________________
गीता दर्शन भाग-26
लेता है, वह लाल स्याही को भी भूल जाएगा। और यही हुआ। | क्या अर्थ?
तीन-चार महीने में करोड़ों रुपए का धंधा कम हो गया सिगरेट सुख-सामग्री को छोड़कर का अर्थ, सामग्री को छोड़कर नहीं। का; लेकिन फिर वापस अपनी जगह हो गया! जो आदमी धुएं को | सुख-सामग्री को छोड़कर! सामग्री और सुख-सामग्री में फर्क है। बाहर-भीतर करने में होश नहीं रख पाता, वह लाल स्याही को वस्तुएं, अगर सिर्फ आवश्यक हैं और उनसे आप सुख नहीं कितनी देर तक देखेगा? डब्बे पर लिखा है, लिखा रहे; अब कौन | | खींचते अपने भीतर, सिर्फ जरूरत पूरी करते हैं, तो वे सुख-सामग्री पढ़ता है? उसको कोई नहीं पढ़ता।
नहीं हैं। लेकिन अगर वस्तुएं आवश्यक नहीं हैं, अनावश्यक हैं, आदमी बेहोश है। और जब तक बेहोश है, तब तक शरीर और सिर्फ सुख के स्रोत बनाते हैं आप उनको...। . यांत्रिक आदतें पकड़ लेता है। और यांत्रिक आदतें बंधन का कारण जैसे कि एक स्त्री है, सेर भर सोना लटकाए हुए घूम रही है। बन जाती हैं।
| पागलखाने में होना चाहिए। क्योंकि शरीर पर सेर भर सोना होशपूर्वक आदमी यांत्रिक आदतें नहीं पकड़ता है; पकड़ता ही लटकाने की कोई भी जरूरत नहीं है। शरीर की तो कोई जरूरत नहीं नहीं यांत्रिक आदतें। होशपूर्वक आदमी अपना हाथ भी नहीं हिलाता | | है। नुकसान पहुंच रहा है। लेकिन सोने से शरीर की कोई जरूरत व्यर्थ। हाथ भी हिलाता है, तो होशपूर्वक हिलाता है। | पूरी नहीं की जा रही है। सोना सुख-सामग्री है। सुख-सामग्री क्यों
बुद्ध एक गांव से गुजर रहे हैं। बुद्ध होने के पहले की बात है। | है सोना? क्योंकि जिन-जिन की आंखों में वह सोना चमकेगा, एक मक्खी कंधे पर आकर बैठ गई है। आनंद साथ में था। बुद्ध | उन-उन की आंखें चौंधिया जाएंगी। वे मानेंगे कि हां, कोई है, उससे बात कर रहे थे। बात जारी रखी और बेहोशी में-जैसा कि | समबडी। और कुछ मतलब नहीं है। पति भी प्रसन्न है अपनी स्त्री हम सब करते हैं—मक्खी को हाथ से उड़ा दिया। होशपूर्वक नहीं, | पर सोना लटकवाकर। उसकी पत्नी पर सोना लटका हो, तो बाजार जतनपूर्वक नहीं, कांशसली नहीं; बात जारी रही, धक्का मारा हाथ | | में उसकी क्रेडिट बढ़ जाती है। उसकी पत्नी पर सोना, उसका का और उड़ा दिया। फिर रुक गए, उदास हो गए। आनंद ने पूछा, चलता-फिरता विज्ञापन है, कि यह आदमी भी कुछ है। क्या हुआ? बुद्ध थोड़ी देर खड़े रहे, फिर हाथ ले गए उस जगह, | - पुरुष होशियार है। सोना खुद नहीं लादते, पत्नियों पर लदवा जहां मक्खी बैठी थी कभी, अब नहीं थी। फिर उड़ाया मक्खी को, | दिया है! पहले खुद ही लादते थे; फिर धीरे-धीरे बुद्धिमत्ता आई। जो कि अब थी ही नहीं। फिर हाथ नीचे लाए। आनंद ने कहा, क्या | समझे कि यह काम तो औरत से ही लिया जा सकता है। इसके लिए करते हैं आप? क्या उड़ाते हैं? कंधे पर कुछ नहीं है। | नाहक हम क्यों परेशान हों! पहले लादते थे।
बुद्ध ने कहा, मैं उड़ाकर देख रहा हूं फिर से, जैसा कि मुझे उड़ाना __ सुख-सामग्री को छोड़कर! सामग्री को छोड़कर, कृष्ण नहीं कह चाहिए था-होशपूर्वक। उस बार मैंने बेहोशी में मक्खी को उड़ा रहे हैं। सामग्री छोड़ी नहीं जा सकती। जीवन के लिए सामग्री की दिया। अपना ही हाथ बेहोशी में काम करे, तो खतरनाक काम भी | जरूरत है। जितनी जरूरत है, उतनी बिलकुल ठीक है। सबकी कर सकता है। आज मक्खी उड़ाता है, कल किसी की गर्दन दबाजरूरत भी भिन्न है। इसलिए प्रत्येक अपना निर्णय करे कि उसकी सकता है। अगर आज मक्खी को मैंने बिना जतन के उडा दिया. क्या जरूरत है। और निर्णय कठिन नहीं है। विदाउट माइंडफुलनेस-बुद्ध का शब्द है, स्मृतिपूर्वक, विद | कपड़े आपने शरीर को ढांकने के लिए पहने हैं? सर्दी बचाने के माइंडफुलनेस–अगर मैंने स्मृतिपूर्वक नहीं उड़ाया मक्खी को, तो लिए पहने हैं? कि किसी की आंखों को तिलमिलाने के लिए पहने कल क्या भरोसा है कि मेरे हाथ किसी की गर्दन न दबा दें! दबा हैं? आप खुद पक्की तरह जान सकते हैं। जब आईने के सामने सकते हैं। तो मैं खड़ा होकर उस तरह उड़ा रहा है, जैसे कि उड़ाना सुबह खड़े हों, तब आपको पक्का पता चल जाएगा कि यह कोट चाहिए था। और अगली बार स्मरण रखूगा कि जतनपूर्वक, | आप किसलिए पहन रहे हैं। यह सर्दी के लिए पहन रहे हैं? तन स्मृतिपूर्वक मक्खी को उड़ाऊं, अन्यथा कर्म का बंधन हो सकता है। ढांकने के लिए पहन रहे हैं? कि किसी की आंखों में तिलमिलाहट
बेहोश कर्म बंधन है। होशपूर्वक कर्म बंधन से मुक्ति है। | पैदा करनी है? कि किसी को हीन दिखलाना है? कि इस आशा में दूसरी बात पूछी है कि कृष्ण कहते हैं, सुख-सामग्री को | पहन रहे हैं कि आज कोई जरूर छूकर पूछेगा कि किस भाव से छोड़कर-स्वयं को जीतकर, सुख-सामग्री को छोड़कर-इसका | | लिया है!
108