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वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान
छोटे बच्चे झुक सकते हैं; लोच है उनमें एक युवक और एक युवती, जब पक गए, तब उनमें झुकना असंभव हो जाता है। तब वे लड़ ही सकते हैं, झुक नहीं सकते। टूट सकते हैं, झुक नहीं सकते। इसलिए आज पश्चिम में पुरुष और स्त्री दुश्मन की भांति खड़े हैं। पति और पत्नी, एक तरह का युद्ध है, एक तरह की लड़ाई है।
एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ने किताब लिखी है, इंटीमेट वार । आंतरिक युद्ध, प्रेमपूर्ण युद्ध - ऐसा कुछ अर्थ करें। और प्रेमपूर्ण युद्ध, यानी विवाह | इंटीमेट वार जो है, विवाह के ऊपर किताब है; कि दो आदमी प्रेम का बहाना करके साथ-साथ लड़ते हैं, चौबीस घंटे ! इसका कारण ?
इसका कारण कुल इतना है। कोई बेटा अपनी मां को बदलने का कभी नहीं सोचता कि दूसरी मां मिल जाती, तो अच्छा होता। कोई बेटा अपने बाप को बदलने का नहीं सोचता कि दूसरा बाप मिल
तो बहुत अच्छा होता। कोई भाई अपनी बहन को बदलने का नहीं सोचता कि दूसरी बहन मिल जाती, तो अच्छा होता। क्यों ? क्या दूसरी बहनें अच्छी नहीं मिल सकतीं ? क्या दूसरे बाप अच्छे नहीं मिल सकते ? क्या दूसरी मां के अच्छे होने में कोई असुविधा है इतनी बड़ी पृथ्वी पर ? नहीं; यह खयाल नहीं आता। क्योंकि इतने बचपन में जब कि मन बहुत नाजुक और कोमल होता है, बच्चा मां से राजी हो जाता है।
बाल-विवाह के पीछे एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया थी कि जिस तरह मां से बच्चा राजी हो जाता है, उसी तरह वह पत्नी से भी राजी हो जाता है। फिर वह सोचता ही नहीं कि दूसरी पत्नी भी हो। जैसे मां दूसरी हो, ऐसा नहीं सोचता ; पिता दूसरा हो, ऐसा नहीं सोचता; ऐसे ही पत्नी भी पत्नी भी उसके साथ-साथ इतनी निकटता से बड़ी होती है कि स्वभावतः, दूसरी पत्नी हो या दूसरा पति हो, यह खयाल ही नहीं उठता।
लेकिन चौबीस साल या पच्चीस साल या तीस साल की उम्र में शादी होगी, तो यह बात बिलकुल असंभव है कि यह खयाल न उठे। जिसमें न उठे, वह आदमी बीमार होगा, उसका दिमाग खराब होगा। तीस साल की उम्र तक जिस युवक ने हजार स्त्रियों को देखा-पहचाना, हजार बार सोचा कि इससे शादी करूं कि उससे करूं, इससे करूं कि उससे करूं! तीस साल के बाद शादी की, फिर कलह और उपद्रव शुरू हुआ। उसे खयाल नहीं आएगा कि पड़ोस की स्त्री से शादी हो जाती तो ज्यादा बेहतर होता ?
मैंने सुना है, एक पत्नी अपने पति को सुबह दफ्तर विदा करते
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| वक्त कह रही है कि आपका व्यवहार ठीक नहीं है। सामने देखो; सामने की पोर्च में देखो। पति ने उस तरफ आंख उठाकर देखा । पत्नी ने कहा, देखते हैं! पति अपनी पत्नी से विदा ले रहा है, तो | कितना गले लगकर चुंबन दे रहा है। ऐसा तुम कभी नहीं करते! उसके पति ने कहा, मेरी उस औरत से कोई पहचान ही नहीं है । वैसा करने का तो मेरा भी मन होता है, पर उस औरत से मेरी कोई पहचान ही नहीं है।
यह अमेरिका में मजाक घट सकती है। कल भारत में भी घटेगी। लेकिन भारत ऐसा पहले कभी सोच नहीं सकता था; इसको मजाक भी नहीं सोच सकता था। यह सिर्फ बेहूदगी मालूम पड़ती। यह | मजाक भी नहीं मालूम पड़ सकती थी। इसके कारण थे । कारण बहुत साइकोलाजिकल थे, बहुत गहरे थे ।
फिर एक और ध्यान लेने की बात है कि बाल-विवाह का मतलब है, दो बच्चों में सेक्स का तो खयाल नहीं उठता, सेक्स का कोई सवाल नहीं होता, कामवासना का कोई सवाल नहीं होता। दो छोटे बच्चों की शादी कर दी, तो उनके बीच कोई कामवासना नहीं होती। कामवासना आने के पहले उनके बीच मैत्री बन जाती है।
लेकिन जब दो बच्चे बच्चे नहीं होते, जवान होते हैं; और उनकी हम शादी करते हैं, मैत्री नहीं बनती पहले, पहले कामवासना आती | है। और जब कामवासना पहले आएगी, तो संबंध बहुत जल्दी विकृत और घृणित हो जाएंगे। उनमें कोई गहराई नहीं होगी; छिछले होंगे। और जब कामवासना चुक जाएगी, तो संबंध टूटने के करीब पहुंच जाएंगे। क्योंकि और तो कोई संबंध नहीं है।
जिन दो बच्चों ने कामवासना के जगने के पहले मित्रता स्थापित कर ली, कल कामवासना भी विदा हो जाएगी, तो भी मित्रता बचेगी। लेकिन जिन दो जवानों ने कामवासना के बाद मित्रता | स्थापित की, उनकी मित्रता स्थापित होती नहीं, मित्रता सिर्फ | कामवासना का बहाना होती है। जब कल कामवासना क्षीण हो जाएगी, तब मित्रता भी टूट जाएगी।
आज अमेरिका में किन्से जैसा मनोवैज्ञानिक कहता है कि बाल-विवाह पर वापस लौट जाना चाहिए। अन्यथा पूरा समाज रोगग्रस्त हो जाएगा।
मैं आपसे कहता हूं, पचास साल बाद दुनिया के मनोवैज्ञानिक कहेंगे कि वर्ण-व्यवस्था पर वापस लौट जाना चाहिए । लेकिन पचास साल बाद कहेंगे वे । और हिंदुस्तान के विचारक तो सौ साल बाद ! जब वे कह चुकेंगे, तब इनकी बुद्धि में थोड़ा-सा