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________________ गीता दर्शन भाग-20 जंगल में छोड़ दिया जाए, तो आप थोड़े इम्पावरिश्ड हो जाते हैं, एक पैसा देने में भी इधर-उधर मुंह कर रहे थे, वे सब आस-पास दरिद्र हो जाते हैं, दीन हो जाते हैं। खड़े हो गए और कहने लगे कि धन्यभाग हमारे कि आपके दर्शन __ मैंने सुना है, एक सम्राट ने अपने बेटे को घर से निकाल दिया। हुए। लेकिन अब वह देख भी नहीं रहा है। अब वह आदमी वह किसी बात पर नाराज हआ और घर से निकालने की आज्ञा दे दी। नहीं है, जो था एक क्षण पहले। सब बदल गया! क्या हो गया? फिर बारह वर्ष बाद; बूढ़ा बाप, एक ही था बेटा; फिर याद लौटने मेरा वापस लौट आया-राज्य, साम्राज्य, सम्राट! अब उसकी लगी। फिर मन के दूसरे हिस्से ने बहुत बार कहा होगा, बहुत बुरा आंखें जमीन की तरफ नहीं देखती हैं। अब जिनके सामने वह हाथ किया। इतना क्या बड़ा अपराध था? इतनी भी क्या बात थी? माफ | जोड़कर खड़ा था और जो उसकी तरफ देख नहीं रहे थे, वे उससे किया जा सकता था। फिर दूसरा हिस्सा मन का लौट आया। वजीरों कह रहे हैं, महाराज! कोई उसके पैर दबा रहा है। लेकिन वह बैठा को भेजा खोजने, कि खोज लाओ। है। उसकी आंखें आकाश की तरफ देख रही हैं। अब ये बारह साल, वह राजा का लड़का, कुछ जानता तो नहीं था। राजा | कीड़े-मकोड़े हैं। अब ये आदमी नहीं हैं, आस-पास जो खड़े हैं। का लड़का था, जानने का कोई सवाल भी न था। न ठीक से कभी | | थोड़ी देर पहले इनके सामने वह कीड़ा-मकोड़ा था; आदमी नहीं पढ़ा-लिखा था, न कभी कुछ सीखा था। बस, थोड़ा नाच-गाने का | था। अगर इन्होंने एकाध पैसा उसके कटोरे में डाला था, तो सिर्फ जरूर उसे शौक था। तो गांवों में भीख मांगने लगा नाच-गाकर। | इसलिए कि हटो भी, जाओ भी। कोई दया करके नहीं, सिर्फ और कुछ कर नहीं सकता था। | परेशानी हटाने को। क्या, हो क्या गया? __बारह साल बाद, भरी दोपहर में, सूरज जल रहा है, तेज धूप | अभी मैं बिलकुल बुझा-बुझा था! अब मैं बिलकुल सजग बरसती है आग जैसी, वह नंगे पैर एक साधारण-सी होटल के | होकर, अब पूरी शक्ति से जल रहा है। मेरे की दुनिया वापस लौट सामने अपने टीन के कटोरे को बजाकर गा रहा है और लोगों से | | आई। रथ, राज्य, साम्राज्य-सब वापस आ गया। अब दीए को पैसे मांग रहा है। पैसे मांग रहा है कि पैरों में फफोले पड़ गए हैं। | तेल मिल गया। अब लपट जोर से जल रही है। अब मैं कोई जते की सब नीचे की तली टट गई है. उखड गई है। मझे कछ पैसे साधारण ज्योति न रही: मशाल हो गई। दे दो, तो इस गरमी में...। दस-पांच पैसे उसके कटोरे में पड़े हैं। | कृष्ण कहते हैं, आसक्तिरहित होकर पुरुष जब बर्तता है कर्मों कपड़े वही पुराने हैं, जो बारह साल पहले पहने हुए घर से निकला | | में, तो उसका जीवन यज्ञ हो जाता है—पवित्र। उससे, मैं का जो था। पहचानना बहुत मुश्किल है। पागलपन है, वह विदा हो जाता है। मेरे का विस्तार गिर जाता है। लेकिन एक वजीर का रथ वहां से गुजरा। रोका उसने रथ को। | आसक्ति का जाल टूट जाता है। तादात्म्य का भाव खो जाता है। चेहरा पहचाना मालूम पड़ा। कपड़े पुराने थे, लेकिन शाही थे। फट | | फिर वह व्यक्ति जैसा भी जीए, वह व्यक्ति जैसा भी चले, फिर वह गए थे, चीथड़े हो गए थे, लेकिन कहीं-कहीं से जरी भी दिखाई व्यक्ति जो भी करे, उस करने, उस जीने, उस होने से कोई बंधन पड़ती थी। उतरा, पास जाकर देखा, चेहरा तो वही था। वजीर पैरों | निर्मित नहीं होते हैं। क्यों? पर गिर पड़ा। कहा, क्षमा करें। पिता ने माफी मांगी है। आपको क्योंकि मैं की टकसाल के अतिरिक्त मनुष्य के बंधन निर्माण का वापस बुलाया है। कहीं कोई कारखाना नहीं है। क्योंकि ईगो के, अहंकार के अतिरिक्त __ एक क्षण, और वह राजकुमार जैसे मेटामार्कोसिस से गुजर | जंजीरों को ढालने के लिए कोई और फौलाद नहीं है। क्योंकि मैं के गया। सब ट्रांसफार्मेशन हो गया। सब रूपांतरण हो गया। हाथ से | अतिरिक्त मनुष्य को अंधा करने के लिए, गड्ढों में गिराने के लिए उसने फेंक दी वह कटोरी, जिसमें पैसे थे। पैसे सड़क पर बिखर और कोई जहर नहीं है। इसलिए आसक्तिरहित! गए। उसकी आंखों की रोशनी बदल गई। उसके हाथ-पैर का ढंग लेकिन आसक्तिरहित वही होगा, जिसका मेरा खो जाए। मेरा बदल गया। उसकी रीढ़ सीधी हो गई। उसने वजीर से कहा कि उसका खोएगा, जिसका मैं खो जाए। जाओ, पहले स्नान का इंतजाम करो। अच्छे वस्त्र लाओ। जूते । शून्य की तरह ऐसा पुरुष जीता है। शून्य की तरह जीना यज्ञरूपी खरीदो। सारा इंतजाम करो। | जीवन को उपलब्ध कर लेना है। फिर कोई बंधन निर्मित नहीं होते वह रथ पर जाकर बैठ गया। चारों तरफ भीड़ लग गई। जो उसे | 120/
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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