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________________ वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान ढंग, अपनी व्यवस्था है। वह सारी की सारी व्यवस्था एक प्रशिक्षण | आज। आज तो कोई भी जहां है, वहां रहने को राजी नहीं है, दौड़ है। वह बचपन से घर में मिल रहा है। बच्चा बड़ा हो रहा है और | | ही रहा है। उस दौड़ के दुष्परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं। प्रशिक्षण मिल रहा है। बच्चा बड़ा हो रहा है बाप के साथ, मां के | मैं उन ब्राह्मणों के पक्ष में नहीं हूं, जो इसलिए भयभीत हैं कि अगर साथ, भाइयों के साथ, और प्रशिक्षण जारी है। उसकी ट्रेनिंग हो रही | | शूद्र ब्राह्मण हो जाएं, अगर शूद्र भी ज्ञानवान हो जाएं, तो उनकी कोई है; उसके खून, हड्डी, मांस, मज्जा में चीजें डाली जा रही हैं, पहुंच | | बपौती छिन जाएगी। उनके पक्ष में नहीं हूं। जिन ब्राह्मणों को ऐसा डर रही हैं। जब वह जवान होता है, तब वह निर्मित हो चुका। अब उचित है कि उनकी बपौती छिन जाएगी, उनके पास कोई बपौती ही नहीं है। है कि जो उसके भीतर निर्मित हुआ है, वह उस दिशा से ही खोजे। | जिन ब्राह्मणों को यह डर है कि कोई और जान लेगा, तो उनका कुछ कठिनाई तो तब है, जब उस दिशा से पाया न जा सके। पाया | | छिन जाएगा, उन्होंने कुछ जाना ही नहीं है। ब्रह्म किसी की बपौती जा सकता है। कोई ब्राह्मण ऐसे किसी सत्य को नहीं पा लिया है, नहीं है। ज्ञान और सत्य किसी की बपौती नहीं है। जो शूद्र शूद्र रहकर न पा सकता हो। कोई शूद्र ऐसी किसी शांति ब्राह्मण को भयभीत होने की जरूरत नहीं है। भयभीत इसीलिए को नहीं पा लिया है, जो कि ब्राह्मण ब्राह्मण होकर न पा सकता हो। है कि वह ब्राह्मण नहीं है। शूद्र को भी भयभीत होकर कुछ और कोई क्षत्रिय किसी ऐसी चीज को नहीं पा लिया है, जो कि शूद्र शूद्र | होने की जरूरत नहीं है। जरूरत इसीलिए पड़ रही है कि वह भी रहकर न पा सकता हो। नहीं समझ पा रहा है कि शूद्र होने का क्या अर्थ है! शूद्र शब्द ही नपा सकता हो, तब सवाल उठता है। लेकिन जहां तक आत्मिक निंदा का हो गया है। ब्राह्मण शब्द ही पूजा का हो गया है। जब ऐसी अनुभव का संबंध है, जहां तक परमात्मा के द्वार की खोज की बात विकृति हो गई है, तो शूद्र रोके नहीं जा सकते; वे तो दौड़ेंगे और है, वहां तक कहीं से भी उसे पाया जा सकता है। और अपने ही कर्म ब्राह्मणों की पंक्ति में सम्मिलित होंगे। दौडेंगे. वैश्य बनेंगे। दौडेंगे. में और अपने ही गुण के अनुसार बर्तते हुए सरलता से पाया जा क्षत्रिय बनेंगे। और यह सारी की सारी दौड़ पूरे समाज को एक सकता है, अन्यथा चीजें अकारण ही जटिल हो जाती हैं। मिश्रित ढंग दे देगी। जैसा कि सारी दुनिया में है। सिर्फ भारत में एक अमिश्रित व्यवस्था थी, जहां चीजें बंटी थीं—पैरेलल, समानांतर। और हमने एक गहरा प्रयोग किया था। प्रश्नः भगवान श्री, प्रश्न का दूसरा हिस्सा रह गया __ मैं तो अपनी तरफ से यही सुझाव दूंगा कि शूद्र शूद्र होने के गुण है, जिसमें आप यह कहना चाहते थे कि आज के युग और कर्म के अर्थ को समझे। वह बहुत मीनिंगफुल है। और अगर में शूद्र के घर में उत्पन्न हुआ ब्राह्मण क्या करेगा? उसे ऐसा लगे कि नहीं, उसकी जीवन की नियति वह नहीं है। लेकिन ध्यान रहे, उसे ऐसा लगे भीतर से कि उसकी नियति यह नहीं है, तो उसे जो लगे नियति, वह उस तरफ जाए। लेकिन दूसरे का वस्था विकृत हुई है। चीजें अस्तव्यस्त हो गई हैं। आज | की स्पर्धा में न जाए। इसलिए ब्राह्मण न होना चाहे कि ब्राह्मण बहुत स्प शूद्र के घर में उत्पन्न हुआ बेटा, पहली तो बात, मुझसे | मजे लूट रहे हैं, इसलिए मैं ब्राह्मण हो जाऊं। तब वह अपने ___ पूछने नहीं आएगा कि मैं क्या करूं। हमारे उत्तरों पर। | गुण-कर्म का विचार नहीं कर रहा है। निर्भर नहीं रहेगा। शूद्र का बेटा, शूद्र का बेटा है, यह मानने को ही कोई ब्राह्मण इसलिए शूद्र न हो जाए कि शूद्र आज बड़ी प्रिफरेंस राजी नहीं है, पहली बात। इनकार कर चुका है। उसने ब्राह्मण होने पा रहे हैं! प्रिविलेज्ड क्लास है इस वक्त शूद्रों की। इस वक्त शूद्र की कोशिश शुरू कर दी है। ब्राह्मण ने वैश्य होने की कोशिश शुरू जो हैं, जैसे कभी ब्राह्मण प्रिविलेज्ड थे, ऐसे आज शूद्र हैं। आज, कर दी है। वैश्य ने कुछ और होने की कोशिश शुरू कर दी है। सब मुझे पता है भलीभांति कि न मालूम कितनी यूनिवर्सिटीज में, न किसी और कोशिश में लगे हैं। वे सब कोशिश में लगे हैं कुछ और | मालूम कितने कालेजों और स्कूलों में, न मालूम कितने लड़कों ने होने की। | अपने को शुद्र गिनाया हुआ है, जो कि शुद्र नहीं हैं। क्योंकि शूद्र पूरा समाज, जो जहां खड़ा है, वहां खड़े होने को राजी नहीं है। | को स्कालरशिप भी है; शूद्र को नौकरी में भी स्थान नियत है। आज कहीं और जाने के लिए आतुर है। एक विक्षिप्तता है समाज में नहीं कल, ब्राह्मण भी शूद्र होने को आतुर हो सकता है। 87
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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