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इंद्रियजय और श्रद्धा ... 241
इंद्रियों के ज्ञान से इंद्रियों पर विजय / जाना—कि मालिक हुए / इंद्रियां सबल होती हैं-अज्ञान से / जिसे जानते नहीं-उसे जीतने का उपाय नहीं / हत्या-इकट्ठे क्रोध का विस्फोट / क्रोध क्या है? / धीरे-धीरे लीकेज का इकट्ठा विस्फोट / काम, क्रोध, लोभ-छेद हैं, जिनसे जीवन ऊर्जा नष्ट होती है / भोग की अति-या दमन की अति / जानो इंद्रियों को / काम-ऊर्जा क्या है? / सेक्स पर ध्यान / ध्यान से-ज्ञान / काम, क्रोध, लोभ, अहंकार
आदि का निरीक्षण / क्रोध+ध्यान = क्षमा / काम+ध्यान - ब्रह्मचर्य / लोभ+ध्यान = दान /जहां-जहां ध्यान-वहां-वहां रूपांतरण / जितेंद्रिय और श्रद्धावान पुरुष शांत होता / विश्वास श्रद्धा नहीं है / संदेह को जीना तपश्चर्या है / विश्वास-कामचलाऊ / संदेह-विश्वास या अविश्वास नहीं-जिज्ञासा बने, खोज बने / श्रद्धा अर्थात खुलापन / श्रद्धा अर्थात स्वीकार / श्रद्धा अर्थात अपने अज्ञान का बोध / श्रद्धा के अभाव में जितेंद्रिय व्यक्ति अहंकारी हो जाता है / उत्तेजनाएं-सुख की, दुख की / श्रद्धा ज्ञान का परिणाम है या कि पूर्व-साधना है? / श्रद्धावान अर्थात श्रद्धा की तरफ अभिमुख / श्रद्धा मंजिल है-श्रद्धावान होना यात्रा है / अज्ञानी के लिए मंजिल की बात व्यर्थ है / कृष्णमूर्ति की अड़चन मार्ग की कम और मंजिल की बात ज्यादा करना / कृष्णमूर्ति पर साधना बाहर से लादी गई / विधियों का विरोध / गुरु ही चुनता है शिष्य को / शिष्य के लिए उपयोगी है—मार्ग की बात।
संशयात्मा विनश्यति ...255
संशय भरा मन विनाश करता / संशय अर्थात अनिश्चय, संकल्पहीनता / ईदर-आर-यह या वह / सृजन के लिए निर्णय चाहिए / आग लगे घर में खड़ा है हर आदमी / जीवन एक कीमती अवसर है / बुराई के लिए आदमी झिझकता नहीं / बुराई ढलान है-अच्छाई चढ़ान है / शुभ–गौरीशंकर की चढ़ाई है / शुभ के लिए असफल होना भी अच्छा / अर्थी के बाहर लटके सिकंदर के हाथ / संशय से डांवाडोल चित्त / तीन प्रकार के प्रेम / वस्तुओं का प्रेम / व्यक्तियों का प्रेम / भगवत्प्रेम / हम व्यक्ति को वस्तु बना लेते हैं / व्यक्ति साधन नहीं-साध्य है / प्रेम आंख है / भगवत्प्रेम-समग्र को प्रेम है / जीवंत व्यक्ति को प्रेम करने में अड़चनें / भक्ति-पूरे जगत में व्यक्तित्व देखना / अस्तित्व भगवान है / हमने नदी को, सूरज को, वृक्षों को नमस्कार किया / सभी रूपों में परमात्मा ही है / तत्वमसि-तू भी वही है / जो संशय से भरा-वह भगवत्प्रेम से खाली / प्रभु-अर्पित कर्म के बंधन नहीं बनते / अहंकार के सूक्ष्म रास्ते / अहंकार के लिए प्रेम के द्वार बंद / चेतना-सदा कुंवारी / समता मुक्ति है / ज्ञान की तलवार से संशय को काटना / सम बुद्धि में ज्ञान का जन्म / बदलती बुद्धि-बदलते चेहरे / रामकृष्ण का तलवार से काली को काटना / इस अध्याय का नाम 'कर्म-संन्यास-योग' क्यों है? / ज्ञानयुक्त कर्म से संन्यास फलित / कर्म से पलायन उचित नहीं / भागो नहीं बदलो।