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गीता दर्शन भाग-2
सकतीं। बाहर की अग्नि में तो फूल ही चढ़ाए जा सकते हैं, गंध की आकांक्षा कैसे चढ़ाई जा सकती है ! बाहर की अग्नि में तो आकृत वस्तुएं ही चढ़ाई जा सकती हैं, आकार देने वाली दृष्टि कैसे चढ़ाई जा सकती है ! बाहर की अग्नि तो दृष्टि को छू भी न पाएगी। स्वभावतः, अगर इंद्रियां चढ़ानी हैं, तो योगाग्नि में, योग से उत्पन्न हुई अग्नि में।
योग से उत्पन्न हुई अग्नि क्या है? इसे थोड़ा समझना पड़ेगा। यह थोड़ी आकल्ट साइंस की बात है। योग से उत्पन्न अग्नि क्या है? तो पहले तो यह समझें कि अग्नि क्या है। अग्नि दो वस्तुओं के भीतर छिपी हुई विद्युत का संघर्षण है। प्रत्येक वस्तु के भीतर विद्युत छिपी है। शायद यह कहना भी ठीक नहीं है। यही कहना ठीक है । कि प्रत्येक वस्तु विद्युत कणों के जोड़ का ही नाम है। विज्ञान भी यही कहेगा; फिजिसिस्ट, भौतिकविद भी यही कहेंगे। प्रत्येक वस्तु इलेक्ट्रांस का जोड़ है, विद्युत कणों का जोड़ है। जो वस्तुएं आपको दिखाई पड़ रही हैं चारों तरफ, वे भी वस्तुएं नहीं हैं; विद्युत ऊर्जा, इलेक्ट्रिक एनर्जी ही हैं।
प्रत्येक वस्तु को हम तोड़ें, एक मिट्टी के टुकड़े को हम तोड़ें तोड़ें और अगर आखिरी परमाणुओं पर पहुंचें, तो फिर विद्युत कण ही हाथ लगते हैं, पदार्थ खो जाता है। एनर्जी ही हाथ लगती है; ऊर्जा, शक्ति ही हाथ लगती है; पदार्थ खो जाता है।
अतिसूक्ष्म ! अतिसूक्ष्म कहना भी ठीक नहीं, सूक्ष्म से भी पार । विद्युत के कणों, कण कहना भी ठीक नहीं। क्योंकि विद्युत का कण नहीं होता। कण तो पदार्थ के होते हैं। विद्युत की तो लहर होती है, वेव होती है, तरंग होती है। शक्ति में कण नहीं होते, शक्ति में तरंगें होती हैं। अभी हिंदी में कोई शब्द ठीक नहीं है। लेकिन अंग्रेजी में एक जर्मन शब्द उपयोग होता है, क्वांटा। क्वांटा का मतलब है, कण भी, तरंग भी। कण इस खयाल से कि पदार्थ का आखिरी हिस्सा है; तरंग इस खयाल से कि वह आखिरी हिस्सा पदार्थ नहीं है, विद्युत है।
तो क्वांटा से बना हुआ है सारा जगत। बाहर-भीतर, सब तरफ क्वांटा से बना हुआ है। ये जो विद्युत कण, लहरें, तरंगें प्रत्येक पदार्थ को निर्मित की हैं, अगर इनका घर्षण किया जाए, तो अग्नि उत्पन्न होती है ! अग्नि, विद्युत के बीच हुए घर्षण का परिणाम है।
अगर आप अपने दोनों हाथ भी घिसें, तो भी दोनों हाथ गर्म हो जाते हैं; अग्नि पैदा होनी शुरू हो जाती है। अगर आप तेजी से दौड़ें, तो पसीना आना शुरू हो जाता है; क्योंकि हवा और आपके
बीच घर्षण हो जाता है। घर्षण से शरीर उत्तप्त हो जाता है। जब आपको बुखार चढ़ आता है, तब भी आपका शरीर उत्तप्त हो जाता है, क्योंकि शरीर के भीतर, बाहर से आए हुए बीमारी के कीटाणुओं में और आपके शरीर के रक्षक कीटाणुओं में घर्षण शुरू हो जाता है, संघर्ष । उस घर्षण के परिणाम में फीवर, बुखार पैदा हो जाता है। बुखार कोई बीमारी नहीं है, केवल बीमारी की सूचना है कि शरीर के भीतर गहरा संघर्ष छिड़ा हुआ है। इसलिए शरीर उत्तप्त हो जाता है।
शरीर एक विशेष उत्ताप में रहे, तो ही हम जीवित रह सकते हैं। अगर यहां अट्ठानबे डिग्री से दो-चार डिग्री नीचे गिर जाए, तो प्राण संकट में पड़ जाते हैं। वहां एक सौ दस डिग्री के आगे प्राण तिरोहित
हो
जाते हैं । दस-पंद्रह डिग्री का जीवन है! बस, दस-पंद्रह डिग्री के बीच में उत्ताप हो, तो हम जीवित रहते हैं। नीचे हो जाए, तो सब | ठंडा हो जाए; ऊपर हो जाए, तो सब इतना गर्म हो जाए कि जीवन | न बच सके न इस ठंडक में, न उस गर्मी में। ऐसा पंद्रह डिग्री के बीच हमारा जीवन है।
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पूरे समय शरीर जो है, वह थर्मोस्टैट का काम करता है। पूरे समय शरीर भीतरी व्यवस्था से शरीर की गर्मी को समान रखने की कोशिश करता है, शरीर की अग्नि को समान रखने की कोशिश करता है।
इस अग्नि को हम बाहर आग लगाकर किसी आदमी को बिठा दें, तो वह जल जाए। बाहर हमने क्या किया ? बाहर भी घर्षण से अग्नि पैदा होती है। जब आप दियासलाई को रगड़ रहे हैं, तब भी | आपने दियासलाई और हाथ की काड़ी में बहुत शीघ्रता से घर्षण को उपलब्ध होने वाले पदार्थ लगा रखे हैं, जो जल्दी से घर्षण में आग पकड़ लेते हैं। फिर आपने आग लगा दी, चिता जल गई। अब आदमी को उसमें रख दिया, वह जल जाएगा।
अभी-अभी ठीक दो महीने पहले यू.पी. के एक छोटे से गांव में एक सिक्ख साधु ने योगाग्नि से अपने को जलाया है। किसी तरह की अग्नि का उपयोग नहीं किया; आंख बंद करके बैठ गया और आग की लपटें उससे निकलनी शुरू हुईं, सब जल गया। फिर डाक्टरों ने सर्टिफिकेट भी पीछे दिया है कि किसी तरह के पेट्रोल, | किसी तरह की आग के किसी उपकरण का कोई उपयोग नहीं किया गया है । अग्नि अनजाने स्रोत से - डाक्टर्स ने जो लिखा | है – अनजाने स्रोत से भीतर से ही पैदा हुई है; बाहर से कोई अग्नि का लक्षण नहीं है। वह राख हो गया आदमी जलकर ।