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गीता दर्शन भाग-2600
में दर्पण बन जाता है। उस दर्पण में विराट परमात्मा इस छोटे-से | | मालूम पड़ता है। क्वांटिटेटिव अंतर है। न जानने वाले और ज्यादा
आदमी के हृदय में भी प्रतिफलित होता है; आमने-सामने हो जाता | जानने वाले में क्वांटिटी का अंतर है। आपने दो किताबें पढ़ी हैं, है। विराट है परमात्मा, हम बड़े छोटे हैं। छोटी है झील, बड़ा है | उसने दस पढ़ी हैं। आप दो क्लास पढ़े हैं, उसने दस क्लास पढ़ी आकाश!
हैं। आपके पास प्राइमरी का सर्टिफिकेट है, उसके पास यूनिवर्सिटी __कल एक मुसलमान बहन मुझसे कह रही थी कि कुरान में जब का। लेकिन अंतर क्वांटिटी का है, क्वालिटी का नहीं। अंतर मैंने पढ़ा, अल्ला हू अकबर, बड़ा है परमात्मा, तो कुछ समझ में | परिमाण का, मात्रा का है, गुण का नहीं। नहीं आया कि मतलब क्या है!
लेकिन जब कोई व्यक्ति परमात्मा को जान लेता है, तो यह कोई सच ही बड़ा है परमात्मा। बहुत बड़ा है। जितना हम कंसीव कर | बड़ा सर्टिफिकेट नहीं है छोटे सर्टिफिकेट के मुकाबले। यह कोई सकें, जितना हम सोच सकें, उससे सदा बड़ा है। बड़े का मतलब | | प्राइमरी की डिग्री के मुकाबले पीएच.डी. की डिग्री नहीं है। यह यह नहीं कि हमने नाप लिया है कि इतना बड़ा है। बड़े का इतना ही | कोई डिग्री ही नहीं है। मतलब कि हमारे सब नाप बेकार हो गए हैं।
हमारे पास जो शब्द है डिग्री के लिए, वह बहुत बढ़िया हैध्यान रहे, बड़े का मतलब यह नहीं कि हम नाप चुके, मेजर्ड। उपाधि। उपाधि का मतलब बीमारी भी होता है। असल में ऐसा नहीं कि हमने नापा और पाया कि बड़ा है। ऐसा कि हमने नापा | | उपाधिग्रस्त आदमी, डिग्रीधारी, बीमार ही होता है। क्योंकि सब
और पाया कि कोई मेजरमेंट, कोई नाप काम नहीं आता, बहुत बड़ा | | उपाधियां, सब डिग्रियां अहंकार को और भारी करती चली जाती है! अल्ला हू अकबर, बहुत बड़ा है! हमारे सब माप बेकार हैं। वह हैं। और सब उपाधियां, और सब डिग्रियां कामना और वासना को जो इतना बड़ा है, वह इस आदमी के छोटे-से हृदय के साथ कैसे | और गतिमान करती हैं। सब उपाधियां संकल्प को और दौड़ाती हैं। साक्षात्कार हो सकेगा?
नहीं, जिसे ज्ञानी भी पंडित कहते हैं, यह उपाधिमुक्त है। यह कभी आपने देखा कि एक छोटे-से दर्पण में भी बहुत बड़ा | | डिग्रीलेस है। इसकी कोई उपाधि नहीं है। इसके पास कोई प्रमाणपत्र साक्षात्कार हो जाता है। छोटे-से दर्पण में विराट सूर्य का प्रतिफलन | | नहीं है जानने का। यह स्वयं ही प्रमाणपत्र है जानने का। इसकी हो जाता है। दर्पण फिर भी बड़ा है। छोटी-सी आंख गौरीशंकर को | | स्वयं की आंखें गवाही हैं। इसके हृदय से उठते हुए स्वर गवाही हैं। ' भी पकड़ लेती है। विराट एवरेस्ट को छोटी-सी आंख पकड़ लेती | | इसका रो-रोआं, इसका उठना-बैठना गवाही है। है। माना कि होगे विराट, माना कि आंख बड़ी छोटी है, लेकिन | एक फकीर रिझाई के पास जापान का सम्राट गया और उसने प्रतिफलन की क्षमता अनंत है, दि कैपेसिटी टु रिफ्लेक्ट। छोटी है | कहा कि मैं कैसे जानें कि तुमने जान लिया? तो उस फकीर ने कहा
आंख, लेकिन प्रतिफलन की क्षमता अनंत है। इसलिए आंख | कि मुझे देखो-मेरे उठने को, मेरे बैठने को, मेरे बोलने को, मेरे एकदम छोटी नहीं है। एक अर्थ में एवरेस्ट छोटा पड़ जाता है। एक चुप होने को, मेरी आंखों को, मेरे जागने को, मेरे सोने को-मुझे अर्थ में एवरेस्ट छोटा पड़ जाता है!
| देखो। उस सम्राट ने कहा, तुम्हें देखने से क्या होगा? कोई और एक अर्थ में भक्त के हृदय के सामने भगवान छोटा पड जाता है। प्रमाण नहीं है? उस फकीर ने कहा, और कोई भी प्रमाण नहीं है। इस अर्थ में, अनंत है विराट, लेकिन भक्त के छोटे-से हृदय में भी मैं ही प्रमाण हूं। मैंने अगर उसे जाना है, तो तुम मेरे उठने में उसका पूरा प्रतिफलित हो जाता है। असीम पूरा पकड़ लिया जाता है। उठना जानोगे। मैंने अगर उसे जाना है, तो तुम मेरे देखने में उसकी
लेकिन यह हृदय होना चाहिए मौन, शांत, वासना-संकल्प से | आंख को देखता हुआ पाओगे। अगर मैंने जाना है, तो जब मैं तुम्हें रिक्त और खाली। और तब ज्ञानी भी–ज्ञानी अर्थात जो जानते हैं, | हृदय से लगाऊंगा, तो तुम मेरे हृदय में उसकी धड़कन सुन वे भी-ऐसे व्यक्ति को पंडित कहते हैं। और ध्यान रहे, कृष्ण की | | पाओगे। और कोई प्रमाण नहीं है। और अगर यह तुम न पहचान यह शर्त बड़ी कीमती है। क्योंकि जो नहीं जानते, वे किसी को पंडित | सको, तो और कोई उपाय नहीं है। मैं कोई गवाह खड़े नहीं कर कहें, इसका कोई भी मूल्य नहीं है। इसका कोई भी मूल्य नहीं है। | सकता हूं। मैं ही गवाह हूं। और अगर मैं गवाह नहीं बन पाता हूं,
जो नहीं जानते हैं, वे किसी को पंडित कहें, इसका क्या मूल्य हो तो फिर कोई उपाय नहीं है। सकता है ? वे उसी को पंडित कहते हैं, जो उनसे ज्यादा जानता हुआ कृष्ण कहते हैं, ज्ञानीजन भी उसे पंडित कहते हैं।
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