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________________ गीता दर्शन भाग-20 क्योंकि शूद्र किसलिए आतुर है ब्राह्मण होने को? क्योंकि | का निरीक्षण करके लिखे कि यह बच्चा क्या हो सकता है, इसका ब्राह्मण कल तक प्रिविलेज्ड क्लास थी; महत्वपूर्ण थी। उसका | | झुकाव क्या है, इसका एप्टिटयूड क्या है! ह्मण होना ही पर्याप्त था। कल शद्र होना भी महत्वपर्ण हो सकता। यह वही बात हो गई। अगर मनोवैज्ञानिक तय कर दे कि है। और जैसी हालत चल रही है, उसमें हो जाएगा। और जो शूद्र | | एप्टिट्यूड क्या है, और वह कह दे कि इस बच्चे को शूद्र होना है, के घर में पैदा नहीं होगा, वह भगवान को कोसेगा कि एकदम गलत | इसको मजदूर होना चाहिए; तो फिर क्या हुआ? फिर वापस वर्ण बात की। शूद्र के घर में पैदा करते, तो इलेक्शन में भी सुनिश्चित | लौटा! सीट थी। जगजीवनराम से पूछिए! शूद्र होना गुण है! और कोई भी | हमने जन्म से तय किया था; अब जन्म से तय न हुआ। जन्म से गुण न हो, तो शूद्र होना भी गुण है अब! जैसा कभी ब्राह्मण होना तय करना परमात्मा के हाथों में छोड़ना था। प्राइमरी स्कूल में एक गुण था! | मनोवैज्ञानिक के हाथ में छोड़ना है, जो कि परमात्मा जैसे कुशल तो मैं तो कहूंगा, जरा जल्दी मत करो शूद्रों से, ब्राह्मण होने की। हाथ नहीं हो सकते। कम से कम मनोवैज्ञानिक के हाथ, ब्राह्मण शूद्र हो जाएंगे। जगजीवनराम कौन न होना चाहेगा? | मनोवैज्ञानिक खुद आधे पागल हैं, इनके हाथ में तय करवाना कि जगजीवनराम में वैसे कोई भी गुण न हों, लेकिन शूद्र होना बड़ा बच्चा क्या बने-शूद्र, कि ब्राह्मण, कि क्षत्रिय, किं वैश्य-क्या गुण है! बने? कहां जाए? इसकी जीवन-यात्रा क्या हो? एक मनोवैज्ञानिक यह आज की जो विकृत स्थिति है, इसमें कोई मेरी सलाह से नहीं | तय करे! रुकने वाला है। लेकिन मेरी अपनी समझ यही है। आज तो दौड़ हमने जो सोचा था, वह ज्यादा गहरा था। हमने सोचा था कि शुरू हो गई है। बीमारी चल चुकी है। रोकना करीब-करीब | यह जीवन की व्यवस्था आत्मा का अपना झुकाव है। और परमात्मा असंभव है। लेकिन जो मुझे ठीक लगता है, वही मुझे कहना | के नियमों के अनुसार, जन्म के साथ ही क्यों न तय हो जाए? चाहिए। मुझे तो ठीक यही लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने | आत्मा क्यों न अपने ही चुनाव से उस घर में पैदा हो जाए, जहां गुण-कर्म को ठीक से जांच-पड़ताल कर ले, फिर आगे बढ़े।। | उसका एप्टिटयूड हो, जहां उसका झुकाव हो। अभी पश्चिम के मनोवैज्ञानिक सलीवान या पर्ल्स या और दूसरे | यह बहुत आश्चर्य की बात है। हिंदुस्तान में शूद्रों को हुए कोई मनोवैज्ञानिक इस सुझाव पर खड़े हैं कि प्रत्येक स्कूल में एक-एक | दस हजार वर्ष होते हैं। दस हजार वर्षों में शूद्रों ने कोई बगावत नहीं मनोवैज्ञानिक होना चाहिए अनिवार्य रूप से, प्रत्येक प्राइमरी स्कूल | की, कोई विद्रोह नहीं किया। अगर शूद्र अपने भाग्य से बहुत में। क्यों? क्योंकि वे कहते हैं कि जब तक बच्चे का गुणधर्म न | | नाखुश थे, तो बगावत हो जानी चाहिए थी। लेकिन वे नाखुश नहीं समझा जा सके, तब तक तय नहीं करना चाहिए कि उसे क्या शिक्षा | | थे। उनका एप्टिटयूड मेल खा रहा था; वे नाखुश नहीं थे, असंतुष्ट दी जाए। बाप तय नहीं करे; क्योंकि बाप को क्या पता कि बच्चे नहीं थे। का गुणधर्म क्या है? यह बच्चा गणितज्ञ बन सकता है कि संगीतज्ञ, | इधर दो सौ वर्षों में अंग्रेजी-व्यवस्था के बाद नाखुश होने शुरू यह बाप कैसे तय करेगा? रुझान से, कि बाप को संगीत अच्छा | हुए। पहली बार एक ऐसी समाज-व्यवस्था सत्ता में आई इस मुल्क लगता है, इसलिए तय कर ले कि मेरा लड़का संगीतज्ञ हो जाए? | | में, जिसको वर्ण की आंतरिक धारणा का कोई भी पता नहीं था। लेकिन लड़के में गुणधर्म है या नहीं? या बाप तय कर ले कि उसने चीजों को तोड़ना शुरू किया। उसने वर्णों और वर्गों को लड़का इंजीनियर हो जाए, क्योंकि इंजीनियर की बाजार में कीमत | | लड़ाना शुरू किया। उसने हिंदू को मुसलमान से लड़ाया, इतना ही है, मार्केट वैल्यू है! तो फिर, लेकिन लड़का इंजीनियर होने का | | नहीं; उसने शूद्र को ब्राह्मण से लड़ाया। उसने सारा अस्तव्यस्त कर गुणधर्म लिए है या नहीं? | दिया। उसने भारत की बहुत गहरी जड़ें, जो हजारों सालों में हमने पश्चिम का मनोवैज्ञानिक कह रहा है कि आज जगत में जो इतना | | आरोपित की थीं, सब हिला डालीं। आज तो सब अव्यवस्थित है। संताप है, उसका कुल कारण यह है कि कोई भी अपनी जगह पर फिर भी मैं यही कहूंगा कि व्यक्ति अपने गुणधर्म को ही सोचे। नहीं है। इसका क्या मतलब हुआ? इसलिए वे कहते हैं, एक-एक | | जन्म की बहुत फिक्र न भी करे, तो भी बहुत आंतरिक सोच-समझ, मनोवैज्ञानिक बिठा दो हर प्राइमरी स्कूल में, जो चार साल बच्चों | | इंट्रास्पेक्शन से सोचे कि मैं क्या हो सकता हूं! अगर उसे लगता हो 188
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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