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वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान
इसलिए बुद्ध जैसे आदमी स्वर्ण की अशर्फियां यहीं बाजार की | | खून अमिश्रित, अलग-अलग था। तो जैसे ही कोई आत्मा मरती, भीड़ में भी नहीं बचाएंगे। अगर बुद्ध और महावीर सारी धन-संपत्ति उसे चुनने के लिए स्पष्ट मार्ग थे मरने के बाद। एक आत्मा जैसे ही को छोड़कर, इस बड़े संसार में सड़कों पर भिखारी की तरह खड़े मरती, वह अपने गुण-कर्म के अनुसार शूद्र के घर पैदा होती, या हो गए, तो उसका कारण है। क्योंकि धन और संपत्ति को बचाना | ब्राह्मण के घर पैदा होती। प्रतिकर्म है, कर्म नहीं है। क्योंकि राबिन्सन क्रूसो ने एकांत द्वीप पर | भारत ने आत्मा को नया जन्म लेने के लिए चैनेल्स दिए हुए थे, नहीं बचाईं, तो बुद्ध इस भरी हुई भीड़ के महासागर में भी नहीं | | जो पृथ्वी पर कहीं भी नहीं दिए गए। इसलिए भारत ने मनुष्य की बचाएंगे। वे जानते हैं कि अशर्फियां किसी और को दृष्टि में रखकर | | आत्मा और जन्म की दृष्टि से गहरे मनोवैज्ञानिक प्रयोग किए, जो बचाई जा रही हैं। बेकार हो गईं। बुद्ध तो वही बचाएंगे, जो निर्जन पृथ्वी पर और कहीं भी नहीं हुए। एकांत द्वीप पर भी बचाने जैसा है। बुद्ध तो अपने को ही बचाएंगे, __ जैसे कि एक नदी बहती है। नदी का बहना और है, अनियंत्रित। बाकी सबकी फिक्र छोड़ देंगे।
| फिर एक नहर बनाते हैं हम। नहर का बहना और है, नियंत्रित और हमारा सारा कर्म प्रतिकर्म है, इसे अगर ठीक से देख लिया, तो व्यवस्थित। भारत ने समाज के गुण-कर्म के आधार पर नहरें बनाईं हमारा सारा अकर्म भीतरी कर्म बन जाता है-यह भी दिखाई पड़ नदियों की जगह, बहुत व्यवस्थित। उन व्यवस्थित नहरों का जाएगा।
विभाजन इतना साफ किया कि आदमी मरे, तो उसकी आत्मा को और कृष्ण कहते हैं, इसकी ठीक मध्यम रेखा को देख लेने से | चुनाव का सीधा-स्पष्ट मार्ग था कि वह अपने योग्य जन्म को ग्रहण व्यक्ति मुक्त होता है। इसलिए अर्जुन, मैं तुझसे कर्म और अकर्म | कर ले। इसलिए बहुत कभी-कभी ऐसा होता कि करोड़ में एक शूद्र की विभाजक रेखा की बात करूंगा।
ब्राह्मण के गुण का पैदा होता। कभी ऐसा होता कि करोड़ में एक ' वे अगले सूत्रों में उसकी बात करेंगे।
ब्राह्मण शूद्र के गुण का पैदा होता। अपवाद! अपवाद के लिए नियम नहीं बनाए जाते। और जब कभी ऐसा होता, तो उसके लिए
नियम की चिंता करने की जरूरत नहीं होती थी। प्रश्नः भगवान श्री, पिछली चर्चा के संबंध में एक कोई विश्वामित्र क्षत्रिय से ब्राह्मण में प्रवेश कर जाता। कोई प्रश्न है। कहा गया है, गुण और कर्म के अनुसार | नियम की चिंता न थी। क्योंकि जब कभी ऐसा अपवाद होता, तो मानव के चार मोटे विभाग बनाए गए। अब यदि शूद्र | प्रतिभा इतनी स्पष्ट होती कि उसे रोकने का कोई कारण न होता था। घर में जन्म पाया हुआ आदमी ब्राह्मणों के लक्षणों से | लेकिन वह अपवाद था; उसके लिए नियम बनाने की कोई जरूरत युक्त हो, तो उसे अपना निजी कर्तव्य निभाना चाहिए न थी। वह बिना नियम के काम करता था। या ज्ञान-मार्ग और ब्राह्मण जैसा जीवन ही उसके लिए | लेकिन आज स्थिति वैसी नहीं है। भारत की वह जो विभाजन हितकर हो सकता है, कृपया इसे स्पष्ट करें। की व्यवस्था थी आत्मा के चुनाव के लिए, वह बिखर गई।
अच्छे-भले लोगों ने बिखरा दी। कई दफे भले लोग ऐसे बरे काम
करते हैं, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। क्योंकि जरूरी नहीं र समें दो-तीन बातें खयाल में ले लें। एक तो, आज से || | है कि भले लोगों की दृष्टि बहुत गहरी ही हो। और जरूरी नहीं है र अगर हम तीन हजार साल पीछे लौट जाएं और यही |कि भले लोगों की समझ बहुत वैज्ञानिक ही हो। भला आदमी भी
सवाल मुझसे पूछा जाए, तो मैं कहूंगा कि शूद्र के घर | छिछला हो सकता है। पैदा हुआ हो, तो उसे शूद्र का काम ही निभाना चाहिए। लेकिन | उखड़ गई सारी व्यवस्था। अब नहरें साफ नहीं हैं। हालत नदियों आज यह न कहूंगा। कारण? कारण है।
जैसी हो गई है। नहरें भी हैं, खंडहर हो गई हैं; उनमें से पानी जब भारत ने वर्ण की इस व्यवस्था को वैज्ञानिक रूप से बांटा इधर-उधर बह जाता है। अब कोई व्यवस्था साफ नहीं है। अब हुआ था, विभाजन स्पष्ट थे। शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य और ब्राह्मण के इतनी साफ नहीं कही जा सकती यह बात। बीच कोई आवागमन न था, कोई विवाह न था, कोई यात्रा न थी। लेकिन नियम वही है। नियम में अंतर नहीं पड़ता। जो अंतर पड़ा
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