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ITS गीता दर्शन भाग-1 AM
और बढ़ेंड रसेल के व्यक्तित्व में कुछ मेल है। जैसा मैंने कल कहा 7 ग-पग पर अर्जुन की भ्रांतियां जुड़ी हैं। कह रहा है कि सार्च और अर्जुन के व्यक्तित्व में कुछ मेल है। वह मेल इतना 4 अर्जुन कि जिन पिता, पुत्र, मित्र, प्रियजन के लिए हम है कि जैसा सार्च चिंतित है, वैसा अर्जुन चिंतित है, लेकिन यहां मेल राज्य-सुख चाहते हैं...। झूठ कह रहा है। कोई टूट जाता है इसके आगे। सार्च अपनी चिंता को सिद्धांत बना लेता | चाहता नहीं। सब अपने लिए चाहते हैं। और अगर पिता-पुत्र के है, अर्जन अपनी चिंता को सिर्फ प्रश्न बनाता है। यहां उसका बर्टेड | लिए चाहते हैं, तो सिर्फ इसलिए कि वे अपने पिता हैं, अपना पुत्र रसेल से मेल है।
है। वह जितना अपना उसमें जुड़ा है, उतना ही; इससे ज्यादा नहीं। बढ़ेंड रसेल एगनॉस्टिक है, जिंदगी के अंतिम क्षण तक पूछ रहा ___ हां, यह बात जरूर है कि उनके बिना सुख भी बड़ा विरस हो है। यह दूसरी बात है कि कोई कृष्ण नहीं मिला। कोई हर्जा भी नहीं | जाएगा। क्योंकि सुख तो मिलता कम है, दूसरों को दिखाई पड़े, है; आगे कभी मिल जाएगा। कोई हर्जा नहीं है। लेकिन पूछना वहां | | यह ज्यादा होता है। सुख मिलता तो न के बराबर है। बड़े से बड़ा है। यात्रा जारी है। मैं मानता हूं कि इस पृथ्वी पर बड रसेल के | | राज्य मिल जाए, तो भी राज्य के मिलने में उतना सुख नहीं मिलता, आस-पास पाल टिलिक जैसे जो आस्तिक हैं, ये इनसिंसियर हैं। | जितना राज्य मुझे मिल गया है, यह मैं अपने लोगों के सामने सिद्ध पाल टिलिक आत्मवंचक हो सकते हैं, रसेल नहीं है। और इस | कर पाऊं, तो सुख मिलता है। पृथ्वी पर पाल टिलिक और रसेल जैसे व्यक्ति साथ-साथ रहे हैं। और आदमी की चिंतना की सीमाएं हैं। अगर एक महारानी रास्ते मेरी अपनी समझ है कि बड रसेल आस्तिकता की तरफ ज्यादा से निकलती हो स्वर्ण आभषणों से लदी. हीरे-जवाहरातों से बढ़ा है, पाल टिलिक नहीं बढ़े; थियॉलाजिस्ट हैं।
लदी-तो गांव की मेहतरानी को कोई ईर्ष्या पैदा नहीं होती। क्योंकि और बड़े मजे की बात है कि दुनिया में धर्म का सबसे बड़ा शत्रु महारानी रेंज के बाहर पड़ती है। मेहतरानी की चिंतना की रेंज नहीं अगर कोई है, तो अधर्म नहीं है, थियॉलाजी है, धर्म-शास्त्र है। धर्म है वह, वह सीमा नहीं है उसकी। महारानी से कोई ईर्ष्या पैदा नहीं की सबसे बड़ी शत्रुता शास्त्रीयता में है। तो जो लोग भी शास्त्रीयता होती, लेकिन पड़ोस की मेहतरानी अगर एक नकली कांच का में जीते हैं, वे कभी धार्मिक नहीं हो पाते। उसके कारण हैं, क्योंकि टुकड़ा भी लटकाकर निकल जाए, तो प्राण में तीर चुभ जाता है। धर्म बद्धि से ऊपर की बात है और शास्त्र सदा बद्धि से नीचे की बात वह रेंज के भीतर है। आदमी की ईर्ष्याएं, आदमी की महत्वाकांक्षाएं है। शास्त्र बुद्धि के ऊपर नहीं जाता और बुद्धि धर्म तक नहीं जाती। | निरंतर एक सीमा में बंधकर चलती हैं।
पाल टिलिक सिर्फ बुद्धि से जी रहे हैं। ऐसा नहीं है कि बटैंड अगर आप यश पाना चाहते हैं, तो यह यश जो अपरिचित हैं, रसेल बुद्धि को इनकार कर रहा है; पूरी तरह बुद्धि से जी रहा है। स्ट्रेंजर्स हैं, उनके सामने आपको मजा न देगा। जो अपने हैं, परिचित लेकिन बुद्धि की स्वीकृति नहीं है। बद्धि पर भी बढ़ेंड रसेल को हैं. उनके सामने ही आपको मजा देगा। क्योंकि जो अपरिचित हैं. संदेह है. वह स्केप्टिक है बद्धि के बाबत भी। यह उसे लगता है | उनके सामने अहंकार को सिद्ध करने में कोई सुख नहीं है। जो अपने कि बुद्धि की भी सीमाएं हैं।
हैं, उन्हीं को हराने का मजा है। जो अपने हैं, उन्हीं को दिखाने का अर्जुन में बड़ा गहरा समन्वय है। रसेल और सार्च जैसे इकट्ठे हैं। | मजा है कि देखो, मैं क्या हो गया और तुम नहीं हो पाए! उसका विषाद धार्मिक है, क्योंकि उसका विषाद श्रद्धा पर ले जाने | | जीसस ने कहीं कहा है कि पैगंबर या तीर्थंकर अपने ही गांव में वाला है।
कभी आदृत नहीं होते। यद्यपि चाहेंगे अपने ही गांव में आदृत होना; लेकिन हो नहीं सकते। अगर जीसस अपने ही गांव में गए हों, तो
लोग कहेंगे, बढ़ई का लड़का है। वही न जोसफ बढ़ई का लड़का! येषामर्थे कांक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च । कहां से ज्ञान पा लेगा? अभी कल तक लकड़ी काटता था, ज्ञान पा त इमेऽवस्थितत युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ।। ३३ ।। लिया? लोग हंसेंगे। इस हंसने में भी बढ़ई के लड़के को इतनी हमें जिनके लिए राज्य, भोग और सुखादिक इच्छित हैं, ऊंचाई पर स्वीकार करने की कठिनाई है। रेंज के भीतर है। बहुत वे ही यह सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर कठिन है। कोई प्रोफेट अपने गांव में पुज जाए, बड़ी कठिन बात युद्ध में खड़े हैं।
| है। क्योंकि गांव की ईर्ष्या की सीमा के भीतर है।