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________________ गीता दर्शन भाग-2 यज्ञ के लिए आचरण करते हुए मुक्त पुरुष के संपूर्ण कर्म नष्ट हो जाते हैं। सक्तिरहित, ज्ञानपूर्वक कर्म करते हुए पुरुष के समस्त आ कर्मबंधन क्षीण हो जाते हैं, सब बंधन, सब परतंत्रताएं गिर जाती हैं। आसक्तिरहित, अनअटैच्ड, अनआइडेंटिफाइड, तादात्म्य-मुक्त ! इस सूत्र में आसक्तिरहित का क्या अर्थ है ? थोड़ा आसक्ति में उतरें, तो खयाल में आ जाए! सुना है मैंने, एक घर में आग लग गई है। स्वभावतः, गृहपति छाती पीटता है और रो रहा है। भीड़ लगी गई है। आग बुझाई जा रही है, बुझती नहीं। आंखें आंसुओं से भरी हैं। वह आदमी होश खो दिया है। तभी पास-पड़ोस के लोगों में से कोई भागा हुआ आया और उसने कहा, रोओ मत। घबड़ाओ मत। जल जाने दो। बेफिक्र रहो। क्योंकि तुम्हारे लड़के ने मुझे पक्का पता है, कल ही यह मकान बेच दिया। सौदा हो चुका है। आंख से आंसू ऐसे तिरोहित हो गए, जैसे थे ही नहीं। रोना खो गया। संयत हो गया वह आदमी। जैसे और सब लोग खड़े थे, ऐसे वह भी खड़ा हो गया। उसने कहा, मुझे कुछ पता ही नहीं था। उसके ओंठों पर मुस्कुराहट आ गई। मकान अब भी जल रहा है, वैसा ही, थोड़ा ज्यादा । लपटें और बढ़ गई हैं। लेकिन इसके भीतर की लपटें एकदम खो गईं! वहां अब भी आग है, लेकिन यहां भीतर हृदय में कोई आग न रही, कोई जलन न रही। और तभी उसका बेटा दौड़ा हुआ आया और उसने कहा कि क्या खड़े देखते हैं आप? क्योंकि उस आदमी से बात तो हुई थी, लेकिन उसने आदमी भेजकर खबर भेज दी कि जले हुए मकान को मैं खरीदने वाला नहीं हूं। बयाना नहीं हो पाया था। सौदा टूट गया है। आंसू फिर वापस आ गए हैं। आदमी फिर छाती पीटकर चिल्लाने लगा। मकान अब भी जल रहा है ! वैसा ही जल रहा है। भीतर फिर आग आ गई। इस बीच क्या फर्क पड़ा? मकान को कुछ पता भी नहीं चला होगा बेचारे को, कि इस बीच बड़ा नाटक हो गया है। लेकिन हुआ क्या? थोड़ी देर के लिए अनअटैच्ड हो गया वह आदमी। थोड़ी देर के लिए आसक्तिरहित हो गया। जो अपना नहीं है, बात समाप्त हो गई। अपना है, तो बात समाप्त नहीं होती। मेरा था मकान, तो आग भीतर तक पहुंचती थी। मेरा नहीं है, तो आग अब भीतर नहीं पहुंचती। आग अब भी जल रही है। तो मेरे से ही आग भीतर तक पहुंचती थी, मेरे के मार्ग से। मेरे को ही हिलाकर आग भीतर आती थी। मेरे के द्वार से ही आग भीतर प्रवेश करती थी। बीच में पता चला, मेरा नहीं है; द्वार बंद हो गया। मकान जलता रहा; भीतर लपट पहुंचनी बंद हो गई। थोड़ी देर को, इस नाटकीय घटना में, आसक्ति टूट गई। मेरा न रहा। 118 काश, वह आदमी बुद्धिमान होता ! काश, इस घटना को देख पाता ! तो फिर जिंदगीभर के लिए लपटों के बाहर हो सकता था। लेकिन वह नहीं होगा। क्योंकि वह फिर रो रहा है। वह वहीं फिर उन्हीं लपटों में घिर गया; वही दरवाजा उसने फिर खोल दिया। आसक्तिरहित का अर्थ है, इस जगत में मेरा कुछ भी नहीं है। मेरे का भाव, मेरे का भाव ही मेरी आसक्ति है। ममत्व ही आसक्ति है। लेकिन मेरे के बड़े विस्तार हैं। मेरा बेटा भी मेरी आसक्ति है। मेरा मकान भी मेरी आसक्ति है। मेरा धर्म भी मेरी आसक्ति है । मेरा | शास्त्र भी मेरी आसक्ति है। मेरा परमात्मा तक मेरी आसक्ति है। जहां-जहां मेरा जुड़ेगा, वहां-वहां आसक्ति जुड़ जाएगी। जहां-जहां से मेरा विदा हो जाएगा, वहां-वहां से आसक्ति विदा हो जाएगी। लेकिन मेरा कब विदा होगा? जब तक मैं है, तब तक मेरा विदा नहीं होगा। एक जगह से हटेगा, दूसरी जगह लग जाएगा । मैंने कहा कि इस ड्रैमेटिक घटना में, इस नाटकीय घटना में थोड़ी देर के लिए वह आदमी आसक्तिरहित हो गया, तो आप गलत मत समझ लेना। थोड़ी देर के लिए वह आदमी इस मकान के प्रति आसक्तिरहित हो गया। लेकिन उसकी आसक्ति दूसरी तरफ चली गई, उस धन में, जो इस मकान से मिलने वाला है। मकान बिक चुका; अपना नहीं रहा । बिकने से जो मिल गया धन, वह अपना हो गया। मेरा, हटा मकान से जुड़ गया कहीं और। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि मेरा कहीं भी जुड़ जाए। कहीं भी जुड़ जाए, उतना ही काम शुरू हो जाता है। घर छोड़कर कोई चला | जाए, तो फिर मेरा आश्रम हो जाता है। मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद ! आश्चर्यजनक है आदमी! मेरे के बिना मानता ही नहीं है। मेरे को लेकर ही चलता है साथ। मंदिर भी जाए, तो मेरा बना लेता है। |परमात्मा का कोई मंदिर नहीं है पृथ्वी पर कोई इसका मेरा मंदिर है, कोई उसका मेरा मंदिर है। इसलिए तो फिर दो मेरों में कभी-कभी टक्कर हो जाती है। तो मंदिरों-मस्जिदों में आग लग जाती है; खून-खराबा हो जाता है। अभी तक हम पृथ्वी को ऐसा नहीं बना पाए, जहां कि हम वह
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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