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मृत्यु का साक्षात
वासनारहित, अहंकारशून्य जीवन यज्ञ बन जाता है / मृत्यु की प्रतीति - अज्ञान के कारण / शरीर से भिन्न अपने को न जानना / ब्रह्मयोगी द्वारा स्वेच्छा-मृत्यु के कई प्रदर्शन / अतींद्रिय जीवन - यंत्र की पकड़ के बाहर / चेतना अमर है / बोध - कि मैं कौन हूं / परलोक अभी और यहीं है / ध्यान – जहां से लोक खतम होता और परलोक शुरू होता / अमृत का बोध - अभी और यहीं / मृत्यु के रहते सुख संभव नहीं / मौत को भुलाने की कोशिशें / मृत्यु तथ्य है— सत्य नहीं / मृत्यु के तथ्य का सामना / संन्यास का प्रारंभ / मृत्यु निश्चित है / सुख के क्षण और मृत्यु की कालिमा / ज्ञान में दुख भी सुख हो जाते / अज्ञान में सुख भी दुख बन जाता है / अज्ञान में वरदान भी अभिशाप मालूम होते हैं / बुद्ध के पिता की नाराजगी / मूर्च्छा का कारण क्या है ? / मूर्च्छा अकारण है / जागने के पहले नींद स्वाभाविक / अज्ञान ज्ञान की पूर्व अवस्था है / ज्ञान का विरोधी है— मिथ्या - ज्ञान / अज्ञान बीज है — और ज्ञान वृक्ष / उधार- ज्ञान विकास में बाधा है / आलस्य मिथ्या ज्ञान को पकड़ा देता है / अहंकार अकड़ता है— मिथ्या ज्ञान पर अज्ञान की स्वीकृति - प्रारंभ यात्रा का / दर्शनशास्त्र द्वारा 'क्यों' की व्यर्थ खोज / 'क्यों' की खोज – रूपांतरण को स्थगित करने की तरकीब / धर्म एक प्रयोगशाला है / सकाम कर्म की निष्पत्ति - दुख / अनुभव से गलत को सीखने की मूढ़ता / राम भी दौड़े हैं- स्वर्ण मृग के पीछे / स्वर्ण मृग होते नहीं / निष्काम कर्म के छोटे-छोटे अनुभव / निष्काम जीवन पवित्र यज्ञ बन जाता है - धन्यता बन जाता है।
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चरण-स्पर्श और गुरु-सेवा
वासनाओं की आग में जलता हुआ जीवन / हताशा, निराशा, बेचैनी / प्रार्थना में भी मांग संसार की ही / चाह-मात्र बाधा है / वासना संसार है / जब तक मन, तब तक अशांति / चाह गई — कि संसार गया / प्रार्थना सिर्फ धन्यवाद है - मांग नहीं / अज्ञान बंधन है - ज्ञान मुक्ति है / 'स्व' में स्थिति स्वास्थ्य है / वासना कंपाती है / वासना गई — कि भय गया / ज्ञान परम स्वास्थ्य है / ब्रह्म के मुख से वेद के जन्म होने का क्या अर्थ है ? / अहंशून्य व्यक्ति के मुख से परमात्मा बोलता है / पूरा समर्पित व्यक्ति ब्रह्म के लिए माध्यम बन जाता है / सभी संत ब्रह्म के मुख हो जाते हैं / समस्त संतों की वाणी वेद है / बाइबिल, कुरान, धम्मपद - ये सब वेद हैं / सांप्रदायिक मन की संकीर्णता / वेद अपौरुषेय हैं अर्थात अहंशून्य व्यक्तियों के माध्यम से लिखे गए हैं / व्यक्ति
बीच में आ जाने से अशुद्धियां / रवींद्रनाथ की गीतांजलि / कूलरिज की अधूरी कविताएं / वेद निरंतर पैदा होते रहेंगे / कुतूहल से निकले बचकाने प्रश्न / प्रश्न-उत्तर रूपांतरण लाए तो ही सार्थक / झुको - तो मिलेगा / प्रश्न पूछने की कला / झुकने से हृदय का खुलना / अकड़ा हुआ आदमी बंद होता है / अज्ञान का बोध — पहला चरण है सीखने का / झुकने का आनंद - अकड़ने की पीड़ा / शिष्यत्व की कला ही खो गई है आज तो / अहंकारी, शिष्य होने से बचना चाहता है / झुकने के लिए बड़ा सामर्थ्य चाहिए / न कुतूहल, न जिज्ञासा - वरन मुमुक्षा / चरण-स्पर्श और ऊर्जा का विशेष प्रवाह / परमात्मा से जुड़े व्यक्ति से आशीष की वर्षा / निष्काम गुरु-सेवा / वर्षों वर्षों तक मौन प्रतीक्षा / प्रसाद का क्षण ।
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