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________________ दलीलों के पीछे छिपा ममत्व और हिंसा 4 प्रजा पिंड और तर्पण क्रिया नहीं करती है, उससे उनके पितृगण नर्क में जाते हैं। तो क्या पितृगण पिंडदान नहीं देने पर भूखे मरते हैं? यह क्या अर्जुन के चित्त की भ्रांति ही है ? अर्जुन के कारण सब अत्यंत ऊपरी, अत्यंत व्यर्थ हैं। कोई पितृगण आपके पिंड से बंधकर नहीं जीते हैं। और अगर आपके पिंडदान से किन्हीं जा चुके पितृगणों की आगे की यात्रा बिगड़ती हो, तब तो पिंडदान बड़ी खतरनाक बात है। आत्माएं अपने ही भीतर से अपनी यात्रा पर निकलती हैं। आपने उनके पीछे क्या किया और क्या नहीं किया, इससे उनकी यात्रा का कोई भी संबंध नहीं है। न लेकिन पुरोहितों का एक जाल है जगत में। और पुरोहितों का जाल जन्म से लेकर मृत्यु तक आदमी को कसता है, मरने बाद भी कसता है। और बिना आदमी को भयभीत किए आदमी का शोषण नहीं किया जा सकता। भय ही शोषण का आधार है । तो बेटे का शोषण किया जा सकता है, मरे हुए बाप के लिए भी भय दिखाकर । अर्जुन वह सब बातें कर रहा है। वह उसने सुनी होंगी। वह सब उसके आसपास हवा में रही होंगी। तब थीं, तब तो आश्चर्य नहीं, अभी भी हैं। पांच हजार साल पहले अर्जुन ने सुनी होंगी, कोई आश्चर्य की बात नहीं, अभी भी हैं। अर्जुन जो कह रहा है, उसने जो सुना होगा हवा में, जो पुरोहित समझाते रहे होंगे आसपास, वही कह रहा है। उसे कोई मतलब नहीं है। वह तो वे सब दलीलें इकट्ठी परेड करवा रहा है कृष्ण के सामने कि साबित हो जाए 1 वह भाग रहा है, भागना ही धर्म है, उचित है । वह इसीलिए ये सारी दलीलें ला रहा है। लेकिन इनमें कोई भी सत्य नहीं है । और न ही कोई वर्णसंकर से कोई विकृति होती है। उस दिन खयाल था। अभी भी है। करपात्री और शंकराचार्य से पूछिए, तो यही खयाल है। कुछ लोगों के खयाल बदलते ही नहीं, सारी दुनिया में सब बदल जाए! कुछ लोग खयाल को ऐसा पकड़ते हैं कि खयाल के नीचे से सारी जिंदगी निकल जाती है, लेकिन मुर्दा खयाल को पकड़े रह जाते हैं। क्रास ब्रीडिंग - जिसको वर्णसंकर कह रहा है अर्जुन — श्रेष्ठतम ब्रीडिंग है। क्रास ब्रीडिंग से संभावना श्रेष्ठतर होने की है। बीज में आप पूरी तरह उपयोग कर रहे हैं। उस वक्त आप खयाल में नहीं लाते कि अर्जुन के खिलाफ जा रहे हैं। जानवरों में उपयोग कर रहे हैं। आदमी में अभी उपयोग नहीं कर रहे हैं। इसलिए आज आदमी की ब्रीडिंग जानवरों से भी पिछड़ी हुई ब्रीडिंग है। आज हम जितने अच्छे कुत्ते पैदा कर लेते हैं कुत्तों में, उतना अच्छा आदमी आदमी में पैदा नहीं कर पाते। आदमी की अभी भी संतति की व्यवस्था एकदम अवैज्ञानिक है। अर्जुन के वक्त में तो रही ही होगी, आज भी है। आज भी आदमी से श्रेष्ठतर आदमी, मन और शरीर की दृष्टि से स्वस्थ, ज्यादा आयुष्य वाला, ज्यादा प्रतिभाशाली पैदा हो सके, इस तरफ हमारा कोई खयाल नहीं है। बीज की हम फिक्र करते हैं। बीज अच्छे से अच्छा होता जा रहा है— फलों का, फूलों का, गेहूं का। पशुओं में हम अच्छे से अच्छे पशु पैदा करने की फिक्र करते हैं। आदमी में अभी भी फिक्र नहीं है। लेकिन पुराने वक्त में ऐसा खयाल था कि अगर दूसरी जाति से | मिलना हुआ, तो जो बच्चा पैदा होगा वह वर्णसंकर हो जाएगा। सच तो यह है कि इस जगत में जितनी भी प्रतिभाशाली जातियां हैं, | वे सब वर्णसंकर हैं । और जितनी शुद्ध जातियां हैं, वे बिलकुल | पिछड़ गई हैं। नीग्रो बिलकुल शुद्ध हैं; अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले आदमी बिलकुल शुद्ध हैं; हिंदुस्तान के आदिवासी बिलकुल | शुद्ध हैं। जितनी भी विकासमान संस्कृतियां हैं, सभ्यताएं हैं, वे सभी वर्णसंकर हैं। असल में, जैसे दो नदियां मिलकर ज्यादा समृद्ध हो जाती हैं, वैसे | ही जीवन की दो विभिन्न धाराएं भी मिलकर ज्यादा समृद्ध हो जाती हैं। अगर अर्जुन ठीक है, तब तो बहन और भाई की शादी करवा देनी चाहिए, उससे बिलकुल शुद्ध बच्चे पैदा होंगे। लेकिन बहन और भाई की शादी से शुद्ध बच्चा पैदा नहीं होता, सिर्फ रुग्ण बच्चा पैदा होता है। बहन और भाई को हम बचाते हैं। जो बुद्धिमान हैं, वे चचेरे भाई और बहन भी बचाते हैं। जो उनसे भी ज्यादा बुद्धिमान हैं, वे अपनी जाति में शादी कभी न करेंगे। जो उनसे भी ज्यादा बुद्धिमान हैं, वे अपने देश को भी बचाएंगे। और आज नहीं कल, अगर किसी ग्रह पर, उपग्रह पर हमने कोई मनुष्य खोज लिए, तो जो बहुत बुद्धिमान हैं, वे इंटर प्लेनेटरी क्रास ब्रीडिंग की फिक्र करेंगे। लेकिन वह अर्जुन तो सिर्फ परेड करवा रहा है। वह तो यह कह रहा है कि यह यह उसने सुना है। ऐसी-ऐसी हानि हो जाएगी, | इसलिए मुझे भागने दो। न उसे क्रास ब्रीडिंग से मतलब है, न कोई वह जानकार है। उसकी जानकारी और कुशलता इस सबकी नहीं है। हां, ये उसके सुने हुए खयाल हैं। चारों तरफ हवा में ये बातें थीं, 67
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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