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गीता दर्शन भाग-28
आत्मवंचना का डर है। दूसरे की असली कठिनाई आत्मवंचना है। | अक्सर पहली साधना में आत्मवंचना की संभावना न होने से सुगम एक आदमी कह सकता है कि ठीक है। हम तो वेश्या के घर नृत्य है। दूसरी साधना में आत्मवंचना की संभावना होने से दुर्गम है। देखते हैं. साक्षी रहते हैं। रस लेते हैं परा. लेकिन ज्ञानीजन की तरह। लेकिन दोनों बातें कष्ण ने कहीं. कि ऐसा भी लेते हैं। परीक्षा बहुत कठिन है।
सकता है। लेकिन परीक्षाएं भी निकाली गई हैं। तंत्र ने बहुत-सी परीक्षाएं ___ महावीर और बुद्ध पहली साधना के व्यक्ति हैं, संयम के। कृष्ण निकालीं। एक अदभुत परीक्षा तंत्र ने निकाली है, वह मैं आपसे | खुद दूसरी साधना के व्यक्ति हैं। इसीलिए तो कृष्ण और महावीर कहूं। क्योंकि विश्व में वैसा प्रयोग और कहीं हुआ नहीं। के व्यक्तित्व बिलकुल उलटे मालूम पड़ सकते हैं। तो जैनियों ने
वह परीक्षा यह थी कि जो व्यक्ति कहता है कि मैं भोगते हुए भी कृष्ण को तो नर्क में डाल दिया है। स्वाभाविक है, लाजिकल है। तटस्थ होता हूं, द्रष्टा होता हूं; तंत्र ने कहा कि तुम शराब पीओ जैन-चिंतन से कृष्ण को नर्क में डालना बिलकुल उचित है। क्योंकि और शराब पीते हुए तुम होश में रहो; और हम शराब पिलाए चले वह जो पहली निष्ठा है, वह सोच ही नहीं पा सकती कि यह स्त्रियों जाएंगे, तुम होश में रहना। अगर घटना घट गई है साक्षी की, द्रष्टा के साथ नाचता हुआ आदमी, यह सैकड़ों स्त्रियों के प्रेम में मग्न की-भोगते हुए–तो शराब में भी होश कायम रहना चाहिए। आदमी, यह युद्ध में खड़ा हुआ आदमी, यह हिंसा के लिए अर्जुन क्योंकि नशा करेंगी इंद्रियां; तुम जागे रहना; तुम मत सो जाना। | को प्रेरणा देता हुआ आदमी मुक्त कैसे हो सकता है? वह निष्ठा
तो तंत्र ने एक अदभुत प्रक्रिया निकाली नशे की—शराब, सोच ही नहीं सकती। इसलिए नर्क में डाल दिया। गांजा, अफीम। और आखिर तक बात वहां पहुंची कि जब अफीम, लेकिन कृष्ण आदमी तो कीमती थे। तर्क ने तो कह दिया कि नर्क गांजा. इस सबका भी कोई असर नहीं हआ साधक पर और वह में डाल दो. लेकिन हृदय भी तो है। तो जैनों ने कष्ण को नर्क में भी जागा ही रहा, उतने ही होश में, जितने होश में वह बिना नशे का डाला, लेकिन फिर हृदय ने बगावत भी की। क्योंकि आखिर कृष्ण था, तब सांप से भी जीभ पर कटाने के प्रयोग किए गए और उसमें | | को देखा भी है, जाना भी है, पहचाना भी है। नाचा हो स्त्रियों के भी जागा रहा। सांप जीभ पर काट लिया है, जहर हो गया। आदमी साथ, लेकिन इस आदमी की आंख में कोई नाच नहीं था। लड़ा हो मर जाए! और वह भीतर की चेतना की ज्योति जागी हुई है। युद्ध में, लेकिन इस आदमी के हृदय में कोई क्रोध नहीं था।
यह आमतौर से हमको कठिन मालूम पड़ता है कि तो तर्क ने तो कहा कि हमारी निष्ठा के बिलकुल प्रतिकूल है, साधु-संन्यासी गांजा पीएं, शराब पीएं। वह कभी परीक्षा थी। कभी असंयमी है, इसलिए नर्क में तो जाना ही चाहिए। लेकिन हृदय ने वह परीक्षा थी, अब वह रोज का उपक्रम है। रोज सांझ को गांजा | कहा, आंखें भी तो देखी हैं; आदमी भी तो देखा है। इसलिए जैनियों पी रहे हैं! कभी वह एक बहुत गहरी परीक्षा थी। लेकिन दूसरे वर्ग ने आने वाले कल्प में पहला तीर्थंकर कृष्ण को बनाया। नर्क में की ही परीक्षा है, पहले वर्ग की परीक्षा वह नहीं है।
डाला अभी, लेकिन आने वाले कल्प में पहले तीर्थंकर कृष्ण ही योगी उस परीक्षा में नहीं खरा उतरेगा; वह परीक्षा ही उसकी नहीं होंगे। कंपनसेशन है। है। उसने तो स्पर्श को ही तोड़ दिया है। उसने इंद्रिय और विषय के बुद्धि ने कहा कि डालो नर्क में, क्योंकि असंयमी मालूम पड़ता बीच संबंध ही तोड़ दिया है। दूसरे की परीक्षा है; जो कहता है, है। हृदय ने कहा, लेकिन आंख भी तो देखो! इस आदमी की चाल संबंध मैंने कायम रखा है. लेकिन मैं संबंध के रहते हए असंबंधित और ढंग भी तो देखो। रहा है स्त्रियों के बीच. ले और असंग हो गया हूं। वह उसकी परीक्षा है। और अगर बेहोशी | नहीं आती स्त्रियों की। नाचता रहा, लेकिन थिर है, वैसा ही जैसा रासायनिक सारे शरीर में पहुंच गई, फिर भी चेतना होश में जागी बुद्ध अपने सिद्धासन पर थिर होते हैं। युद्ध में खड़ा रहा, लेकिन हुई है; उस बिंदु पर कोई अंतर नहीं पड़ा है...।
| हिंसा इस आदमी के मन में कहीं भी दिखाई नहीं पड़ती। इसकी यह परीक्षा क्यों निकाली गई? क्योंकि आत्मप्रवंचना का डर है, आंखों में वे रेशे नहीं हैं, जो क्रोध के और हिंसा के रेशे होते हैं। धोखे का डर है। एक आदमी कह सकता है कि हम तो अच्छे कपड़े |
|| मोर-मुकुट बांधकर खड़ा रहा, लेकिन कोई गौर से देखे, तो कृष्ण पहनते हैं, लेकिन कोई रस नहीं है। हम तो साक्षी-भाव से पहनते के मोर-मुकुट के पीछे महावीर की नग्नता, दिगंबरत्व साफ-साफ हैं। दूसरे को कोई नुकसान नहीं है; नुकसान उसी को है। इसलिए है। मगर मोर-मुकुट भी तो दिखाई पड़ते हैं। मोर-मुकुट की वजह
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