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7 मैं मिटा, तो ब्रह्म
फासला है, कोई डिस्टेंस है, वह दिखाई पड़े या न दिखाई पड़े। हम बाहर वही देखते हैं, जो हमारे भीतर है। हम बाहर वही
कृष्ण के इस सूत्र में डिस्टेंसलेस, दूरीरहित हो जाने का खयाल | खोजते हैं, जो हमारे भीतर है। चोर चोर को खोज लेता है। बेईमान है। कोई दूसरा नहीं है, वही है। जिस क्षण ऐसा दिखाई पड़ता है | बेईमान को खोज लेता है। साधु साधु को खोज लेता है। एक ही कि वही है, एक ही है, उस क्षण कैसा बंधन? फिर जंजीर भी वही | गांव में आज रात कई यात्री उतरेंगे। कोई वेश्यालय को खोज लेगा, है। उस क्षण कैसा शत्रु? फिर शत्रु भी वही है। उस क्षण कैसा कोई मंदिर को खोज लेगा—उसी गांव में! हम वही खोज लेते हैं, दुख ? फिर दुख भी वही है। उस क्षण कैसी बीमारी? फिर बीमारी | जो हम हैं। भी वही है।
सुना है मैंने, एक रात एक फकीर के घर में एक चोर घुस गया। सुना है मैंने, एक सूफी फकीर के हृदय में नासूर हो गया। गहरा आधी रात थी। सोचा, सो गया होगा फकीर। भीतर गया, तो हैरान घाव। उसमें कीड़े पड़ गए। जिंदगीभर वह नमाज पढ़ने मस्जिद में हुआ। मिट्टी का छोटा-सा दीया जलाकर फकीर कुछ चिट्ठी-पत्री जाता रहा; लेकिन जब से उसके इस घाव में कीड़े पड़े, उसने नमाज लिखता था। घबड़ा गया चोर। छुरा बाहर निकाल लिया। फकीर ने पढ़नी बंद कर दी। पास-पड़ोस के लोगों ने कहा, क्या काफिर हुए ऊपर देखा और कहा कि छुरा भीतर रखो। शायद ही कोई जरूरत जा रहे हो? क्या आखिरी वक्त में अपनी जिंदगी खराब करनी है? पड़े। फिर कहा कि थोड़ा बैठ जाओ, मैं चिट्ठी पूरी कर लूं, फिर दोजख में जाना है? नर्क में पड़ना है? जिंदगीभर पुकारा परमात्मा तुम्हारा क्या काम है, उस पर ध्यान दूं। ऐसी बात, कि चोर भी को, अब नमाज क्यों नहीं पढ़ते हो?
घबड़ाकर बैठ गया! उस फकीर ने कहा, पढ़ता हूं अब भी। लेकिन अब झुक नहीं चिट्ठी पूरी की। फकीर ने पूछा, कैसे आए? सच-सच बता दो। सकता हूं, इसलिए मस्जिद नहीं आता। क्योंकि नमाज में झुकना | | ज्यादा बातचीत में समय खराब मत करना; अब मेरे सोने का वक्त पड़ेगा। उन्होंने कहा, पागल! नमाज बिना झुके होगी कैसे? और | | हुआ। उस चोर ने कहा, अजीब हैं आदमी आप! देखते नहीं, छुरा झुकने में एतराज क्या है? उस फकीर ने कहा, झुकता हूं, तो ये जो | हाथ में लिए हूं। आधी रात आया हूं। काले पकड़े पहने हूं। चोरी मेरे घाव में कीड़े पड़ गए हैं, ये नीचे गिर जाते हैं। फिर इनको | | करने आया हूं! फकीर ने कहा, ठीक। लेकिन गलत जगह चुनी। उठाकर रखना पड़ता है। कभी-कभी किसी को चोट भी लग जाती | और अगर यहां चोरी करने आना था, तो भलेमानस, पहले खबर है। और कभी-कभी कोई मर जाए। उन्होंने कहा, तुम कैसे पागल | | भी तो कर देते; हम कुछ इंतजाम करते। यहां चुराओगे क्या? हो! इन कीड़ों के लिए इतने परेशान क्यों हो? उस फकीर ने कहा, | मुश्किल में डाल दिया मुझे आधी रात आकर। और इतनी दूर आ कीड़ों के लिए नहीं, अपने लिए ही परेशान हूं। वे भी मैं ही हूं। | गए, खाली हाथ जाओगे, यह भी तो बदनामी होगी। और पहला जिसकी नमाज पढ़ रहा हूं, जो नमाज पढ़ रहा है, नमाज में जो कीड़े | ही मौका है कि मेरे घर भी किसी चोर ने ध्यान दिया। आज हमको गिर जाएं और मर जाएं, वे तीनों अलग-अलग नहीं हैं।
भी लगा कि हम भी कुछ हैं। कभी कोई आता ही नहीं इस तरफ। ऐसी प्रतीति हो, तो ही खयाल आ सकता है इस सूत्र का, कि | | तो ठहरो, मैं जरा खोजूं। कभी-कभी कोई-कोई कुछ भेंट कर जाता इस सूत्र का क्या अर्थ है। इस सूत्र का अर्थ है कि एक ही का | है। कहीं कुछ पड़ा हो, तो मिल जाए। विस्तार है। दो की भ्रांति है; एक का विस्तार है।
दस रुपए कहीं मिल गए। उस फकीर ने उसको दिए और कहा इस सूत्र को कृष्ण ने द्वंद्व के अतीत होने के बाद क्यों कहा है? कि यह तुम ले जाओ। रात बाहर बहुत सर्द है। अपने शरीर पर जो इसीलिए कहा है कि जब तक भीतर का द्वंद्व न मिटे, तब तक बाहर कंबल था, वह भी उसे दे दिया। वह चोर बहुत घबड़ाया! उसने का द्वंद्व भी नहीं मिट सकता। इसलिए पहले कहा कि द्वंद्वातीत हो कहा, आप बिलकुल नग्न हो गए! रात सर्द है। फकीर ने कहा, मैं जाता है जो पुरुष; फिर कहते हैं, सब ब्रह्म हो जाता है। | तो झोपड़े के भीतर हूं। लेकिन तुझे तो दो मील रास्ता भी पार करना
भीतर का दंद्र टट जाए. भीतर के मन के दो खंड मिट जाएं. एक | पड़ेगा। और रुपयों से तो कपड़े अभी मिल नहीं सकते। रुपयों से हो जाए भीतर, तो बाहर भी ज्यादा दिन दो नहीं रहेंगे। भीतर का | तन ढंक नहीं सकता। तो यह कंबल ले जा। फिर मैं तो भीतर है। एक बाहर के एक को खोज लेगा। भीतर के दो बाहर भी दो को | और फिर कब! इस गरीब की झोपड़ी पर कोई कभी चोरी करने निर्मित कर देते हैं।
आया नहीं। तूने हमें अमीर होने का सौभाग्य दिया। अब हम भी
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