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________________ गीता दर्शन भाग-20 ने पूछा कि ठीक से जवाब दो, आप बाएं जाओगे कि दाएं? उसने सूक्ष्म, बारीक। पता नहीं चलता, रहस्यपूर्ण है। कब कर्म कर्म कहा, मैं तो सीधा जाऊंगा। बाएं-दाएं बिलकुल जाता ही नहीं। | होता, कब अकर्म होता, यह तो है ही कठिनाई। कर्म कभी-कभी लायड जार्ज एक चुनाव में खड़ा था। पिछले चुनाव में वह किसी | | निषिद्ध कर्म भी होता है, तब और कठिनाई है। निषिद्ध कर्म के और दल की तरफ से लड़ा; इस चुनाव में किसी और दल की तरफ | संबंध में थोड़ी बात खयाल में ले लेनी चाहिए। से लड़ रहा था। किसी ने खड़े होकर पूछा कि आप क्या हैं? आप निषिद्ध कर्म को दो ढंग से सोचा जा सकता है। एक तो, कि हम कंजरवेटिव हैं? लिबरल हैं? सोशलिस्ट हैं, कम्यूनिस्ट हैं-क्या | कुछ कर्मों को तय कर लें कि ये निषिद्ध हैं, जैसा कि अदालत करती हैं? उसने कहा, मैं पोलिटीशियन हूं; मैं सिर्फ राजनीतिज्ञ हूं। मैं है, कानून करता है। कानून, कर्म तय कर लेता है कि ये निषिद्ध हैं। और कोई नहीं हूं। चोरी करना निषिद्ध है; हत्या करना निषिद्ध है; आत्महत्या करना राजनीतिज्ञ का कोई धंधा नहीं है। असल में गैर-धंधी लोगों का | निषिद्ध है। कुछ कर्म तय कर लिए हैं। ये निषिद्ध हैं, ये नहीं करने धंधा है। जिनके पास कोई धंधा नहीं है, जिनके वर्ण का कोई | चाहिए। ठिकाना नहीं है, कोई एप्टिटयूड नहीं है। जिंदगी में जिन्हें कुछ और | लेकिन कानून बहुत बारीक नहीं होता। धर्म और भी बारीक करने योग्य नहीं लगता...। खोज करता है। धर्म जानता है कि कभी-कभी कोई कर्म किसी लेकिन अगर ठीक व्यवस्था हो, अगर ठीक व्यवस्था हो तो जो | परिस्थिति में निषिद्ध हो जाता है और किसी परिस्थिति में निषिद्ध लोग राजनीति पर सोचते हैं, पोलिटीशियंस नहीं, पोलिटिकल | | नहीं होता। हत्या साधारणतया निषिद्ध है, युद्ध के मैदान पर निषिद्ध थिंकर्स-वे तो ब्राह्मण होंगे। लेकिन जो राजनीति को चलाते हैं, | नहीं होती है। अगर ठीक व्यवस्था हो, सुसंगत व्यवस्था हो, तो वे टेक्नीशियन | निषिद्ध निर्णीत चीज नहीं है; परिस्थिति के साथ बदल जाती है। होंगे! तो वे शूद्र में जाएंगे। और कभी-कभी तो ऐसा होता है कि दो निषिद्ध कर्मों के बीच लेकिन अभी उनकी कोई स्थिति नहीं है। अभी वे वर्णसंकर हैं। विकल्प खडा हो जाता है. आल्टरनेटिव हो जाता है। क्या करो। इसलिए मैंने वर्णसंकर कहा है। सच बोलो, तो हिंसा हो जाती है। हिंसा बचाओ, तो झूठ बोलना पड़ता है। फिर क्या करो? दो निषिद्ध कर्म आड़े खड़े हो जाते हैं। एक को बचाओ, तो दूसरा निषिद्ध कर्म होता है। दूसरे को बचाओ, कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।। तो पहला हो जाता है। अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः।।१७।। बहुत पुरानी एक तार्किक गुत्थी है। एक आदमी अपने रास्ते से कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्म का स्वरूप । गजर रहा है, एक ब्राह्मण। सीधा-सादा आदमी है। एक कसाई भी जानना चाहिए तथा निषिद्ध कर्म का स्वरूप भी जानना | भागा हुआ आया है। वह अपनी गाय को खोज रहा है, जो उसके चाहिए, क्योंकि कर्म की गति गहन है। हाथ से छूटकर भाग गई है। वह उस आदमी से पूछता है, ब्राह्मण से कि यहां से एक गाय भागी गई है? हाथ में उसके काटने की कुल्हाड़ी है। ब्राह्मण देखता है, कसाई है। आंखें बताती हैं, हाथ की क हते हैं कृष्ण, कर्म का स्वरूप, अकर्म का स्वरूप और कुल्हाड़ी बताती है, खून के धब्बे बताते हैं। वह कहता है, गाय यहां पा निषिद्ध कर्म का स्वरूप जानना चाहिए, क्योंकि कर्म से गई है? गाय किस तरफ गई है? की गति गहन है। ___ वह ब्राह्मण मुश्किल में पड़ गया। बड़ी मुश्किल में पड़ गया। निषिद्ध कर्म, वे कर्म जो करने योग्य नहीं हैं, उनका स्वरूप भी उसने किताब में पढ़ा है कि झूठ बोलना निषिद्ध कर्म है। लेकिन जानना चाहिए। सच बोले, तो यह कसाई गाय को पकड़ लेगा और हत्या करेगा। पहले सूत्र में कर्म और अकर्म की बात की। अब वे तीसरा एक | तो मैं भी भागीदार हो जाऊंगा। और गोहत्या तो निषिद्ध है ही। सभी और तत्व जोड़ते हैं। वे कहते हैं, निषिद्ध कर्म, उसका स्वरूप भी | | हत्याएं निषिद्ध हैं। फिर हत्या में भागीदार होना निषिद्ध है। अब जानना चाहिए क्योंकि कर्म की गति गहन है। गहन मतलब. | अगर झूठ बोलूं, तो भी निषिद्ध कर्म हो जाएगा; सच बोलूं, तो भी
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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