________________
गीता दर्शन भाग-20
वे जगह-जगह कहते हैं, योगीजन, ज्ञानीजन। वे दोनों ही निष्ठाओं, जब वे साधना करते थे राधा संप्रदाय की; तो राधा संप्रदाय की को स्वीकार करते हैं।
मान्यता है, कृष्ण ही पुरुष हैं। और जब कोई उस साधना में जाता दोनों ही निष्ठाएं सही हैं, क्योंकि दो तरह के लोग हैं। अगर एक है, तो अपने को राधा मानकर ही, चाहे पुरुष हो तो भी, अपने को ही निष्ठा सही है, अगर सांख्य ही सही है, ऐसा किसी का आग्रह | | स्त्री मानकर ही जाता है। रामकृष्ण जब छह महीने तक अपने को हो, तो बाकी निन्यानबे प्रतिशत लोगों को परमात्मा तक पहुंचने का | | कृष्ण की राधा मानकर साधना करते थे, तो बड़े अदभुत अनुभव कोई मार्ग नहीं है। अगर योग ही सही है, तो वह एक प्रतिशत लोगों | हुए। साधारण अनुभव नहीं, जो भीतर घटते हैं; असाधारण, जो को परमात्मा तक पहुंचने का कोई मार्ग नहीं है। नहीं; जितने तरह | बाहर तक पहुंच जाते हैं। के लोग हैं, उतने तरह के मार्ग हैं। मोटा विभाजन दो का है। रामकृष्ण की चाल बदल गई, स्त्रियों जैसी हो गई। उनके स्तन
इसलिए वे इस यज्ञ की चर्चा में भी दो की बात करते हैं। वे कहते | | उभर आए। उनकी आवाज स्त्रैण हो गई। और एक बहुत बड़ा हैं, योगीजन पूजन से...। पूजन क्रिया है। पूजन पद्धति है। उस चमत्कार घटित हुआ कि वे मासिक धर्म से होने लगे। पद्धति से यज्ञ कर रहे हैं। ज्ञानीजन ज्ञान से ही; उनके लिए ज्ञान ही यह अगर दो-चार हजार साल पहले घटी हुई घटना होती, तो यज्ञ है, जानना ही उनके लिए करना है। योगी के लिए करना ही हम कहते, कहानी होगी। अभी-अभी तक इसके आंखों देखे गवाह जानना है। ज्ञानी के लिए जानना ही करना है। दोनों एक ही सिक्के भी मौजूद थे। इतने भाव से भर गए वे राधा के, कि स्त्रैण हो गए। के दो पहलू हैं। कृष्ण जैसे व्यक्ति को, जो ज्ञानी और योगी इतना आत्मसात कर लिया इस बात को कि राधा हूं, कि भूल गए साथ-साथ हैं, जो दोनों को जानते हैं, जो दोनों मार्गों को पहचानते कि पुरुष हैं। और जब मन भुल जाए, तो शरीर उसके पीछे चला हैं, उनके लिए कोई भेद नहीं है।
जाता है। शरीर सदा अनुगामी है। अभी रामकृष्ण ने अपने जीवन में एक अनूठा प्रयोग किया, ___ अगर ठीक से समझें, तो जो भी शरीर में प्रकट होता है, वह उसके सदियों बाद। एक अर्थ में शायद अनूठा। रामकृष्ण को अनुभव | | बहुत पहले बीजरूप में मन में प्रकट होता है, अन्यथा शरीर में प्रकट हुआ। तो आमतौर से अनुभव हो जाए, तो बात समाप्त हो जाती | नहीं होता। अगर कोई स्त्री है, तो वह भी उसके पिछले जन्म के मन है। एक मार्ग से भी आप मंजिल पर पहुंच जाएं, तो आप फिर इस का बीजरूप अंकुर आज आया है। और आज अगर कोई पुरुष है, चिंता में नहीं पड़ते कि दूसरे मार्गों से भी पहुंचकर देखें। क्या | तो वह भी उसके पिछले जन्म का बीजरूप अंकुर आज आया है। जरूरत है? बात समाप्त हो जाती है।
पिछले जन्म की यात्रा जहां छूट जाती है, मन में जो बीज रह जाते हैं, लेकिन रामकृष्ण को अनुभव के बाद दूसरे मार्गों से भी पहुंचने | | वे ही फिर सक्रिय हो जाते हैं, गतिमान हो जाते हैं। का खयाल आया। तो उन्होंने इस्लाम की भी साधना की। उन्होंने रामकृष्ण का अनेक-अनेक मार्गों से वहीं पहुंच जाना। कृष्ण ईसाइयत की भी साधना की। उन्होंने सांख्य के मार्ग को भी खोजा। | ऐसी ही बात कहते हैं पूरी गीता में। इसलिए गीता कई अर्थों में उन्होंने योग के मार्ग को भी खोजा। उन्होंने भक्तों की, वैष्णवजनों असाधारण है। कुरान एक निष्ठा का शास्त्र है; दूसरी निष्ठा की की यात्रा भी की। उन्होंने सब तरफ से देखा। आखिर में पाया कि | | बात नहीं है। बाइबिल एक निष्ठा का शास्त्र है; दूसरी निष्ठा की सभी रास्ते वहीं पहुंच जाते हैं; सभी मार्ग वहीं पहुंच जाते हैं। तो बात नहीं है। महावीर के वचन एक निष्ठा के वचन हैं; दूसरी निष्ठा रामकृष्ण ने बाद में कहा कि जैसे पहाड़ पर चढ़ने वाले बहुत-से की बात नहीं है। बुद्ध के वचन एक निष्ठा के वचन हैं; दूसरी निष्ठा रास्ते अंततः शिखर पर पहुंच जाते हैं, ऐसे ही...।
की बात नहीं है। गीता असाधारण है। मनुष्य के अनुभव में जितनी जब वे एक तरह की साधना करते थे, तब ठीक निष्ठा से पूरा निष्ठाएं हैं, उन सारी निष्ठाओं का निचोड़ है। उसी में डूब जाते। जब वे इस्लाम की साधना कर रहे थे, सूफी | । इसलिए अगर मुसलमान कहें कि कुरान हमारा है, तो एक अर्थ साधना से गुजर रहे थे, तो उन्होंने मंदिर जाना बंद कर दिया। वे एक | में सही कहते हैं। लेकिन हिंदू अगर कहें कि गीता हमारी है, तो उस लुंगी बांध लिए और मस्जिद में ही पड़े रहने लगे; छह महीने। फिर | | अर्थ में सही नहीं कहते। इसलिए सही नहीं कहते कि गीता सबकी एक दिन आकर दक्षिणेश्वर उन्होंने कहा, पहुंच गया वहीं। जहां यह | हो सकती है। मंदिर ले गया, वहीं मस्जिद भी ले गई।
ऐसी कोई निष्ठा नहीं है जो मनुष्य-जाति में प्रकट हुई हो,