भी न था। लेकिन | | की शुरुआत है। जब भी कोई कहे, सेवा के लिए तैयार हूं, तब रही होगी जरूरत गहरे में कहीं, अन्यथा पीछे कहां से आ जाएगी? | | कहना, इतनी ही कृपा करो कि सेवा मत करो। क्योंकि पैर तुम
जो बीज में नहीं है, वह वृक्ष में आ नहीं सकता। जो पहले से | | पकड़ोगे, फिर गर्दन हम कैसे छुड़ाएंगे? और अगर आपने पैर नहीं है, वह पीछे प्रकट नहीं हो सकता। जो गर्भ में नहीं है, उसका पकड़ने दिया और गर्दन न पकड़ने दी, तो वह आदमी कहेगा, मैंने जन्म नहीं हो सकता। हां, गर्भ में दिखाई नहीं पड़ता। जन्म होता है, | | नौ महीने तक तुम्हारे पैर इसलिए पकड़े? रात-रातभर जागा और तो दिखाई पड़ता है। मां अगर गर्भवती नहीं है, तो जन्म नहीं दे | इसलिए सेवा की कि गर्दन न पकड़ने दोगे? सकती है। प्रेगनेंट होना चाहिए! जो भी प्रकट होता है, वह पहले | | सब सेवक खतरनाक सिद्ध होते हैं। क्योंकि सब सेवा प्रेगनेंट है: पहले, पीछे गर्भ में होना चाहिए।
अहंकार-अर्पित हो जाती है। बहुत मिसचीवियस सिद्ध होती है। दिया था छाता उठाकर, तब जरा भी तो खयाल नहीं था कि मैं | बहुत उपद्रवी सिद्ध होती है। जिस मुल्क में जितने ज्यादा सेवक हैं, धन्यवाद मांगंगा, कि चाहंगा; जरा भी खयाल नहीं था। प्रेगनेंट थे उस मल्क का भगवान के सिवाय और कोई बचाने वाला नहीं है।
हिए
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