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________________ गीता दर्शन भाग-20 गुरजिएफ कृष्ण की गीता पढ़ेगा, तो भी उसमें गलतियां निकाल श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुइति । लेगा। वे गलतियां निकाल लेगा, जो सांख्य के वचन हैं। अगर शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति । । २६ ।। कृष्णमूर्ति गीता पढ़ेंगे, तो वे भी गलतियां निकाल लेंगे। वे गलतियां | और अन्य योगीजन श्रोत्रादिक सब इंद्रियों को संयमरूप निकाल लेंगे. जो योग के वचन हैं। लेकिन दोनों हालत में कष्ण के | अग्नि में हवन करते हैं अर्थात इंद्रियों को विषयों से रोककर साथ अन्याय हो जाएगा। अपने वश में कर लेते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादिक मार्ग हैं अलग, मंजिल है एक। और हर मार्ग पर अलग घटनाएं विषयों को इंद्रियरूप अग्नि में हवन करते हैं घटती हैं। अगर मैं बाएं तरफ के रास्ते से पहाड़ चढ़ता हूं, तो हो अर्थात राग-द्वेष रहित इंद्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण करते सकता है, मुझे फूलों से लदे हुए वृक्ष मिलें। और आप अगर दाएं हुए भी भस्मरूप करते हैं। रास्ते से पहाड़ चढ़ते हों, तो हो सकता है, आपको सिवाय चट्टानों, पथरीली चट्टानों के कुछ भी न मिले। और हो सकता है, जब हम दोनों मिलें, तो हम कहें कि हमारे प र कृष्ण ने दो निष्ठाओं की बात कही। दोनों रास्ते बिलकुल अलग हैं, मंजिल भी अलग होगी। क्योंकि पिएक वे, जो इंद्रियों का संयम कर लेते हैं। जो इंद्रियों मेरे रास्ते पर तो फूल ही फूल हैं, और तुम्हारे रास्ते पर पत्थर ही को विषयों की तरफ-विषयों की तरफ इंद्रियों की जो पत्थर हैं। अब कहां फूल! कहां पत्थर! दोनों का कोई मेल हो नहीं | | यात्रा है, उसे विदा कर देते हैं; यात्रा ही समाप्त कर देते हैं। जिनकी सकता। हम दुश्मन हैं। और जो रास्ता फूलों से गुजरता है, वह वहीं | इंद्रियां विषयों की तरफ दौड़ती ही नहीं हैं। संयम का अर्थ समझेंगे, कैसे पहुंचेगा, जहां वह रास्ता पहुंचता है, जो पत्थरों से गुजरता है! तो खयाल में आए। दूसरे वे, जो विषयों को भोगते रहते हैं, फिर ऐसी हमारी बुद्धि है। | भी लिप्त नहीं होते। ये दोनों भी यज्ञ में ही रत हैं। लेकिन पहाड़ को कोई तकलीफ नहीं आती। वह फूलों वाले | एक वे, जो इंद्रियों को विषयों तक जाने ही नहीं देते—उसकी रास्ते को भी शिखर पर पहुंचा देता है; और पत्थरों वाले रास्ते को | | अलग साधना है—इंद्रियों और विषयों के बीच में जो सेतु है, ब्रिज भी शिखर पर पहुंचा देता है। पहाड़ को इसमें कोई इनकंसिस्टेंसी है, उसे ही तोड़ देते हैं। दूसरे वे, जो इंद्रियों को विषयों तक जाने दिखाई नहीं पड़ती। कोई अड़चन ही नहीं मालूम होती। वह कहता | देते हैं, लेकिन इंद्रियों और लिप्त हो जाने में जो सेतु है, उसे तोड़ है कि इस रास्ते से आओ, तो भी शिखर पर आ जाओगे। उस रास्ते देते हैं। से आओ, तो भी। तुम्हारे रास्ते पर लाल फूल खिलते हों, तो कोई अब यह दो सेतुओं का जो तोड़ना है, वह खयाल में ले लेना हर्ज नहीं; और तुम्हारे रास्ते पर सफेद फूल खिलते हों, तो कोई हर्ज जरूरी है। दोनों ही स्थितियों से एक ही परम अवस्था उपलब्ध नहीं; और तुम्हारे रास्ते पर फूल खिलते ही न हों, तो कोई हर्ज नहीं; | होती है। और तुम्हारे रास्ते पर कांटे ही कांटे खिलते हों, तो भी कोई हर्ज | पहले, पहले को खयाल में लें, इंद्रियों को विषयों तक नहीं नहीं। ध्यान एक ही रखना जरूरी है कि तुम ऊपर की तरफ उठ रहे जाने देते! हो कि नहीं उठ रहे हो। अगर ऊपर की तरफ उठ रहे हो, तो शिखर इंद्रियां विषयों की तरफ भागती ही रहती हैं। रास्ते पर गुजरे हैं पर आ जाओगे। आप। सुंदर भवन दिखाई पड़ गया, कि सुंदर चेहरा दिखाई पड़ इसलिए कृष्ण यज्ञ की बात करते हैं। वह | गया, कि सुंदर काया दिखाई पड़ गई, कि सुंदर कार दिखाई पड़ का प्रतीक है। चाहे योगी करते हों-भजन से, पजन से, आसन गई आपको पता ही नहीं चलता कि जब आपने कहा. संदर है, से, प्राणायाम से किसी भी तरह। और चाहे ज्ञानीजन करते | | तभी इंद्रियां दौड़ चुकीं। ऐसा नहीं कि सुंदर है, ऐसा जानने के बाद हों-ध्यान से, निदिध्यासन से, समाधि से, न कुछ करने में, न | | इंद्रियां दौड़ना शुरू करती हैं। इंद्रियां दौड़ चुकी होती हैं। उनका कुछ करने से वे भी पहुंच जाते हैं। इसलिए दोनों का उन्होंने | कनक्लूजन है यह, सुंदर है, यह निष्कर्ष है। दौड़ गई इंद्रियों का, अलग उल्लेख किया है। पहुंची इंद्रियों का निष्कर्ष है यह कि सुंदर है।। ऐसा मत सोचना आप कि आप सुंदर चेहरा देखकर आकर्षित 134
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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