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________________ दलीलों के पीछे छिपा ममत्व और हिंसा 4 भौगोलिक बनाने पड़े। स्वर्ग चित्त की एक दशा है। जब सब सुखपूर्ण है, सब शांत है, सब फूल खिले हैं, सब संगीत से भरा है । लेकिन इसे कैसे कहें। इसे ऊपर रखना पड़ा। नर्क है, जहां कि सब दुख है, पीड़ा है, जलन है। नीचे रखना पड़ा। नीचे और ऊपर वेल्यूज बन गईं। ऊपर वह है, जो श्रेष्ठ है; नीचे वह है, जो बुरा है, निकृष्ट है। फिर जलन, दुख, पीड़ा, तो आग की लपटें बनानी पड़ीं। स्वर्ग, तो शीतल, शांत, एयरकंडीशनिंग की व्यवस्था करनी पड़ी। लेकिन वे सब चित्र हैं। लेकिन जिद पीछे पैदा होती है । जिद पुरोहित पैदा करवाता है। वह कहता है, नहीं, चित्र नहीं हैं। ये तो स्थान हैं। अब वह मुश्किल में पड़ेगा। क्योंकि जब खुश्चेव का आदमी पहली दफा अंतरिक्ष में पहुंचा, तो खुश्चेव ने रेडियो पर कहा कि मेरे आदमी चांद का चक्कर लगा लिए हैं। कोई स्वर्ग दिखाई नहीं पड़ रहा है। अब यह पुरोहित से झगड़ा है खुश्चेव का । खुश्चेव से पुरोहित को हारना पड़ेगा, क्योंकि पुरोहित दावा ही गलत कर रहा है । कहीं कोई ऊपर स्वर्ग नहीं है, कहीं कोई नीचे नर्क नहीं है। हां, लेकिन सुख की अवस्था ऊपर की अवस्था है, नर्क की अवस्था दुख की अवस्था, नीचे की अवस्था है। और यह नीचे - ऊपर को इतना भौगोलिक बनाने का कारण है। जब आप सुखी होंगे, तब आपको लगेगा जैसे आप जमीन से ऊपर उठ गए हैं। और जब आप दुखी होंगे, तो ऐसा लगेगा कि जमीन गड़ गए हैं। वह बहुत मानसिक फीलिंग है जब आप दुखी होंगे, तो सब तरफ ऐसा लगेगा कि अंधेरा छा गया। जब सुखी होंगे, तब सब तरफ लगेगा कि आलोक छा गया। वह फीलिंग है, भाव है, अनुभव है भीतर। जब दुखी होंगे, तो ऐसा लगेगा कि जैसे जल रहे हैं, जैसे कोई भीतर से आग जल रही है । और जब आनंदित होंगे, तो भीतर फूल खिलने लगेंगे। वे भीतरी भाव हैं। लेकिन कवि उनको कैसे बनाए ! चित्रकार उनको कैसे समझाए ! धर्मगुरु उन्हें कैसे लोगों के सामने उपस्थित करे! तो उसने बनाया उनका चित्र, तो ऊपर गया स्वर्ग, नीचे गया नर्क। लेकिन अब वह भाषा बेमानी हो गई। अब आदमी उस भाषा के पार चला गया; भाषा बदलनी पड़ेगी। तो मैं कहता हूं, ज्यॉग्राफिकल नहीं, भौगोलिक नहीं, साइकोलाजिकल हैं, स्वर्ग और नर्क हैं। और ऐसा भी नहीं है कि आप मरकर स्वर्ग चले जाएंगे और नर्क चले जाएंगे। आप चौबीस घंटे में कई बार स्वर्ग और नर्क में यात्रा करते रहते हैं। ऐसा नहीं है। कोई कि इकट्ठा एक दफा होलसेल, बिलकुल फुटकर है मामला; चौबीस घंटे का काम है। 69 जब आप क्रोध में होते हैं तो फौरन नर्क में होते हैं। जब आप प्रेम में होते हैं तो स्वर्ग में उठ जाते हैं। पूरे वक्त आपका मन नीचे-ऊपर हो रहा है। पूरे वक्त आप सीढ़ियां उतर रहे हैं अंधेरे की | और आलोक की ! ऐसा कोई इकट्ठा नहीं है। लेकिन जो आदमी जिंदगीभर नर्क में ही गुजारता हो, उसकी आगे की यात्रा भी अंधेरे की तरफ ही हो रही है। यह अर्जुन बेचारा सारी दुनिया को बचाने के लिए - आत्माएं स्वर्ग जाएं, इसके लिए; उनके बेटे पिंडदान करें, इसलिए; कोई विधवा न हो जाए, इसलिए; वर्णसंकरता न फैल जाए, विनाश न हो जाए - इतने बड़े उपद्रव के लिए...। यह आदमी सिर्फ भागना चाहता है | इतनी-सी छोटी बात की कृष्ण आज्ञा दे दें। लेकिन इसमें भी वह सेंक्शन मांग रहा है; इसमें भी वह चाह | रहा है कि कृष्ण कह दें कि अर्जुन, तू बिलकुल ठीक कहता है । ताकि कल जिम्मेवारी उसकी अपनी न रह जाए; तब वह कल कह | सके कि कृष्ण ! तुमने ही मुझसे कहा था, इसलिए मैं गया था। असल में इतनी भी हिम्मत नहीं है उसकी कि वह रिस्पांसबिलिटी अपने ऊपर ले ले, कि कह दे कि मैं जाता हूं। क्योंकि तब उसे दूसरा मन उसका कहता है कि कायरता होगी! यह तो उसके खून में नहीं है। यह भागना उसके वश की बात नहीं है। क्षत्रिय है, पीठ दिखाना उसकी हिम्मत के बाहर है। मर जाना बेहतर है, पीठ दिखाना बेहतर नहीं है। यह भी उसके भीतर बैठा है। इसलिए वह कहता है कि कृष्ण अगर साक्षी दे दें, और कह दें कि ठीक है, तू उचित कहता है. अर्जुन... । वह तो कृष्ण की जगह अगर कोई साधारण धातु का बना हुआ कोई पंडित-पुरोहित होता, तो कह देता कि बिलकुल ठीक कहता है अर्जुन, शास्त्र में ऐसा ही तो लिखा है; अर्जुन भाग गया होता। वह भागने का रास्ता खोज रहा है। लेकिन उसे पता नहीं कि जिससे वह बात कर रहा है, उस आदमी को धोखा देना मुश्किल है। वह | अर्जुन को पैना, गहरे देख रहा है। वह जानता है कि वह क्षत्रिय है और क्षत्रिय होना ही उसकी नियति है; वही उसकी डेस्टिनी है। वह ये सब बातें ऐसी कर रहा है, ब्राह्मणों जैसी । ब्राह्मण वह है नहीं । बातें ब्राह्मणों जैसी कर रहा है। दलीलें वह ब्राह्मणों की दे रहा है। | है वह ब्राह्मण नहीं, है वह क्षत्रिय । तलवार के अतिरिक्त वह कुछ नहीं जानता। एक ही शास्त्र है उसका। असल में अर्जुन जैसा क्षत्रिय
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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