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ॐ कामना-शून्य चेतना
पक्का नहीं कर पाते, मजबूत नहीं कर पाते। कुछ कर नहीं पाते, | है। क्योंकि सब लोग बाहर की तरफ दौड़ते हैं, वह भीतर ही भीतर हम उसकी निंदा करते हैं। निंदा हम इसीलिए करते हैं कि कामनाएं दौड़ता है। फिर भीतर दौड़ने से कहीं पहुंच तो सकते नहीं; कोल्हू तो उसके भीतर बहुत हैं और संकल्प नहीं है।
के बैल बन जाते हैं। वहीं-वहीं वर्तुल की तरह घूमते रहते हैं। फिर ___ अगर कामनाएं बहुत हों और संकल्प न हो, तो आदमी पागल | जिंदगी बड़ी कठिनाई में हो जाती है। हो जाएगा। क्योंकि पहुंचने की इच्छा बहुत है और चलने की ताकत और यह भी स्मरणीय है कि शक्ति के दो रूप हैं। अगर वह बिलकुल नहीं है, तो वह आदमी बड़ी कठिनाई में पड़ जाएगा। वह वासनाओं की तरफ दौड़े, तो क्रिएटिव होती है। वह कुछ सृजन वैसी ही कठिनाई में पड़ जाएगा, जैसे वृद्धजन कामवासना से | | करती है; कामनाओं का, वासनाओं का, सपनों का, आकांक्षाओं तकलीफ में पड़ जाते हैं। वृद्ध हैं; शरीर ने साथ छोड़ दिया; अब | | का सृजन करती है। अगर आकांक्षाएं, वासनाएं, कामनाएं छूट कोई शक्ति नहीं है कामवासना को पूरी करने की; लेकिन मन अभी | | जाएं, तो शक्ति सृजन नहीं करती। संकल्प की शक्ति फिर स्वयं कामवासना के विचार उठाए चला जाता है!
को ही विनाश करने लगती है, डिस्ट्रक्टिव हो जाती है। ध्यान रहे, युवा अवस्था में कामवासना उतनी पीड़ा नहीं देती, | | इसलिए कृष्ण का दूसरा सूत्र पहले सूत्र से भी बहुमूल्य और क्योंकि वासना भी होती है, शक्ति भी होती है। वृद्धावस्था में | स्मरणीय है, संकल्प भी छोड़ देता है जो व्यक्ति...। कामवासना बुरी तरह पीड़ा देती है। क्योंकि शक्ति खो गई होती है; __ वासनाएं छोड़ देता है, संकल्प छोड़ देता है। यह भी छोड़ देता वासना नहीं खोती। वासना अपनी जगह खड़ी रहती है। है कि मुझे कहीं पहुंचना है; यह भी छोड़ देता है कि मैं कहीं पहुंच
संकल्प की हम बात करते हैं कि संकल्प बढ़ाओ, विल पावर सकता हूं। यह भी छोड़ देता है कि कोई मंजिल है; और यह भी बढ़ाओ। क्योंकि वासनाएं अगर पूरी करनी हैं, तो बिना संकल्प के छोड़ देता है कि मैं कोई यात्री हूं! यह भी छोड़ देता है कि मुझे कोई पूरी न होंगी। लेकिन अगर वासनाएं छोड़ देनी हैं, तब संकल्प की | दूर के फल तोड़ लाने हैं; और यह भी छोड़ देता है कि मैं तोड़कर कोई भी जरूरत नहीं है: तब तो समर्पित हो जाओ। तब नाहक की ला सकता है। शक्ति बोझ बन जाएगी।
ऐसा कामना-शून्य, संकल्परिक्त हुआ व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध ध्यान रहे, शक्ति अगर प्रयोग न की जाए, तो आत्मघाती हो | | होता है। क्यों? ऐसा व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध क्यों हो जाता है कि जाती है, स्युसाइडल हो जाती है। इसे मैं फिर दोहराता हूं, शक्ति | | जिसको ज्ञानी भी पंडित कहते हैं? अगर प्रयुक्त न हो, तो स्वयं का ही विनाश करने लगती है। ऐसा व्यक्ति इसलिए ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है कि ऐसा
इसलिए कृष्ण बहुत मनोवैज्ञानिक सत्य कह रहे हैं। लेकिन क्रम | व्यक्ति दर्पण की भांति निर्मल और ठहरा हुआ हो जाता है। कभी से कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, पहले वासना-कामना से क्षीण, | देखी है झील आपने? जब लहरें चलती होती हैं, तो झील दर्पण संकल्प से क्षीण।
नहीं बन पाती। लेकिन झील पर लहरें न चलें, झील शांत हो __ अगर कोई वासनाओं के पहले संकल्प छोड़ दे, तो बहुत कठिनाई | जाए-दौड़े न, चले न, रुक जाए; ठहर जाए; मौन हो जाए, में पड़ जाएगा। बहुत-बहुत कठिनाई में पड़ जाएगा, बड़ा दीन और विश्राम में चली जाए तो झील दर्पण बन जाती है। फिर झील की हीन हो जाएगा। पहले वासना चली जाए, तो फिर संकल्प का बचना | सतह मिरर का काम करती है, दर्पण का काम करती है। फिर खतरनाक। क्योंकि फिर शक्ति करेगी क्या? और जब शक्ति बाहर | चांद-तारे उसमें नीचे झलक आते हैं। फिर आकाश का सूरज उसमें नहीं जा पाती, दौड़ नहीं पाती, जब शक्ति सक्रिय नहीं हो पाती, तो | | प्रतिबिंबित होता है। पूरा आकाश छोटी-सी झील पकड़ लेती है। फिर भीतर सक्रिय हो जाती है। और फिर भीतर ही दौड़ने लगती है। | अनंत आकाश, विराट आकाश, जिसकी कोई सीमा नहीं, एक शक्ति जब भीतर दौड़ती है, तो आदमी पागल हो जाता है। छोटी-सी झील की छाती में प्रतिबिंबित हो जाता है।
शक्ति जब बाहर दौड़ती है, तब भी पागल होता है। लेकिन तब | | ठीक ऐसा ही होता है। जब चित्त पर कोई वासना की लहर नहीं नार्मल पागल होता है, जैसे सभी पागल हैं। इसलिए बहत दिक्कत 1. और जब चित पर कामना का कोई झंझावा नहीं आती। लेकिन जब शक्ति भीतर दौड़ने लगती है, तब जब चित्त अपने ही भीतर घूमती शक्ति से आंदोलित नहीं होता, तब एबनार्मली पागल हो जाता है; असाधारण रूप से पागल हो जाता चित्त भी एक झील की भांति मौन, ठहर गया होता है। उस ठहराव
होता. और
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