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________________ ( यज्ञ का रहस्य जिसके सूत्र, बीज-सूत्र गीता में नहीं हैं। सब मार्गों की, सब द्वारों कहेगा, बिना किए कुछ भी नहीं हो सकता। और कृष्णमूर्ति कहेंगे, की इकट्ठी। यह हो इसलिए सका, यह नहीं होता, अगर | कुछ भी करने से कुछ नहीं होगा। करने का कोई सवाल ही नहीं है। अर्जुन-कृष्ण ने पहले सांख्य की बात कही, अगर अर्जुन राजी हो | | किया, कि फंसे। किया, कि कभी नहीं पहुंचोगे। और गुरजिएफ जाए, तो गीता आगे न बढ़ती। लेकिन अर्जुन समझ न पाया सांख्य | | कहेगा कि नहीं किया, तो डूबे; नहीं किया, तो तुम नहीं ही कर रहे की बात। इसलिए फिर दूसरी बात कृष्ण को करनी पड़ी। अर्जुन वह हो, कहां पहुंच गए हो? भी न समझ पाया; फिर तीसरी बात करनी पड़ी। अर्जुन वह भी न लेकिन कृष्णमूर्ति भी एक निष्ठा की बात कर रहे हैं, सांख्य की। समझ पाया; चौथी बात करनी पड़ी! नई कोई बात नहीं है। नई लगती है, क्योंकि सांख्य इतना परम यह गीता का श्रेय अर्जुन को है। यह अर्जुन समझ ही नहीं पाया। | | विज्ञान है कि जब भी प्रकट होता है, तभी नया लगता है; उसकी वह सवाल उठता ही चला गया। जब एक मार्ग लगा कृष्ण को कि परंपरा नहीं बन पाती। वह इतना गहन और सूक्ष्म है कि उसकी धारा नहीं उसकी पकड़ में आता, नहीं उसके साथ बैठता तालमेल, तब बार-बार टूट जाती है। एक प्रतिशत लोग तो मुश्किल से उसको उन्होंने दूसरी बात की; तब तीसरी बात की; तब चौथी बात की। समझ पाते हैं। तो उसकी धारा कैसे बने? मोहम्मद को भी अर्जुन मिल जाता, तो कुरान ऐसी ही बन सकती| योग की धारा बन जाती है। क्योंकि योग को निन्यानबे प्रतिशत थी; नहीं मिला। महावीर को भी मिल जाता, तो उनके वचन भी | | लोग समझ सकते हैं, चाहें तो। कोई कठिनाई नहीं है। इसलिए योग ऐसे हो सकते थे; नहीं मिला। अर्जुन जैसा पूछने वाला कभी-कभी | की परंपरा बन जाती है, ट्रेडीशन बन जाती है। सांख्य की कोई मिलता है। कृष्ण जैसे उत्तर देने वाले बहुत बार मिलते हैं। | परंपरा नहीं बनती। इसलिए नहीं बनती कि कभी-कभी कोई एकाध यह ध्यान रखना, जो जानता है उसे उत्तर देना बहुत आसान है; | | आदमी ठीक से समझ पाता है कि न करने से भी हो सकता है। जो नहीं जानता है, उसे प्रश्न भी ठीक से पूछना बहुत कठिन है। ___ इसलिए जब भी सांख्य प्रकट होता है, तो नया मालूम पड़ता है। इसलिए अर्जुन एक अर्थों में, पूरी मनुष्य-जाति ने जितने सवाल | | और जब भी योग प्रकट होता है, तो परंपरा मालूम पड़ती है। और उठाए हैं. उन सबका सारभत है। परी मनष्य-जाति में मनष्य के मन सांख्य का चिंतक कहेगा. परंपरा से कछ भी न होगा। और योग ने जितने सवाल उठाए हैं, उन सारे सवालों को वह उठाता चला | | का चिंतक कहेगा, परंपरा के बिना कुछ भी न होगा। गया। वह पूरी मनुष्य-जाति के रिप्रेजेंटेटिव की तरह कृष्ण के सामने लेकिन कृष्णमूर्ति को सुविधा है। जो लोग भी एक निष्ठा की अड़कर खड़ा हो गया। कृष्ण को उसके उत्तर देने पड़े। एक-एक वह | | बात करते हैं, वे बहुत कंसिस्टेंट हो सकते हैं, संगत हो सकते हैं। पूछता चला गया, एक-एक उन्हें उत्तर देने पड़े। वह एक-एक उत्तर | | जिंदगीभर एक ही बात कहनी है! तो कृष्णमूर्ति तीस-चालीस साल को नकारता गया; भुलाता गया; दूसरे की खोज करता चला गया। | | से एक ही बात कहे चले जाते हैं। एक ही स्वर! बिलकुल संगत इसलिए कृष्ण बार-बार दो मूल निष्ठाओं की बात निरंतर करेंगे। | हैं। उनमें असंगति नहीं खोजी जा सकती। गुरजिएफ में भी असंगति वे कहेंगे, योगीजन; वे कहेंगे, ज्ञानीजन। दोनों एक ही जगह पहुंच | नहीं खोजी जा सकती। बिलकुल संगत हैं। पूरी जिंदगी एक ही बात जाते हैं। लेकिन दोनों के पहुंचने के मार्ग बड़े भिन्न हैं। योगी कर्म, | | कहता है। क्रिया, अभ्यास से पहुंचते हैं। ज्ञानी अकर्म, अक्रिया, अनभ्यास से। मेरे जैसे आदमी में असंगति खोजी जा सकती है। मैं दोनों __ अगर इस सदी में हम पकड़ना चाहें, तो पश्चिम में एक आदमी निष्ठाओं की बात कह रहा हूं। मेरे सामने जैसा आदमी होता है, हुआ, गुरजिएफ। वह योगीजन का ठीक-ठीक प्रतीक है। आप वैसी बात कहता हूं। अगर मुझे लगता है, यह आदमी योग से पहुंच कहेंगे कि भारत से कोई नाम नहीं लेता! दुर्भाग्य है; कोई नाम है| सकता, तो मैं कहता हूं, क्रिया से। अगर मुझे लगता है, यह आदमी नहीं ऐसा। ठीक-ठीक प्रतीक योगी का था जार्ज गुरजिएफ। अभी योग से नहीं पहुंच सकता, तो मैं कहता हूं, अक्रिया से। तब कुछ वर्ष पहले मरा। सांख्य का अगर ठीक-ठीक प्रतीक खोजना कठिनाई खड़ी हो जाती है। अगर वे दोनों आदमी मिल जाते हैं, तो हो, तो कृष्णमूर्ति। सौभाग्य कि भारत उनका नाम ले सकता है। बहुत कठिनाई खड़ी हो जाती है। और अक्सर तो मुझे दोनों बातें __ अगर गुरजिएफ और कृष्णमूर्ति को आमने-सामने खड़ा कर दें, एक ही साथ कहनी पड़ती हैं। तो दुश्मन मालूम पड़ेंगे-बिलकुल दुश्मन! क्योंकि गुरजिएफ इसलिए कृष्ण की गीता भी समझनी मुश्किल है। अगर 1133]
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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