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________________ 0 गीता दर्शन भाग-20 वह करेगा पूरा। वह खड़े होकर कहेगा, कैसा है; मौसम कैसा है? | | जगेगी, डिजायर पैदा होगी-और, और, और सुनूं। और सुनाई कहां गए थे? अच्छे रहे? कुछ मतलब की बातें नहीं हैं, लेकिन | | पड़े, तो स्पर्श हो गया। इंद्रिय ने रस लेना शुरू कर दिया। इंद्रिय स्पर्श। स्पर्श मिल जाएंगे; आप तृप्त होकर अपने रास्ते पर बढ़ | सिर्फ उपकरण न रही, मालिक हो गई। इंद्रिय ने सिर्फ देखा नहीं, जाएंगे। उसको भी स्पर्श मिल जाएंगे, वह भी अपने रास्ते पर बढ़ इंद्रिय ने पकड़ भी लिया। जाएगा। दोनों खुश हैं। छू लिया एक-दूसरे को। | जो योगी इंद्रिय को विषय से तोड़ता है, वह विषय और इंद्रिय इंद्रियां पूरे समय स्पर्श को लालायित और स्पर्श देने को और के बीच स्पर्श को, संस्पर्श को तोड़ता है। देखना तो नहीं तोड़ा जा लेने को आतुर हैं। ले रही हैं। | सकता। देखने से तोड़ने से कुछ फर्क नहीं पड़ता। अगर आपने तो जिस व्यक्ति को इंद्रियों को विषयों तक जाने से रोकना है, | आंखें फोड़ लीं, तो आप बहुत हैरान होंगे। अगर आपने आंखें फोड़ उसे इंद्रियों की इस सूक्ष्म स्पर्श-व्यवस्था के प्रति जागरूक होना लीं, तो जो काम आंख से आप करते थे, वह ट्रांसफर हो जाएगा पड़ेगा। अत्यंत सूक्ष्म व्यवस्था है। आपको पता चलने के पहले | | कान के पास। इसलिए अंधों के कान तेज हो जाएंगे। आंख से घटित हो जाता है। इतना शीघ्रता से घटित होता है इंद्रिय का स्पर्श, स्पर्श करने का जो काम था, वह काम भी कान को मिल जाएगा। कि आपको पता ही तब चलता है, जब घटित हो जाता है। इसके । इसलिए अंधों के कान तेज हो जाएंगे। अंधे कान से दोहरा काम प्रति जागना पड़े। इसे देखना पड़े। इसको स्मरण रखना पड़े। । | लेने लगेंगे। सुनने का स्पर्श भी उसी से करेंगे; देखने का स्पर्श भी गुरजिएफ कहेगा, रिमेंबरिंग। मैंने कहा कि वह इस युग के उसी से करेंगे। इसलिए अंधे आपके पैर की आवाज भी पहचानने योगीजन में से एक कीमती व्यक्ति! वह कहेगा, रिमेंबर रखो; पूरे | लगेंगे, कौन आदमी आता है! आंख वाला कभी नहीं पहचान वक्त स्मरण रखो कि क्या हो रहा है। सकता। आंख वाले को कभी पता ही नहीं चलता कि पैर में आवाज तुम्हारी आंख सिर्फ देख रही है या स्पर्श भी कर रही है, इन दोनों | भी होती है। लेकिन अंधे को बिलकुल पता होता है। कमरे में कौन में फर्क है। एक साधारण-सी स्त्री चली आ रही है, तो आंख सिर्फ आ रहा है, अंधा आदमी उसके पैर के पदचाप से जानता है-कौन देखती है, स्पर्श नहीं करती। सुंदर स्त्री चली आ रही है, आंख आ रहा है। उसको आंख का काम भी कान से ही लेना पड़ता है। देखती ही नहीं, स्पर्श भी करती है। साधारण-सा पुरुष चला आ कान को दोहरे स्पर्श करने पड़ते हैं। रहा है, तो आंख सिर्फ देखती है, जस्ट सीइंग। सुंदर पुरुष चला | | आंख फोड़ लेने से कुछ न होगा। आंख से स्पर्श विदा होना आ रहा है, तब देखती ही नहीं, स्पर्श भी करती है। | चाहिए। लेकिन कब होगा? जब आप जागेंगे, तो स्पर्श विदा हो फर्क कैसे पता चलेगा? अगर सिर्फ देखा हो, तो पीछे कोई लकीर जाएगा। क्या करेंगे? नहीं छूटेगी। और अगर स्पर्श भी किया हो, तो पीछे लकीर छूटेगी। | जब भी देखें, तब होश से यह भी देखें कि स्पर्श हो रहा है कि अगर सिर्फ देखा हो, तो लौटकर नहीं देखना पड़ेगा; अगर स्पर्श भी नहीं! सिर्फ देख रहे हैं? धीरे, धीरे, धीरे, फासला साफ दिखाई किया हो, तो लौटकर भी देखना पड़ेगा। अगर सिर्फ देखा हो, तो पड़ने लगेगा। जैसे अक्सर होता है, रात आप बिजली बुझाते हैं, तो स्मति नहीं बनेगी; अगर स्पर्श भी किया हो, तो स्मति बनेगी। अगर कमरे में अंधेरा मालम पड़ता है। फिर थोडी देर देखते रहें. देखते सिर्फ देखा हो, तो कल भी देखू, ऐसी आकांक्षा नहीं जगेगी; अगर रहें, देखते रहें, तो अंधेरा फीका होने लगता है। थोड़ी रोशनी मालूम स्पर्श किया हो, तो फिर-फिर देखू, ऐसी आकांक्षा जगेगी। पड़ने लगती है। ठीक ऐसे ही; देखें, देखते-देखते फासला दिखाई आंख से सिर्फ देखने का काम लें, स्पर्श करने का नहीं, तो कृष्ण पड़ने लगता है। और साफ दिखाई पड़ने लगता है कि मैंने स्पर्श जो कह रहे हैं, पहली घटना घट सकती है। हाथ से सिर्फ छूने का | | किया, कि देखा। और जब आप पाएंगे कि दिखाई पड़ने लगा स्पर्श काम लें, स्पर्श करने का नहीं। अब आप कहेंगे, छूना और स्पर्श | | किया, तभी आपको अनुभव हो जाएगा कि इंद्रियां जहां-जहां स्पर्श करना तो बिलकुल एक ही बात है। वही फर्क जो मैंने आंख के लिए करती हैं, वहीं-वहीं बंधन को निर्मित करती हैं। जहां-जहां स्पर्श कहा, सिर्फ देखने का काम आंख से, स्पर्श करने का नहीं। कान नहीं करतीं, वहां-वहां बंधन निर्मित नहीं होता। से काम सुनने का, स्पर्श करने का नहीं। कोई आवाज कान सुनता। संयमी का अर्थ है, जो इंद्रियों से उपकरण का काम लेता, भोग है, ठीक। लेकिन मीठी लग गई, तो छू ली गई। फिर आकांक्षा का नहीं। संयमी का अर्थ है, जो इंद्रियों से भोगता नहीं, केवल
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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