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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM आज भी हैं। उस समय थीं, तो बिलकुल स्वाभाविक लगता है। | बिना चित्रों के नहीं सोच पाता। आदमी को सोचने में चित्र बड़े क्योंकि मनुष्य की संतति का जन्म-शास्त्र बहुत विकसित नहीं था। सहयोगी हो जाते हैं। आज तो बहुत विकसित है। हम सबने देखी है, अभी भी घरों में टंगी हुई है भारत माता की लेकिन आज भी इतने विकसित संतति-शास्त्र के साथ, हमारा | | फोटो। वह तो कुछ बुद्धिमान हमारे मुल्क में पता नहीं क्यों नहीं हैं मस्तिष्क इतना विकसित नहीं है कि हम उसे सह सकें या उस संबंध कि भारत माता की खोज पर नहीं निकलते। फोटो तो घरों में लटकी में सोच सकें। क्योंकि अपनी जाति में शादी करना, बहुत दूर की | हुई है भारत माता की। लेकिन भारत माता कहीं खोजने से मिलने अपनी बहन से ही शादी करना है। जरा फासला है; दस-पांच | वाली नहीं है। लेकिन हजार, दो हजार साल बाद अगर कोई कहेगा पीढ़ियों का फासला होगा। अपनी ही जाति में शादी करना, | कि भारत माता नहीं थी, तो लोग कहेंगे, बिलकुल गलत कहते हैं। दस-पांच पीढ़ियों के पीछे एक ही पिता की संतति है वह। सौ पीढ़ी | | देखो, गांधीजी इशारा कर रहे हैं फोटो में भारत माता की तरफ। पीछे होगी, बहुत दूर जाएंगे. तो। लेकिन एक जाति में सब | | गांधीजी गलती कर सकते हैं? भारत माता जरूर रही होंगी। या तो बहन-भाई ही हैं। और ज्यादा पीछे जाएंगे तो एक महाजाति में भी कहीं गुहा-कंदराओं में छिप गई हैं हमारे पाप की वजह से। सब बहन-भाई हैं। आदमी जो भी समझना चाहे, उसे चित्रों में रूपांतरित करता है। जितने दूर जाएं, जितना विभिन्न बीजारोपण संयुक्त हो, उतनी | | असल में जितना हम पुराने में लौटेंगे, उतनी ही पिक्टोरियल लैंग्वेज विभिन्न समृद्धियां, उतने विभिन्न संस्कार, उतनी विभिन्न जातियों के | | बढ़ती जाती है। असल में दुनिया की पुरानी भाषाएं चित्रात्मक हैं। द्वारा अनभव किया गया सारा का सारा हजारों साल का इतिहास जैसे चीनी अभी भी चित्रों की भाषा है। अभी भी शब्द नहीं हैं. वर्ण जेनेटिक अणु में इकट्ठा होकर उस व्यक्ति को मिल जाता है। जितने | नहीं हैं, चित्र हैं; चित्रों में ही सारा काम करना पड़ता है; इसलिए दूर से ये दो धाराएं आएं, उतने विलक्षण व्यक्ति के पैदा होने की | चीनी सीखना बहुत मुश्किल मामला हो जाता है। साधारण भी कोई संभावना है। | सीखे तो दस-पंद्रह साल तो मेहनत करनी ही पड़े। क्योंकि कम से तो वर्णसंकर बहुत गाली थी अर्जुन के वक्त में, हिंदुस्तान में | कम दस-बीस हजार चित्र तो उसे याद होने ही चाहिए। अब चीनी अभी भी काशी में गाली है। लेकिन अब सारे जगत के बुद्धिमान | | में अगर झगड़ा लिखना है, तो एक झाड़ बनाकर उसके नीचे दो इस बात के लिए राजी हैं कि जितने दूर का वर्ण हो, जितनी संकरता औरतें बिठालनी पड़ती हैं, तब पता चलता है कि झगड़ा है। हो, उतने ही श्रेष्ठतम व्यक्ति को जन्म दिया जा सकता है। लेकिन | बिलकुल पक्का झगड़ा तो है ही। एक झाड़ के नीचे दो औरतें! अर्जुन को इससे लेना-देना नहीं है। अर्जुन कोई इस पर वक्तव्य | इससे बड़ा झगड़ा और क्या हो सकता है? नहीं दे रहा है। वह तो सिर्फ दलीलें इकट्ठी कर रहा है। सारी दुनिया की, जितने हम पीछे लौटेंगे, उतनी चिंतना पिक्टोरियल होगी। अभी भी हम सपना जब देखते हैं, तो उसमें शब्द नहीं होते, चित्र होते हैं। क्योंकि सपना जो है, वह प्रिमिटिव, प्रश्नः भगवान श्री, नर्क या स्वर्ग जैसे कुछ स्थान बहुत पुराना है, नया नहीं है। बीसवीं सदी में भी बीसवीं सदी का विशेष हैं क्या? ऐसा लगता है कि पाप और पुण्य | सपना देखना मुश्किल है। सपना तो हम देखते हैं कोई लाख साल एवं नर्क और स्वर्ग की कल्पना व्यक्ति को भयभीत पुराना। उसका ढंग लाख साल पुराना होता है। या प्रोत्साहित करने के हेतु की गई है। क्या आप इसलिए बच्चों की किताब में चित्र ज्यादा रखने पड़ते हैं और सहमत हैं इससे? शब्द कम रखने पड़ते हैं। क्योंकि बच्चा शब्दों से नहीं समझ सकेगा, चित्रों से समझेगा। अभी ग गणेश जी का, नाहक गणेश जी को फंसाना पड़ता है। गणेश जी का कोई लेना-देना नहीं है ग - क और स्वर्ग भौगोलिक स्थान नहीं हैं, लेकिन से। लेकिन बच्चा गणेश जी को समझेगा. फिर ग को समझेगा। 1 मानसिक दशाएं जरूर हैं। लेकिन आदमी का चिंतन | | बच्चा प्रिमिटिव है। सदा ही चीजों को चित्रों में रूपांतरित करता है। आदमी तो जितना हम पीछे लौटेंगे, उतने सारे मानसिक तत्व हमें
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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