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वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान
निषिद्ध कर्म होकर रहेगा। वह ब्राह्मण मुश्किल में पड़ गया। | कीटाणु पैदा हो जाए। तो वर्षा में पैर ही मत रखो; निषिद्ध कर्म है।
उस कसाई ने कहा कि जल्दी बोलो। पता हो, तो बोलो; नहीं | किस चीज को निषिद्ध कहें? जीसस से पूछो, मोहम्मद से पूछो, पता हो, तो कहो कि नहीं पता है। उस ब्राह्मण ने कहा, मैं बहुत | | महावीर से पूछो, राम से पूछो, कनफ्यूशियस से पूछो। अगर मुश्किल में पड़ गया हूं। जरा मुझे सोचने दो। निषिद्ध कर्मों का | | सबकी बातें सुन लो, तो आदमी हिल भी न सके, सांस भी न ले सवाल है। उस कसाई ने कहा, पागल, मैं पूछता हूं, मेरी गाय कहां | | सके। देखा है न, जैन साधु-साध्वी मुंह पर पट्टी बांधे हुए हैं! वह है? निषिद्ध कर्मों का कोई सवाल नहीं है। सिर्फ गाय का सवाल सांस से बचाने के लिए, कि सांस की गर्म हवा आस-पास के है। गाय कहां गई है? तू जानता हो, देखा हो, बोल! न जानता हो, कीटाणुओं को मार देगी, तो निषिद्ध कर्म हो जाए! तो नाक पर पट्टी न देखा हो, वैसा बोल! उसने कहा कि अभी ठहरो। सवाल निषिद्ध बांधे हुए हैं। गर्म हवा पट्टी में रुक जाए, तो थोड़ी हवा के कर्मों का है।
कीटाणुओं को बचाने की सुविधा हो जाएगी। मुश्किल है! जिंदगी जटिल है। उसमें चीजें ऐसी नहीं होतीं, जैसी शास्त्रों में और ऐसा नहीं है कि इन बड़े तीर्थंकरों, अवतारों, समझदारों, होती हैं। शास्त्र सरल है, हालांकि लोग शास्त्रों को जटिल समझते | | बुद्धिमानों, ज्ञानियों की बात से मुश्किल होती है। जिंदगी जटिल हैं और जिंदगी को सरल समझते हैं। शास्त्र बिलकुल सरल हैं; | है। वे जो भी कह रहे हैं, सब ठीक कह रहे हैं। लेकिन सभी की जिंदगी बहुत जटिल है। क्योंकि शास्त्रों के सब सवाल निर्णीत | | बातें जिंदगी के निश्चित पहलू को छू पाती हैं! और जिंदगी रोज सवाल हैं; जिंदगी के सब सवाल अनिर्णीत हैं। वहां प्रतिपल तय अनिश्चित है। सब बदल जाता है। करना पड़ता है कि क्या करूं? और ऐसे क्षण रोज आ जाते हैं, जब महावीर ने कहा कि खेती मत करो, क्योंकि खेती निषिद्ध कर्म कोई शास्त्र साथ नहीं देता, स्वयं ही निर्णय करना पड़ता है। । | है; क्योंकि खेती में बहुत हिंसा होती है। होगी ही। इसलिए महावीर - इसलिए कृष्ण कहते हैं, जटिल है, गहन है कर्म की गति। उस को मानने वाले लोगों ने खेती बंद कर दी। खेती बंद कर दी, लेकिन कर्म की गहन गति को ठीक समझने के लिए पहले तो निषिद्ध कर्म | महावीर ने कभी सोचा न होगा कि खेती बंद करके ये और भी के तत्व को ठीक से समझ लेना चाहिए। कर्म और अकर्म को तो | | निषिद्ध कर्म न करने लगें! खेती तो बंद कर दी और महावीर के समझना ही चाहिए, निषिद्ध कर्म को भी ठीक से समझ लेना अधिकतम मानने वाले क्षत्रिय थे, क्योंकि महावीर क्षत्रिय थे। चाहिए। क्योंकि कर्म और अकर्म तो अल्टिमेट है, आखिरी सवाल अधिकतम मानने वाले क्षत्रिय थे, तलवार उठा नहीं सकते; क्योंकि है। लेकिन निषिद्ध कर्म, डे टु डे, इमीजिएट है, रोज का सवाल है। जब खेती नहीं कर सकते, तो तलवार उठाना तो बहुत निषिद्ध हो उठे नहीं, कि तय करना पड़ता है कि क्या करें!
जाएगा। युद्ध में जा नहीं सकते; सैनिक का काम कर नहीं सकते; रात आप करवट बदलते हैं। निषिद्ध कर्म करते हैं करवट क्षत्रिय रहे नहीं। खेती कर नहीं सकते किसान रहे नहीं। अब क्या बदलकर! आप कहेंगे, क्या पागलपन की बात करते हैं! रात | उपाय है? शूद्र होने की हिम्मत नहीं है। ब्राह्मण दरवाजे बंद किए करवट नहीं बदलेंगे, तो क्या होगा? महावीर की किताब पढ़ें। | बैठे हैं; वे भीतर घुसने न देंगे। सिवाय वैश्य होने के उन्हें कोई रास्ता महावीर का शास्त्र कहता है कि रात करवट बदलना निषिद्ध है। | नहीं रह गया। इसलिए समस्त महावीर के मानने वाले व्यापारी हो महावीर ने करवट नहीं बदली। रातों-रात एक ही करवट सोए। गए, वैश्य हो गए। क्योंकि रात करवट बदलें, पास में कोई कीड़ा-मकोड़ा दब जाए, | लेकिन वैश्य होकर उन्होंने इतनी हिंसा की, जितनी कि वे तो उसकी हत्या हो जाए। संभावना है, रात है, अंधेरा है, करवट | | किसान होकर कभी न करते! कभी न करते इतनी हिंसा। लेकिन बदली, कीड़ा-मकोड़ा दब जाए। तो एक ही करवट सोना, कम से दिखाई नहीं पड़ती है। रुपए को आप हाथ में लो, हिंसा का कम हिंसा की संभावना रहेगी। एक करवट तो सोना ही पड़ेगा। बिलकुल पता नहीं चलता। रुपया बिलकुल साफ मालूम पड़ता है। जितने मर गए, मर गए। दूसरी करवट से बचो; निषिद्ध कर्म है। | उसमें कहीं खून का धब्बा नहीं होता। हालांकि रुपए में जितने खून
महावीर जमीन पर पैर भी फूंककर रखेंगे। सूखी जमीन पर पैर | के धब्बे होते हैं, किसी और चीज में नहीं होते। लेकिन वह दिखाई रखेंगे; इसलिए महावीर वर्षा में यात्रा नहीं करेंगे। क्योंकि गीली | | नहीं पड़ता। एकदम साफ है। जमीन में कीटाणु पैदा हो जाते हैं। पानी पड़ जाए, गीली जमीन हो,। कहना चाहिए, स्वच्छ हिंसा है; एकदम साफ-सुथरी, क्लीन