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मोह का टूटना ... 213
ज्ञान का पहला आघात मोह पर / गहनतम मोह-जीवेषणा / जीने का मोह / आत्महत्या भी-जीवन के अति मोह के कारण / धन पर पकड़ / मोहम्मद का अपूर्व अपरिग्रह / रोज सांझ सब बांट देना / परमात्मा पर भरोसा / जहां परिग्रह है, मोह है-वहां भय होगा/ केवल अमोही ही अभय को उपलब्ध / मोह का अनंत फैलाव / अज्ञान से निकलता मोह / मोह दुख में ले जाता / 'मैं' का भ्रम / 'मैं' के रहते प्रेम संभव नहीं / जहां मोह है-वहां प्रेम नहीं है / जहां 'मैं' नहीं-वहां अभेद / सब परमात्मा है-इसका क्या अर्थ है? / हमारी प्रतीति–कि सब पदार्थ है / परमात्मा, हमारी एक मान्यता-मात्र है / जितना ज्ञान भीतर का-उतना ही ज्ञान बाहर का / जगत दर्पण है / पहले स्वयं के भीतर चैतन्य का बोध / मोह का सम्मोहन हमें शरीर बनाए हुए है / जैसी धारणा, वैसा ही बन जाना / सम्मोहन में सुझावों के परिणाम / मोह की रातः चैतन्य की सुबह / परमात्म-अनुभव को सत-चित-आनंद क्यों कहा जाता है? / 'मैं' का गिरना—'हूं' का बचना / इज़नेस, एमनेस-है पन, होना / सत अर्थात सनातन है-पन / चित अर्थात अस्तित्व सचेतन है | चेतना के हजार-हजार तल हैं / दुख अर्थात 'मैं' पर लगी चोट / 'मैं' एक घाव है / सत+चित = आनंद / प्रेम है-चैतन्य का चैतन्य से स्पर्श / आनंद द्वैत का अंत है / भाषा में तीनः अनुभव में एक / जन्मों-जन्मों के पापों का ज्ञान की एक किरण से टूट जाना / अनंत पापों को काटने के लिए अनंत पुण्यों की जरूरत / तब तो मुक्ति असंभव है / जीने में ही पाप हो जाएगा / नैतिक-दृष्टि का दुष्ट-चक्र / पाप अंधेरे की तरह है / दीया जला-कि अंधेरा गया / अंधेरे की कोई सघनता नहीं होती / अतीत स्वप्न की तरह विलीन हो जाता है / ईसाइयत पर पाप की धारणा का बोझ भारी है । भारतीय-चिंतन-नीति-अतीत।
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ज्ञान पवित्र करता है ... 227
ज्ञानरूपी अग्नि समस्त कर्मों को कैसे भस्म कर देती है? / कर्म है-भाव, विचार / कर्म का जन्मदाता है-अज्ञान / ज्ञान नष्ट करता-अज्ञान को / अज्ञान नष्ट हुआ-कि कर्म-बंधन नष्ट हुए / प्रकाश आया-कि अंधेरा मिटा-कि भय गया / कर्ताभाव-अज्ञानजनित / कर्ता और अहंकार-ज्ञान में नहीं टिकते / कर्म आते, जाते-ज्ञानी पर कोई निशान नहीं बनता / अज्ञानी का मन-फोटो प्लेट की तरह / ज्ञानी हो जाता-दर्पण की भांति / कर्ता एक भ्रम है / जब तक कर्ता-तब तक वासना का बंधन / अज्ञान है विस्मरण सत्य का / ज्ञान है स्मरण सत्य का / कर्ता की मृत्यु | ज्ञान पवित्र करता है / वासना अपवित्रता है / वासना दुख है / वासना अंधा करती है / अनंत संपदा भीतर है / वासना भिखमंगा बना देती है / ज्ञान परम तृप्ति लाता / ज्ञान परम शिखर है / बुद्ध, महावीर, जीसस, मंसूर की पवित्रता / स्वयं को जाना-तो सब जाना / उधार ज्ञान का खतरा / भारत को ब्रह्मचर्चा महंगी पड़ी / आत्म-ज्ञान की लंबी यात्रा / आत्मा अनुभव है / आत्मा यानी परमात्मा / बूंद सागर है / 'योग संसिद्धि' के अनुवाद 'समत्व बुद्धि योग' का क्या अर्थ है? / व्यक्ति का समष्टि से मिलन / तब समत्व उपलब्ध / सतत डोलता मन / मध्य है द्वार-आत्मा में प्रवेश का / अति-अशुद्धि है / समत्व सिद्धि है।