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गीता दर्शन भाग-26
है, वह व्यवस्था के जीर्ण-जर्जर हो जाने की वजह से है। आज भी, | | हैं। वे हजार तर्क उपस्थित करते हैं। उनके तर्कों का जवाब पुरानी मौलिक रूप से, सिद्धांततः, जो व्यक्ति जहां पैदा हुआ हो, बहुत परंपरा के लोगों के पास बिलकुल नहीं है। और ऐसे लोग आज न संभावना है. सौ में नब्बे मौके यही हैं कि अपने जीवन की व्यवस्था के बराबर हैं, जिनके पास आधनिक तर्क की चिंतना हो और परानी को वह उन्हीं मार्गों से खोजे, तो शीघ्रता से शांति को और विश्राम | | अंतर्दृष्टि हो। ऐसे लोग न के बराबर हैं। इसलिए कठिनाई में पड़ को उपलब्ध हो सकेगा; अन्यथा बेचैनी में और तकलीफ में पड़ेगा। गई है बात।
आज समाज में जो इतनी बेचैनी और तकलीफ है, उसके पीछे | | अगर मेरा वश चले, तो मैं चाहूंगा कि वह जीर्ण-जर्जर व्यवस्था वर्ण का टूट जाना भी एक कारण है।
| फिर से सुस्थापित हो जाए। उदाहरण के लिए एक-दो बात आपसे एक सुनियोजित व्यवस्था थी। चीजें अपने-अपने विश्राम से | | कहूं कि कई दफे कैसी कठिनाई होती है। अपने मार्ग को पकड़ लेती थीं। अब हरेक को मार्ग खोजना पड़ेगा, आज से पचास साल पहले सारे यूरोप और अमेरिका ने निर्णायक बनना पड़ेगा, निर्णीत करना पड़ेगा। उस निर्णय में बड़ी | बाल-विवाह की व्यवस्था तोड़ी। हिंदुस्तान में भी हिंदुस्तान के जो बेचैनी, बड़ी प्रतिस्पर्धा, बड़ा कांप्टीशन, बड़ी स्पर्धा होगी। बड़ी | समझदार थे, और हिंदुस्तान के समझदार सौ साल से पिछलग्गू चिंता और बड़ी बेचैनी पैदा होगी।
समझदार हैं। उनके पास कोई अपनी प्रतिभा नहीं है। जो पश्चिम में कुछ भी तय नहीं है। सब तय करना है। और आदमी की जिंदगी| | होता है, वे उसकी दुहाई यहां देने लगते हैं। लेकिन पश्चिम में जो करीब-करीब तय करने में नष्ट हो जाती है। फिर भी कुछ तय नहीं | | होता है, पश्चिम के लोग तर्क का पूरा इंतजाम करते हैं। इन्होंने भी हो पाता। कुछ तय नहीं हो पाता। लेकिन टूट गई व्यवस्था। और दुहाई दी कि बाल-विवाह बुरा है। फिर हमने भी बाल-विवाह के मैं समझता हूं कि लौटानी करीब-करीब मुश्किल है। क्यों? | खिलाफ कानून बनाए। व्यवस्था तोड़ी। अब अगर आज कोई
क्योंकि भारत ने जो एक छोटा-सा प्रयोग किया था, वह लोकल बाल-विवाह करता भी होगा, तो अपराधी है! था, स्थानिक था; भारत की सीमा के भीतर था। आज सारी सीमाएं लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि विगत पंद्रह वर्षों...। टूट गई हैं। आज सारी जमीन इकट्ठी हो गई है। जिन कौमों ने कोई | | अमेरिका के सौ बड़े मनोवैज्ञानिकों के एक आयोग ने रिपोर्ट दी है, प्रयोग नहीं किए थे वर्ण के, वे सारी कौमें आज भारत की कौम और और रिपोर्ट में कहा है कि अगर अमेरिका को पागल होने से बचाना उन सब की दष्टियां हमारी दष्टियों के साथ इकटी हो गई हैं। आज है. तो बाल-विवाह पर वापस लौट जाना चाहिए सारी दुनिया, गैर-वर्ण वाली दुनिया, बहुत बड़ी है। और वर्ण का | अभी हिंदुस्तान के समझदारों को पता नहीं चला। इनको पता भी प्रयोग करने वाले लोग बहुत छोटे रह गए।
| पचास साल बाद चलता है! क्यों लौट जाना चाहिए बाल विवाह और उन छोटे लोगों में भी, जो वर्ण के समर्थक हैं, वे नासमझ पर? पचास साल में ही अनुभव विपरीत हुए। सोचा था कुछ और, हैं; और जो वर्ण के विरोधी हैं, बड़े समझदार हैं। वर्ण के समर्थक | | हुआ कुछ और। बिलकुल नासमझ हैं। वे इसीलिए समर्थन किए जाते हैं कि उनके पहला अनुभव तो यह हुआ कि बाल-विवाह ही थिर हो सकता शास्त्र में लिखा है। लेकिन समर्थकों के पास भी बहुत वैज्ञानिक | है। चौबीस साल के बाद किए गए विवाह थिर नहीं हो सकते। दृष्टि नहीं है। और न उनके पास कोई मनोवैज्ञानिक पहुंच है कि वे | क्योंकि चौबीस साल की उम्र तक दोनों ही व्यक्ति, स्त्री और पुरुष, समझें कि बात क्या है। वे सिर्फ इसलिए दोहराए चले जाते हैं कि | | इतने सनिश्चित हो जाते हैं कि फिर उन दो के बीच तालमेल नहीं बाप-दादों ने कहा था। उनकी अब कोई सुनेगा नहीं। अब कोई हो सकता। वे दोनों अपने-अपने ढंग में इतने ठहर जाते हैं, फिक्स्ड चीज इसलिए सही नहीं होगी भविष्य में, कि बाप-दादों ने कही थी। | हो जाते हैं, कि फिर समझौता नहीं हो सकता।
डर तो यह है कि अगर बाप-दादों का बहुत नाम लिया, तो चीज | इसलिए पश्चिम में तलाक बढ़ते चले गए। आज अमेरिका में सही भी हो, तो गलत हो जाएगी। बाप-दादों ने कहा था, तो जरूरत पैंतालीस प्रतिशत तलाक हैं। करीब-करीब आधे तलाक हैं। जितनी कुछ गलत कहा होगा; आज हालत ऐसी है।
| शादियां होती हैं हर साल, उससे आधी शादियां हर साल टूटती भी और जो आज विरोध में हैं वर्ण की व्यवस्था के, वे बड़े समझदार हैं। यह संख्या बढ़ती चली जाएगी। हैं। समझदार मतलब, ज्ञानी नहीं; समझदार मतलब, बड़े तर्कयुक्त। बाल-विवाह एक बहुत मनोवैज्ञानिक तथ्य था। तथ्य यह था कि
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