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मिटा, तो ब्रह्म
रख सकेगा। इसलिए मित्र को भूलकर मत बताना। क्योंकि जब तुम खुद ही गुप्त नहीं रख सके और मित्र को बताना पड़ा, तो तुम इस भ्रांति में मत पड़ना कि तुम जिस बात को गुप्त नहीं रख सके, उसको तुम्हारा मित्र रख सकेगा। वह भी किसी को बता देगा। और फिर, आज मित्र है, वह कल शत्रु हो सकता है।
मैक्यावेली ने एक बात और कही; उसने यह कहा कि शत्रु प्रति भी इस तरह की बातें मत कहना, जिन्हें कि कल लौटाना मुश्किल हो जाए। क्योंकि जो आज शत्रु है, वह कल मित्र हो सकता है । फिर कठिन होगा। फिर लौटाना मुश्किल होगा।
असल में शत्रु और मित्र दो चीजें नहीं हैं, एक ही साथ घटित होती हैं। आप किसी आदमी को बिना मित्र बनाए शत्रु बना सकते हैं? ? बहुत मुश्किल है। अब तक तो नहीं हो सका पृथ्वी पर यह । बिना मित्र बनाए किसी को शत्रु बनाया जा सकता है ? असंभव है। शत्रु बनाने के लिए भी मित्र की सीढ़ी से गुजरना ही पड़ता है। शत्रु बनाने के लिए भी पहले मित्र ही बनाना पड़ता है। तो ऐसा भी समझ सकते हैं कि जिसको मित्र बनाया, अब उसके शत्रु बनने की 'संभावना घनीभूत हो गई।
जब कृष्ण कहते हैं, द्वंद्वातीत ... ।
मन तो जीता है द्वंद्व में, सदा द्वंद्व में। मन तो जीता है सदा विकल्प में। सदा ही दो विकल्प खड़े रहते हैं। जो आप करते हैं, उसके खिलाफ भी आपका मन पूरे वक्त भीतर कहता रहता है। एक
भी आप उठाते हैं, तो मन का दूसरा हिस्सा कहता है, मत उठाओ। मन कभी भी सौ प्रतिशत, हंड्रेड परसेंट नहीं होता । एक हिस्सा निरंतर ही विरोध करता रहता है। जिस आदमी का मन ऐसी हालत से भरा है, वह आदमी द्वंद्व में घिरा है। वह सदा ही द्वंद्व में घिरा रहेगा। यह द्वंद्व अगर बहुत तीव्र हो जाए, तो वह आदमी दो खंडों में टूट जाएगा, जिसको मनोवैज्ञानिक सीजोफ्रेनिया कहते हैं। वह आदमी दो खंडों में टूट जाएगा। वह एक ही आदमी दो आदमियों की तरह हो जाएगा।
लेकिन हम इतने ज्यादा नहीं टूटते । हमारी टूट तरल होती है, लिक्विड होती है। हम बिलकुल नहीं टूट जाते दो खंडों में। लेकिन हमारे दो खंड जारी रहते हैं। लेकिन फिर भी हैं तो सीजोफ्रेनिक, हैं तो दोहरे ।
जो आपकी प्रशंसा करता है, कल आपको एकदम हैरानी होती है कि उसने आपकी निंदा की। आप गलती में हैं। आपको मनोवैज्ञानिक सत्य का पता नहीं है। जिसने प्रशंसा की, वह बदला
चुकाएगा। वह आज नहीं कल, कहीं निंदा करेगा, तब कंपनसेशन हो पाएगा। उसने एक काम कर दिया, अब उससे उलटा काम नहीं करेगा, तो संतुलन नहीं हो पाएगा। जिसने एक तरफ प्रशंसा की, वह कल कहीं न कहीं जाकर निंदा करेगा। जब प्रशंसा करे, तभी समझ लेना । निंदा की प्रतीक्षा मत करना, वह कहीं करेगा।
फ्रायड ने लिखा है अपने संस्मरणों में, अगर घने से घने मित्र भी एक-दूसरे के संबंध में यहां-वहां जो कहते हैं, वह अगर उन्हें पता चल जाए, तो इस पृथ्वी पर एक भी मित्रता टिक नहीं सकती। घने से घने, इंटीमेट से इंटीमेट, निकट से निकट मित्र भी एक-दूसरे खिलाफ यहां-वहां जो कहते हैं, अगर वह सबको पता चल जाए, तो इस पृथ्वी पर एक भी मित्रता नहीं टिक सकती।
कारण है उसका। मन सदा ही परिपूर्ति खोजता है। उसका दूसरा हिस्सा भी है, वह मांग करता है कि मुझे भी पूरा करो।
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स्कूल में शिक्षक पढ़ाता है बच्चों को कैसे डरे हुए बैठे रहते हैं बच्चे ! सिर नहीं हिलाते । श्वास लेते नहीं मालूम पड़ते । और शिक्षक ने पीठ फेरी ब्लैकबोर्ड पर लिखने को, कि देखें, उनके चेहरे बदल गए ! जितना शिक्षक ने उनको डराया था सामने से, पीठ के पीछे अगर उसको पता चल जाए – अगर शिक्षक के दो आंखें खोपड़ी के पीछे भी हों तो उसे पता चले कि ये बच्चे जो इतने सीधे बैठे थे, ये पीछे क्या-क्या कर लेते हैं। वे कंपनसेशन कर रहे हैं, कुछ और नहीं कर रहे।
वे इतना ही कर रहे हैं कि इतनी देर तक जो आदर मांगा, उसका बदला चुका देते हैं। फिर वे हलके हो जाते हैं। न चुका पाएं, तो बहुत कठिनाई है। इसलिए बहुत होशियार लोगों ने ही तख्ता उलटा रखा हुआ है। शिक्षक को बीच-बीच में घूमना पड़े, नहीं तो | ये बच्चे मुश्किल में पड़ जाएंगे। अगर पांच-छह घंटे इनको इकट्ठा ही दबाव करना पड़े एक हिस्से का, तो ज्यादा खतरनाक है। इनका बीच-बीच में निकास होता रहे, कैथार्सिस होती रहे । शिक्षक जब भी मुड़ता है तख्ते पर लिखने को, तब वे मुंह भी बना लेते हैं, | टोपियां भी उछाल देते हैं, एक-दूसरे की तरफ इशारा भी कर देते हैं। तब तक हलके हो जाते हैं। शिक्षक लौटा, तब तक वे फिर राजी हो जाते हैं आदर देने को ।
ऐसी हम सबकी चित्त की दशा है। डबल - बाइंड है।
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यह जो द्वंद्व है, यह बहुत ऊपर भी है, बहुत गहरे भी है। सतह पर भी है, गहराइयों में भी है। गहराइयों में भी सदा द्वैत चलता रहता है। दिन में आदमी ने उपवास किया है, रात भोजन के सपने देखेगा।