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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM में जा सकता है, या इतने बड़े असत्य को देख पाए कि हम उनको है, वह विक्षिप्त हो सकता है। लेकिन यह एक ही पहलू है। ही मारकर आनंद को उपलब्ध हो जाएंगे, जिनके लिए मारने की। दूसरा पहलू यह है कि जो विक्षिप्त होने की स्थिति को पार कर चेष्टा कर रहे हैं! या तो दुर्योधन के असत्य में उतर जाए, तो अर्जुन जाए, वह विमुक्त भी हो सकता है। और जो चिंता को पार कर निश्चित हो जाएगा; या कृष्ण के सत्य में पहुंच जाए, तो अर्जुन | | जाए, वह निश्चितता के सजग आनंद को उपलब्ध हो सकता है। निश्चित हो जाएगा। और जो तनाव को पार कर जाए, वह विश्रांति के उस अनुभव को अर्जुन एक तनाव है। | पा सकता है, जो सिर्फ परमात्मा में विश्राम से उपलब्ध होती है। नीत्से ने कहीं कहा है कि आदमी एक सेतु है, ए ब्रिज, दो । अर्जुन मनुष्य का प्रतीक है; दुर्योधन पशु का प्रतीक है; कृष्ण अलग-अलग पारों को जोड़ता हुआ। आदमी एक तनाव है। या तो परमात्मा के प्रतीक हैं। वहां तीन प्रतीक हैं उस युद्ध-स्थल पर। पशु हो जाए, तो सुख को पा ले; या परमात्मा हो जाए, तो आनंद | अर्जुन डांवाडोल है। वह दुर्योधन और कृष्ण के बीच डांवाडोल है। को पा ले। लेकिन जब तक आदमी है, तब तक सुख भी नहीं पा उसे निश्चितता मिल सकती है, ही कैन बी ऐट ईज़, अगर वह सकता; तब तक आनंद भी नहीं पा सकता; तब तक सुख और दुर्योधन हो जाए, अगर वह कृष्ण हो जाए। अर्जुन रहते कोई सुविधा आनंद के बीच सिर्फ खिंच सकता है; एंग्जाइटी और तनाव भर हो नहीं है। अर्जुन रहते तनाव है। अर्जुन रहते मुश्किल है। उसकी सकता है। मुश्किल यही है कि दुर्योधन हो नहीं सकता; कृष्ण होना समझ में इसीलिए हम दोनों काम करते हैं जीवन में। शराब पीकर पशु हो | | नहीं आता; और जो है, वहां टिक नहीं सकता। क्योंकि वह बीच जाते हैं, थोड़ा सुख मिलता है। सेक्स में थोड़ा सुख मिलता है; पशु | की तरंग भर है, वहां टिका नहीं जा सकता। कोई भी सेतु मकान में वापस उतर जाते हैं। नीचे गिर जाते हैं विचार से, तो थोड़ा सुख बनाने के लिए नहीं होता। मिलता है। अकबर ने फतेहपुर सीकरी बनाई, तो वहां एक पुल पर, एक दुनिया में शराब का इतना आकर्षण किसी और कारण से नहीं ब्रिज पर उसने वाक्य लिखवाया-सेतु पार करने को है, सेतु है। शराब हमें वापस पशु में पहुंचा देने की सुविधा बन जाती है; | निवास के लिए नहीं है। नशा करके हम वहीं हो जाते हैं, जहां सभी पशु हैं। फिर हम पशु ठीक ही है। जो भी आदमी सेतु पर निवास बनाएगा, वह . जैसे निश्चित हैं, क्योंकि पशु कोई चिंता नहीं करता। कोई पशु मुश्किल में पड़ेगा। कहीं भी लौट जाएं-पशु हो जाएं कि परमात्मा पागल नहीं होता। सिर्फ सर्कस के पशु पागल होते हैं। क्योंकि | | हो जाएं-आदमी नियति नहीं है। आदमी होना संकट है, क्राइसिस सर्कस का पशु करीब-करीब आदमी की हालत में आ जाता है। | है। आदमी अंत नहीं है। आदमी, अगर ठीक से हम समझें तो, न आदमी करीब-करीब सर्कस के पशु की हालत में है। कोई पशु तो पशु है और न परमात्मा है। न तो वह पशु हो पाता है, क्योंकि पागल नहीं होता। और किसी पशु के लिए विक्षिप्तता, चिंता, । | पशु को पार कर चुका। और न वह परमात्मा हो पाता है, क्योंकि अनिद्रा, इनसोमेनिया-ऐसी बीमारियां नहीं आतीं। कोई पशु | परमात्मा को पहंचना है। मनुष्य सिर्फ परमात्मा और पश के बीच आत्मघात नहीं करता; स्युसाइड नहीं करता। क्योंकि आत्मघात के | डोलता हुआ अस्तित्व है। लिए बहुत चिंता इकट्ठी हो जानी जरूरी है। हम चौबीस घंटे में कई बार दोनों कोनों पर पहुंच जाते हैं। क्रोध बड़े मजे की बात है कि कोई पशु बोर्डम अनुभव नहीं करता; में वही आदमी पशु के निकट आ जाता है, शांति में वही आदमी वह कभी ऊबता नहीं है। एक भैंस है; वह रोज वही घास चर रही । परमात्मा के निकट पहुंच जाता है। हम दिन में चौबीस घंटे में बहुत है, चरती रहेगी; वह कभी नहीं ऊबती। ऊबने का कोई सवाल नहीं | | बार नर्क और स्वर्ग की यात्रा कर लेते हैं—बहुत बार। क्षण में स्वर्ग है। ऊबने के लिए विचार चाहिए। बोर्डम के लिए, ऊब के लिए | | में होते हैं, क्षण में नर्क में उतर जाते हैं। नर्क में पछताते हैं, फिर विचार चाहिए। इसलिए मनुष्यों में जो जितना ज्यादा विचारशील | | स्वर्ग की चेष्टा शुरू हो जाती है। स्वर्ग में पैर जमा नहीं पाते, फिर है, उतना ऊबेगा। मनुष्यों में जो जितना ज्यादा विचारशील है, उतना | | नर्क में पहुंचना शुरू हो जाता है। चिंता से भर जाएगा। मनुष्यों में जो जितना ज्यादा विचारशील है, | | और तनाव का एक नियम है कि तनाव सदा विपरीत में आकर्षण वह पागल हो सकता है। मनुष्यों में जो जितना ज्यादा विचारशील पैदा कर देता है। जैसे घड़ी का पेंडुलम होता है। वह बाईं तरफ जाता 22
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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