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HTRA विषाद और संताप से आत्म-क्रांति की ओर -
ईश्वर बच्चों का खेल नहीं है। ईश्वर किताबों में पढ़े हुए पाठ से बड रसेल, मैं मानता हूं कि नास्तिकता के उस दौर से गुजरता संबंधित नहीं है। ईश्वर का मां-बाप द्वारा सिखाए गए सिद्धांतों से | हुआ व्यक्ति है, जो खोज रहा है। और बिना खोजे हां नहीं भर क्या वास्ता है ? ईश्वर तो जीवन की बड़ी प्राणवंत खोज और पीड़ा | सकता। उचित है; ठीक है; धार्मिक है। रसेल को मैं नास्तिक कहता है: बड़ी एंग्विश है। बड़े विषाद से उपलब्ध होगा। बड़े श्रम से. हूं, लेकिन धार्मिक। धार्मिक नास्तिक। और तथाकथित आस्तिकों बड़ी तपश्चर्या से, बड़े इनकार से गुजरने पर, बड़ी पीड़ा, बड़े को मैं आस्तिक कहता हूं, लेकिन अधार्मिक। अधार्मिक आस्तिक। खालीपन से गुजरने पर, बड़ी मुश्किल से, शायद जन्मों की यात्रा, | ये शब्द उलटे मालूम पड़ते हैं। लेकिन उलटे नहीं हैं। जन्मों-जन्मों की यात्रा और खोज और जन्मों की भटकन और जन्मों ___ अर्जुन का विषाद बहुत धार्मिक है; उसमें गति है। अगर वह की असफलता और विफलता, तब शायद इस सारी प्रसव-पीड़ा चाहे, तो कृष्ण जैसे कीमती आदमी को पास पाकर कह सकता है के बाद, वह अनुभव आता है, जो व्यक्तित्व को आस्तिकता देता | कि गुरु, तुम जो कहते हो, ठीक है, हम लड़ते हैं! नहीं कहता, है-तब।
कृष्ण से जूझता है। कृष्ण से जूझने की हिम्मत साधारण नहीं है। लेकिन मैं मानता हूं कि बऍड रसेल वैसी यात्रा पर है। इसलिए कृष्ण जैसे व्यक्तित्व के पास हां करने का मन होता है। कृष्ण जैसे खाली नहीं है। सार्च खाली है, उसकी नास्तिकता क्लोज्ड है। | व्यक्तित्व को न कहने में पीड़ा होती है। कृष्ण जैसे व्यक्तित्व से एनसर्किल्ड इन वनसेल्फ, अपने भीतर ही वर्तुल बनाकर घूम रही | | प्रश्न उठाने में भी दुख होता है। लेकिन अर्जुन है कि पूछे चला जाता है। तो अपने भीतर तो आदमी फिर खाली हो जाएगा। और नहीं है, पूछे चला जाता है। वह कृष्ण के व्यक्तित्व को आड़ में रख देता. पर, नथिंगनेस पर जिसने आधार रखे–जिंदगी में कैसे फूल है; अपने प्रश्न को छोड़ता नहीं। इसका भय नहीं लेता मन में कि खिलें! उसने मरुस्थल में जिंदगी बोने की कोशिश की है। वहां फूल | | क्या कहेगा कोई, अश्रद्धालु हूं, संदेह करता हूं, शक उठाता हूं, नहीं खिल सकते।
आस्थावान नहीं हूं। कृष्ण जैसा व्यक्ति मिला हो, मान लो गुरु और नहीं से बड़ा कोई मरुस्थल नहीं है। और जमीन पर जो मरुस्थल | स्वीकार करो। तब आस्तिकता उधार हो जाती है। लेकिन नहीं, वह होते हैं, वहां तो ओएसिस भी होते हैं, वहां तो कुछ मरूद्यान भी | | प्रामाणिक आस्तिकता की खोज में है। होते हैं। लेकिन नहीं के मरुस्थल में कोई ओएसिस, कोई मरूद्यान इसलिए इतनी बड़ी गीता की लंबी यात्रा हुई। पूछता चला जाता नहीं होता। वहां कोई हरियाली नहीं खिलती। हरियाली तो हां में ही | | है, पूछता चला जाता है, पूछता चला जाता है। खिलती है। आस्तिक ही पूरा हरा हो सकता है। आस्तिक ही पूरा कृष्ण भी अदभुत हैं। अपनी महिमा का जोर डाल सकते थे। भरा हो सकता है। आस्तिक ही फूलों को उपलब्ध हो सकता है, | अगर गुरुडम का जरा भी मोह होता, तो जरूर डाल देते। लेकिन नास्तिक नहीं।
जो भी आस्तिक है, उसे गुरु होने की आकांक्षा नहीं होती। परमात्मा लेकिन नास्तिकता दो तरह की हो सकती है और आस्तिकता भी | ही है, तो और व्यक्ति को गुरु होने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। 'दो तरह की हो सकती है। नास्तिकता तब खतरनाक हो जाती है, | | और जिसे परमात्मा पर भरोसा है, वह प्रश्नों को संदेह की दृष्टि से जब अपने में बंद हो जाए। और आस्तिकता तब खतरनाक होती | | नहीं देखता, निंदा की दृष्टि से भी नहीं देखता। क्योंकि वह जानता है, जब उधार और बारोड होती है। आस्तिकता का खतरा उधारी में है, परमात्मा है। और यह व्यक्ति पूछ रहा है, तो यात्रा कर रहा है, है, नास्तिकता का खतरा अपने में बंद हो जाने में है। सब उधार | | पहुंच जाएगा। इसे पहुंचने दें सहज ही। आस्तिक हैं पृथ्वी पर! नास्तिक तक होने की ईमानदारी नहीं है, तो | | । गंगा बह चली है, तो सागर तक पहुंच जाएगी। अभी उसे पता आस्तिक होने का बहुत विराट कदम बिलकुल असंभव है। नहीं कि सागर है; लेकिन बह रही है, तो बेफिक्र रहें, पहुंच जाएगी। __ मैं तो मानता हूं कि नास्तिकता पहली सीढ़ी है आस्तिक होने के वह कहता नहीं कि रुक जाओ और मान लो। और गंगा अगर रुक लिए। शिक्षण है नास्तिकता। नहीं कहने का अभ्यास, हां कहने की | | जाए और मान ले कि सागर है, तो कभी जान नहीं पाएगी कि सागर तैयारी है। और जिसने कभी नहीं नहीं कहा, उसके हां में कितना | | है। रुक जाएगी, एक डबरा बन जाएगी सड़ा-गला; फिर उसी को बल होगा? और जिसने कभी नहीं कहने की हिम्मत नहीं जुटाई, । | सागर समझेगी। उसकी हां में कितना प्राण, कितनी आत्मा हो सकती है? | ऐसा आस्तिक अर्जुन नहीं है। अगर ठीक से समझें तो अर्जुन