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________________ कामना-शून्य चेतना अज्ञानीजन तो किसी को भी पंडित कहते हैं। अंधों में काना भी र ऐसा पुरुष, ऐसी चेतना को उपलब्ध पुरुष, ऐसी राजा हो जाता है! नहीं, उसका कोई मूल्य नहीं है। II चेतना को उपलब्ध व्यक्ति संसार के आसरे आनंदित ___ यह स्मरण में रखना कि इस आखिरी वक्तव्य ने पंडितों की दो नहीं होता। ऐसे पुरुष का आनंद परमात्मा से ही स्रोत कोटियां कर दीं। एक वे पंडित, जिनके पास परिमाण में ज्ञान है; | पाता है। ऐसा व्यक्ति संसार के कारण सुखी नहीं होता। ऐसा मात्रा है ज्ञान की एक। लेकिन वे कंप्यूटर से ज्यादा नहीं हैं। उनके व्यक्ति सुखी ही होता है-अकारण। जहां तक संसार का संबंध पास बंधे हुए उत्तर हैं, रटे हुए। उनके अपने उत्तर नहीं हैं। उत्तर है-अकारण। किसी और के हैं; वे केवल दोहराने का काम कर रहे हैं। वे केवल _अगर कोई रामकृष्ण से पूछे, क्यों नाच रहे हो? तो रामकृष्ण दलाल हैं, उससे ज्यादा नहीं हैं। उत्तर उपनिषद के होंगे, कि बुद्ध कोई भी सांसारिक कारण न बता सकेंगे। वे यह न कह सकेंगे कि के होंगे, कि कृष्ण के होंगे, कि महावीर के होंगे। उनके अपने नहीं | लाटरी जीत गया हूं। वे यह न कह सकेंगे, यश हाथ लग गया है। हैं, इसलिए आथेंटिक नहीं हैं, इसलिए प्रामाणिक नहीं हैं। जब कोई वे यह न कह सकेंगे कि बहुत लोग मुझे मानने लगे हैं। व्यक्ति कहता है अपने से-तब! जानकर-तब! । अगर कबीर से हम पूछे कि क्यों मस्त हुए जा रहे हो? यह मस्ती और यह दुनिया बहुत सुलझी हुई हो सकती है, अगर ये नंबर | | कहां से आती है ? तो संसार में कारण न बता सकेंगे। दो के पंडित थोड़े कम हों। या न हों, तो बड़ा सुखद हो सकता है। ___ हमारी मस्ती हमेशा सकारण होती है, कंडीशनल होती है। शर्त जो नहीं जानता, वह जानने वाले की तरह बोलकर भारी नुकसान | होती है उसकी। घर में बेटा हुआ है, तो बैंड-बाजे बज रहे हैं। पहुंचाता है। | धन-संपत्ति आ गई है, तो फूलमालाएं सजी हैं। हमारा सुख बाहर, जो जानता है, वह चुप भी रह जाए, तो भी लाभ पहुंचाता है। | हमसे बाहर कहीं से आता है। इसलिए देर नहीं लगती और हमारा जो नहीं जानता है, वह बोले, तो भी नुकसान पहुंचाता है। सौ में सुख तत्काल दुख बन जाता है। बहुत देर नहीं लगती। क्योंकि निन्यानबे मौके पर लोग जानते नहीं हैं, सिर्फ जाने हुए की बातों को | जिसका भी सुख संसार-आश्रित है, उसका सुख क्षणभर से ज्यादा जानते हैं। सेकेंड हैंड भी नहीं कहना चाहिए; हजारों हाथों से गुजरी | नहीं हो सकता। क्योंकि संसार ही क्षणभर से ज्यादा नहीं होता है। हुई बातों को जानते हैं। सब सड़ गया होता है। अज्ञानीजन उनको संसार पर आश्रित जो भी है, वह सभी क्षणभर है। पंडित कहते हैं। जैसे कि हवाओं के झोंके में वृक्ष का पत्ता हिल रहा है। यह वृक्ष लेकिन ज्ञानीजन उसे पंडित कहते हैं, जिसने आमना-सामना का पत्ता क्षणभर से ज्यादा एक स्थिति में नहीं हो सकता; क्योंकि किया, एनकाउंटर किया; जिसके हृदय और परमात्मा के हृदय के जिस हवा में हिल रहा है, वही क्षणभर से ज्यादा एक स्थिति में नहीं • सब पर्दे गिरे। और जिसके हृदय ने परमात्मा रहती है। वह हवा ही तब तक और आगे जा चकी है। नदी में जो के हृदय का संस्पर्श किया; जिसने आंखों में आंखें डालकर लहर उठ रही है, वह जिस पवन के झोंकों से उठ रही है, क्षणभर परमात्मा में झांका; और जिसने परमात्मा को आंखें डालकर अपने | | से ज्यादा नहीं रह सकती; क्योंकि क्षणभर से ज्यादा वह पवन का भीतर झांकने दिया; जो झील की तरह आकाश से मिला, मौन झील झोंका ही नहीं रह जाता है। की तरह-उसे पंडित, उसे ही पंडित कहा जा सकता है। संसार क्षणभंगुरता है। वहां सब कुछ क्षणभर है। उस पर आश्रित सुख क्षण से ज्यादा नहीं है। आया नहीं, कि गया! आने और जाने में बड़ा कम फासला है। त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः। __मैं अभी एक कवि की दो पंक्तियां देख रहा था, मुझे बहुत कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः।।२०।। | | प्रीतिकर लगीं। जरा-सा फासला किया है और पंक्तियों का अर्थ और जो पुरुष सांसारिक आश्रय से रहित सदा परमानंद | बदल गया है। पहली पंक्ति है : वसंत आ गया। और दूसरी पंक्ति परमात्मा में तृप्त है, वह कर्मों के फल और संग अर्थात | है: वसंत आ, गया। पहली पंक्ति है: वसंत आ गया। आ गया कर्तृत्व-अभिमान को त्यागकर कर्म में अच्छी प्रकार बर्तता | | वसंत। और दूसरी पंक्ति है : आ, गया वसंत। वह आ गया को हुआ भी कुछ भी नहीं करता है। | तोड़ दिया है दूसरी पंक्ति में, दो टुकड़ों में! आ को अलग कर दिया | 101]
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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