________________
B मैं मिटा, तो ब्रह्मल
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हवियाग्नौ ब्रह्मणा हुतम् । उसके पहले यह नहीं दिखाई पड़ेगा। उसके पहले तो यही दिखाई ब्रह्मव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना । । २४ ।। | पडेगा कि मैं ही हं. और बाकी शेष सब मेरा साधन है। मैं ही हं अर्पण अर्थात सुवादिक भी ब्रह्म है, और हवि अर्थात हवन सब कुछ। चांद-तारे मेरे लिए घूमते हैं। अस्तित्व मेरे इर्द-गिर्द करने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है, और ब्रह्मरूप अग्नि में ब्राह्मरूप | चक्कर काटता है। मैं ही हूं सब कुछ, धुरी सारे अस्तित्व की। और कर्ता के द्वारा जो हवन किया गया है, वह भी ब्रह्म ही है, सब मेरा साधन है। इसलिए ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ हुए उस पुरुष द्वारा जो जब तक ऐसा दिखाई पड़ता है, जब तक ऐसा ईगोसेंट्रिक विजन प्राप्त होने योग्य है, वह भी ब्रह्म ही है। | है, जब तक ऐसी दृष्टि है अहं-केंद्रित, तब तक यह ब्रह्म की बात
| नितांत व्यर्थ मालूम पड़ेगी। यह सिर्फ शब्दों का जाल मालूम
पड़ेगी। सभी ब्रह्म? नहीं; ऐसा नहीं मालूम पड़ सकता है। यह कब 1 ब, सर्व, जो भी है—कर्म, कर्ता, किया गया; बोला मालूम पड़ेगा? रा गया, सुना गया; देखा गया, दिखाया गया इस पहले सूत्र को ध्यान में रखें, तो यह दूसरा सूत्र खुल सकेगा।
जगत में जो भी है, इस अस्तित्व में जो भी है, कृष्ण | पहले सूत्र को ध्यान में रखें, आसक्तिरहित हुआ जो व्यक्ति है, उसे इस सूत्र में कहते हैं, वह सभी ब्रह्म है। लेकिन ऐसा कब दिखाई | बहुत शीघ्र दिखाई पड़ने लगेगा। उसके डोर्स आफ परसेप्शन, पड़ता है?
उसके देखने के नए द्वार खुल जाएंगे। उसे दिखाई पड़ेगा कि सभी जब तक मैं दिखाई पड़ता है, तब तक ऐसा दिखाई नहीं पड़ता में वही है-सभी में, चारों ओर। कि सभी ब्रह्म है। ऐसा तभी दिखाई पड़ता है, जब मैं दिखाई नहीं अभी तो हम इसे थोड़ा समझने की कोशिश करें। देखने की पड़ता; तभी दिखाई पड़ता है कि सब ब्रह्म है।
| कोशिश तो दुरूह है, समझें। लेकिन समझने को जानना न समझ . दो ही तरह के अनुभव हैं। जिनका अनुभव मैं का अनुभव है, लें। समझ लें, पर इतना भी समझ लें कि यह हमने समझा है, जाना उन्हें कृष्ण का यह वचन सरासर व्यर्थ मालूम पड़ेगा। है भी फिर। | नहीं। जानना तो बहुत दुरूह, बहुत आर्युअस है। लेकिन समझ फिर है भी।
लेना भी बड़ा सौभाग्य है। क्योंकि समझ लें, तो शायद कल जानने . जिनका एक ही अनुभव है, मैं का, और जिनका जगत मैं के की यात्रा पर भी निकल पाएं। लेकिन हम बहत होशियार हैं। हम इर्द-गिर्द बना हुआ एक परकोटा है; जिन्होंने सदा ही मैं को केंद्र समझने को ही ज्ञान समझ लेते हैं। हम समझकर मान लेते हैं कि पर रखकर जीवन को देखा है—ऐसा हम सभी ने देखा है जो बिलकुल ठीक है। ईगोसेंट्रिक हैं, जो अहं-केंद्रित होकर जीए और अनुभव किए हैं, __मेरे पास एक सूफी फकीर को लाया गया। जो लाए थे, उन्होंने उनके लिए कृष्ण का यह वचन सरासर व्यर्थ मालूम पड़ेगा। क्योंकि कहा, इन्हें सब तरफ परमात्मा ही परमात्मा दिखाई पड़ता है। इन्हें कहां है ब्रह्म? कहीं कोई ब्रह्म दिखाई नहीं पड़ता! दिखाई भी नहीं कण-कण में परमात्मा दिखाई पड़ता है। वृक्ष में, पत्थर में, पौधों पड़ेगा। ऐसा व्यक्ति ब्रह्म को देखने के लिए अंधा है। और जिस में, चांद-तारों में, मकानों में सब तरफ इन्हें परमात्मा ही दिखाई चीज के प्रति हम अंधे हैं, उस चीज को हम वापस आंख पाए बिना पड़ता है। मैंने कहा, बहुत शुभ है। इससे ज्यादा शुभ और क्या हो देख नहीं सकते।
सकता है! मैंने उन फकीर से पूछा कि आपने यह देखने का अभ्यास अहंकार अंधापन है ब्रह्म को देखने में।
किया, कि आपको बस दिखाई पड़ता है? उन्होंने कहा, नहीं, मैंने ऐसा कब दिखाई पड़ेगा, सभी कुछ–यज्ञ भी ब्रह्म, हवन की | अभ्यास किया है, वर्षों अभ्यास किया है। वर्षों तक देखने की विधि भी ब्रह्म, हवन में जलती अग्नि भी ब्रह्म, हवन में चढ़ाई गई | कोशिश की, तब दिखाई पड़ा। मैंने कहा, कैसे कोशिश की? तो आहुति भी ब्रह्म, हवन में चढ़ाने वाला भी ब्रह्म, हवन में मंत्र उन्होंने कहा कि बस, मैंने इस तरह का भाव करना शुरू किया। उदघोष करने वाला भी ब्रह्म-ऐसा कब दिखाई पड़ेगा कि सब | वृक्ष के पास खड़ा होता, तो मन में सोचता, ब्रह्म है, परमात्मा है, ब्रह्म है?
प्रभु है। वृक्ष नहीं है, ईश्वर है। सोचता-सोचता, तीस वर्ष मैंने ऐसे यह तब दिखाई पड़ेगा, जब एक अंधापन मैं का टूट जाता है। । | सोचते-सोचते बिताए। तब मुझे अब सब में ब्रह्म दिखाई पड़ता है।
1121