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संन्यास की नई अवधारणा
योगाग्नि का अर्थ है, शरीर के भीतर ही अग्नि को पैदा किया जा | आपरेशन किया जा सकता है। वे परमाणु अगर काट दिए जाएं, तो सकता है। यह योगाग्नि दो प्रकार की हो सकती है। एक ऐसी, जैसा आदमी को फिर सुगंध नहीं आएगी। अगर वे परमाणु बहुत ज्यादा मैंने इस उदाहरण में आपको कहा, दो महीने पहले घटी एक गुरुद्वारे | किसी एक ही गंध में रखे जाएं, तो धीरे-धीरे इम्यून हो जाते हैं और की यह घटना। एक साधु ने अपने को योगाग्नि से जला लिया। | उस गंध को पकड़ने में असमर्थ हो जाते हैं। सब राख हो गया। भीतर से आग बाहर की तरफ आई। पहले ___ इसलिए अगर एक आदमी पाखाना ढोता रहता है जिंदगीभर, तो उसके भीतर के अंग जले हैं, फिर बाहर के अंग जले हैं। भीतर सब | | उसे पाखाने में गंध आनी बंद हो जाती है। इसलिए बंद हो जाती है राख हो गया; बाहर बहुत कुछ बच भी गया। अग्नि भीतर से बाहर कि उसके नासापुट के जो अणु गंध को पकड़ते हैं, वे मृत हो जाते की तरफ आई है। मेडिकल साइंस की पकड़ के बाहर है; जिन हैं; बार-बार एक ही आघात से वे समाप्त हो जाते हैं। अगर आप चिकित्सकों ने रिपोर्ट दी है, वे भी चकित और अवाक हैं। उनके नई साबुन खरीदकर लाते हैं, तो पहले दिन गंध आती है; दूसरे दिन पास कोई एक्सप्लेनेशन, कोई व्याख्या नहीं है। क्या हुआ? | कम, तीसरे दिन कम, चौथे दिन विदा हो जाती है। शायद आप
शरीर के भीतर भी घर्षण पैदा करने की यौगिक प्रक्रियाएं हैं। इस | सोचते होंगे कि साबुन के ऊपर ही गंध थी, तो आप गलती में हैं। घर्षण से दो काम लिए जा सकते हैं। अनेक बार योगी अपने शरीर तीन-चार दिन में आप इम्यून हो जाते हैं। आपको फिर गंध का पता को इस घर्षण से उत्पन्न अग्नि में ही समाहित करते हैं। यह एक नहीं चलता। उपयोग है। यह मृत्यु के समय उपयोग में लाया जा सकता है। ये जो सूक्ष्म परमाणु हैं, ये योगाग्नि से जलाए जा सकते हैं। ये
एक दूसरा उपयोग है, जिसका कृष्ण प्रयोग कर रहे हैं। योगाग्नि | | भीतर ही जलकर राख हो जाते हैं; इनका फिर पता ही नहीं चलता। में अपनी इंद्रियों को समाहित, अपनी इंद्रियों को समर्पित कर देते | ये समर्पित किए जा सकते हैं। ये अतिसूक्ष्म हैं। इनके लिए हैं। वह दूसरा उपयोग है; वह जीते-जी किया जा सकता है। उसमें । | अतिसूक्ष्म घर्षण की जरूरत है। उसकी प्रक्रियाएं हैं; उसके अपने
और भी सूक्ष्म अग्नि पैदा करने की बात है। वह अग्नि भी भीतर । | यौगिक मेथड्स और विधियां हैं कि ये सूक्ष्म परमाणु कैसे क्षीण हो पैदा हो जाती है। उस अग्नि से शरीर नहीं जलता, लेकिन शरीर के | | जाएं, विदा हो जाएं। लेकिन इनको विदा करने के पहले की रस जल जाते हैं। उस अग्नि से शरीर नहीं जलता, लेकिन इंद्रियों अनिवार्य शर्त पूरी होनी जरूरी है, अन्यथा योगाग्नि पैदा नहीं होती। के रस और आकांक्षाएं जल जाती हैं। उससे शरीर नहीं जलता, __ वह पहले सूत्रों में कृष्ण ने कहा है, आसक्तिरहित, इंद्रियों के लेकिन इंद्रियों के जो सूक्ष्म तंतु हैं, वे जल जाते हैं।
रस से मुक्त, संयमी, इंद्रियों और विषयों के बीच जिसने सेतु को ___ इंद्रियों के सूक्ष्म तंतु हैं, इससे वैज्ञानिक भी राजी हैं। और अगर | तोड़ा-ऐसे व्यक्ति की चर्चा पहले सूत्रों में की गई है। उसके बाद इंद्रियों के सूक्ष्म तंतु अलग कर लिए जाएं, तो इंद्रियां व्यर्थ हो जाती | योगाग्नि की बात कही जा रही है। ऐसा व्यक्ति योगाग्नि पैदा कर हैं; इसके लिए भी वैज्ञानिक राजी हैं।
सकता है; और भीतर से ही, बिना किसी बाह्य सहायता के उन सारे __ जैसे आप जब सुगंध ले रहे हैं, तो शायद आपको तो खयाल सूक्ष्म अणुओं को समर्पित कर देता है उस अग्नि में, जिनके कारण नहीं, खयाल का कोई कारण भी नहीं, कि आपकी नाक के इंद्रियां आंतरिक सक्रियता लेती हैं। नासापुटों में बहुत सूक्ष्म, सुगंध को पकड़ने वाले, सुगंध की तरंगों ___ अभी इस पर बहुत केमिकल खोज भी चलती है। और आधुनिक को पकड़ने वाले कण हैं।
बायो-केमिस्ट्री, जीव-रसायन इस पर बड़े काम करती है। क्यों? जब आप सर्दी-जुकाम में होते हैं, आपको सुगंध नहीं आती। क्योंकि बहुत-सी बातें पकड़ में आनी शुरू हुई हैं। जैसे यह पकड़ क्यों? आपके पास नाक पूरी की पूरी है; नासापुट पूरे हैं; सुगंध में आना शुरू हुआ कि एक खास प्रकार का रासायनिक द्रव्य कहां खो गई? सुगंध इसलिए नहीं आती कि जब आप सर्दी में होते | अगर शरीर में न हो, तो आदमी क्रोध नहीं कर सकता। एड्रिनल, हैं. तो आपकी नाक के भीतर के सब रेशे सजन से भर जाते हैं। अगर इस तत्व को, जो कि बहुत थोड़ी-सी मात्रा में शरीर में और वे जो छोटे-छोटे परमाणु पकड़ते हैं गंध को, वे दब जाते हैं| किन्हीं-किन्हीं ग्रंथियों के भीतर छिपा है, अगर उसे अलग कर दिया और पकड़ने में असमर्थ हो जाते हैं। बलगम के नीचे वे परमाणु दब । | जाए, तो आदमी क्रोध नहीं कर सकता। जाते हैं और सुगंध को पकड़ने में असमर्थ हो जाते हैं। उनका | पावलव ने बहुत-से कुत्तों के एड्रिनल ग्लैंड्स को काट डाला।
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