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ॐ गीता दर्शन भाग-2 0
जा
हलन-चलन होगा।
लेकिन कठिनाई क्या है? वर्ण-व्यवस्था बहुत गहरी मनोवैज्ञानिक व्यवस्था है। आप कठिनाई इसमें नहीं थी। शूद्र होने में कठिनाई नहीं है। ब्राह्मण जानकर हैरान होंगे, अगर आज के भी मनोविज्ञान के सारे तथ्य होने में कठिनाई नहीं है। कठिनाई पैदा हुई जिस दिन हमने समझा, आपके खयाल में आ जाएं. तो बहत हैरान होंगे। मनोवैज्ञानिक ब्राह्मण ऊपर है और शद्र नीचे है। उस दिन शद्र के मन में भी वासना कहते हैं कि तीन वर्ष की उम्र में बच्चा अपनी जिंदगी का पचास जगी कि मैं ऊपर जाऊं। उस दिन ब्राह्मण के मन में भी डर जगा कि प्रतिशत ज्ञान सीख चुका होता है। पचास प्रतिशत! तीन वर्ष की उम्र | मुझे कोई नीचे न उतार दे। तब चीजें स्वस्थ न रह गईं। सब बीमार का बच्चा पचास प्रतिशत बातें सीख चुका जिंदगी की। अब बाकी हो गया। जिंदगी में, सत्तर साल में पचास प्रतिशत ही सीखेगा।
अगर वर्ण की व्यवस्था कभी लौटेगी और मुझे लगता है, __ और यह भी मजे की बात है कि यह जो पचास प्रतिशत तीन मनुष्य की जाति को अगर स्वस्थ होना हो, तो लौटेगी अगर साल की उम्र में सीखा गया है, यह फाउंडेशन है, यह बुनियाद है। | कभी लौटेगी, तो ऊपर-नीचे की तरह नहीं लौटेगी। इसको अब कभी नहीं बदला जा सकता। बाद में जो सीखेगा, वह चार सीढ़ियों पर चार आदमी खड़े हो जाते हैं। एक ऊपर की इसके ऊपर बनाया हुआ भवन है, जो बदला जा सकता है। जिसे सीढ़ी पर, एक नीचे की सीढ़ी पर, दो बीच की सीढ़ियों पर। ऐसी बदला जा सकता है, वह बुनियाद नहीं है। और अगर इसकी | सीढ़ी दर सीढ़ी वर्ण की व्यवस्था नहीं लौटेगी। कृष्ण के मन में भी बनियाद बदली, तो यह बच्चा विक्षिप्त हो जाएगा।
वैसी व्यवस्था नहीं है। किसी समझदार के मन में वैसी व्यवस्था इसलिए अगर वर्ण की व्यवस्था यह कहती है कि शूद्र के घर में नहीं रही। पैदा हुआ बच्चा अपने ही परिवार की व्यवस्था, अपने ही जीवन के चार आदमी एक ही जमीन पर खड़े हैं, एक समतल भूमि ढंग से अपने जीवन की नियति को पाने के प्रयास में लगे; ब्राह्मण पर-ऐसी व्यवस्था लौटेगी। वर्ण समतल भूमि पर खड़े हो सकें, का बच्चा अपनी ही नियति से, अपनी व्यवस्था से अपनी खोज में | | तो लौट सकते हैं। और तब प्रत्येक व्यक्ति को, उसकी जिंदगी जहां लगे, तो बहुत मनोवैज्ञानिक है यह बात। क्योंकि तीन साल की उम्र बड़ी हुई, जैसी बड़ी हुई, उसी मार्ग से खोज लेना शांति की दृष्टि में आधा ज्ञान पूरा हो जाता है। और तेरह-चौदह साल की उम्र तक से, आनंद की दृष्टि से, संतोष की दृष्टि से, अंततः चेतना की । सारा ज्ञान करीब-करीब पूरा हो जाता है।
उपलब्धि की दृष्टि से उपयोगी है। और अगर वह यहां-वहां जाता यह जानकर आप चकित होंगे, पिछले महायद्ध में अमेरिका में है...। मिलिट्री में भर्ती होने वाले स्नातकों, ग्रेजुएट्स की मानसिक ___ यह प्रश्न करीब-करीब ऐसा है—अगर हम टेक्नोलाजिकली, परीक्षाएं ली गईं, तो जो औसत उम्र मिली ग्रेजुएट्स की, वह साढ़े तकनीकी ढंग से समझें तो यह ऐसा है कि कोई हमसे पूछे कि तेरह साल—मानसिक उम्र! फौज में भर्ती होने वाले, युनिवर्सिटी एक डाक्टर अगर वकालत करना चाहे, तो हर्ज तो नहीं है कोई? से निकले हुए स्नातकों की मानसिक उम्र इतनी निकली, जितनी | एब्सर्ड है! क्योंकि अगर उसने डाक्टर होने की शिक्षा ली है और साढ़े तरह साल के बच्चे की होती है। उनकी उम्र किसी की बाइस जिंदगी के कीमती समय को डाक्टर होने में गंवाया है, तो अब होगी, किसी की चौबीस, किसी की बीस–शारीरिक उम्र। लेकिन | वकालत करने वह जाएगा, तो उपद्रव ही होने वाला है। कोई मानसिक उम्र साढ़े तेरह वर्ष निकली! तब तो सारी दुनिया के | अदालत उसको आज्ञा न देगी कि आप वकालत करें। अदालत मनोवैज्ञानिक चिंतित हो गए। इसका मतलब क्या हुआ? | कहेगी कि फिर वकील होने की ट्रेनिंग लें फिर से, तब लौटें। और
इसका मतलब यह हुआ कि अगर हम सारी दुनिया की मानसिक | तब भी, तब भी कठिनाई होगी। क्योंकि जो भी ट्रेनिंग हमने ले ली, उम्र निकालें, तो दस साल, नौ-दस साल से ज्यादा नहीं निकलेगी। | उसको अनट्रेंड नहीं किया जा सकता। जो भी हमने जान लिया, इसका यह मतलब हुआ कि तेरह-चौदह साल की उम्र तक आदमी उसको भुलाया नहीं जा सकता। का मन करीब-करीब पक्का और मजबूत हो जाता है। अगर इस वर्ण की व्यवस्था एक बहुत तकनीकी व्यवस्था थी। उसमें शूद्र मन के विपरीत कुछ मार्ग उसने चुना, तो उसकी जिंदगी एक के जीवन का अपना ढंग है, अपनी व्यवस्था है। ब्राह्मण के जीवन फ्रस्ट्रेशन और विषाद का मार्ग होगी।
का अपना ढंग, अपनी व्यवस्था है। क्षत्रिय के जीवन का अपना
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