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अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण +HIK
जो मैं की बात कर रहा हो और अहिंसा की बात कर रहा हो, तो | हैं। सबसे बड़े प्रश्न वे नहीं हैं, जो हम पूछते हैं कि किसने जगत जानना कि अहिंसा झूठी है। क्योंकि मैं के आधार पर अहिंसा का | बनाया ? सबसे बड़े प्रश्न वे नहीं हैं, जो हम पूछते हैं कि ईश्वर है फल खिलता ही नहीं। मेरे के आधार पर अहिंसा के जीवन का कोई | या नहीं? सबसे बड़े प्रश्न वे हैं, जो हमारे मन के ही कांफ्लिक्ट, विकास ही नहीं होता।
मन के ही द्वंद्व से जन्मते हैं। लेकिन अपने ही मन के द्वंद्व को देख पाने के लिए विचार चाहिए, चिंतन चाहिए, मनन चाहिए।
अर्जुन सोच पा रहा है, देख पा रहा है कि मैं जो हिंसा करने जा प्रश्नः भगवान श्री, अर्जुन युद्धभूमि पर गया। उसने | रहा हूं, उसमें वे ही लोग मर जाएंगे, जिनके लिए हिंसा करने का स्वजन, गुरुजन और मित्रों को देखा तो शोक से भर | कुछ अर्थ हो सकता है। अंधा नहीं है। और यह अंधा न होना ही गया; विषाद हुआ उसको। उसका चित्त हिंसक था। । उसका कष्ट भी है, उसका सौभाग्य भी है। युद्धभूमि पर दुर्योधन भी था, युधिष्ठिर भी था, | इसे समझ लेना उचित है। अंधा नहीं है, यह उसका कष्ट है। द्रोणाचार्य भी थे और भी जो बहुत से थे, उनके भी दुर्योधन कष्ट में नहीं है। दुर्योधन के लिए युद्ध एक रस है। अर्जुन स्वजन-मित्र थे। उनका भी चित्त हिंसा तथा ममत्व से के लिए युद्ध एक संकट और कष्ट हो गया। सौभाग्य भी यही है। भरा हुआ था, तो अर्जुन को ही सिर्फ विषाद क्यों | यदि वह इस कष्ट को पार हो जाता है, तो निर्विचार में पहुंच हुआ?
सकेगा। अगर वह इस कष्ट को पार हो जाता है, तो परमात्मा में समर्पण को पहुंच सकेगा। अगर वह इस कष्ट को पार हो जाता है,
तो ममत्व को छोड़ने में पहंच सकेगा। अगर इस कष्ट को पार नहीं नश्चय ही, दुर्योधन भी वहां था, और भी योद्धा वहां थे, हो पाता, तो निश्चित ही यह युद्ध उसके लिए विकट संकट होगा, IUI उन्हें क्यों विषाद न हुआ? वे भी ममत्व से भरे लोग जिसमें वह स्किजोफ्रेनिक हो जाएगा, जिसमें उसका व्यक्तित्व दो
थे। वे भी हिंसा से भरे लोग थे। नहीं हुआ; कारण है। खंडों में टूट जाएगा। या तो भाग जाएगा, या लड़ेगा बेमन से और हिंसा भी अंधी हो सकती है, विचारहीन हो सकती है। ममत्व भी | हार जाएगा। अंधा हो सकता है, विचारहीन हो सकता है। हिंसा भी आंख वाली | | जो लड़ाई बेमन से लड़ी जाए, वह हारी ही जाने वाली है। हो सकती है, विचारपूर्ण हो सकती है। ममत्व भी आंख वाला हो | क्योंकि बेमन से लड़ने का मतलब है, आधा मन भाग रहा है, आधा' सकता है और विचारपूर्ण हो सकता है।
मन लड़ रहा है। और जो आदमी अपने भीतर ही विपरीत दिशाओं सुबह मैंने कहा था कि अर्जुन की कठिनाई यही है कि वह | | में गति करता हो, उसकी पराजय निश्चित है। दुर्योधन जीतेगा फिर। विचारहीन नहीं है। विचार है। और विचार दुविधा में डालता है। पूरे मन से लड़ रहा है। कुएं में भी गिर रहा है, तो पूरे मन से गिर विचार ने दुविधा में डाला उसे। दुर्योधन को भी दिखाई पड़ रहा है, | | रहा है; अंधकार में भी जा रहा है, तो पूरे मन से जा रहा है। लेकिन हिंसा इतनी अंधी है कि यह नहीं देख पाएगा दुर्योधन कि इस ____ असल में अंधकार में दो ही व्यक्ति पूरे मन से जा सकते हैं, एक हिंसा के पीछे मैं उन सबको मार डालूंगा, जिनके बिना हिंसा भी व्यर्थ | | तो वह, जो अंधा है। क्योंकि उसे अंधकार और प्रकाश से कोई अंतर हो जाती है। अंधेपन में यह दिखाई नहीं पड़ेगा। अर्जुन उतना अंधा नहीं पड़ता। एक वह, जिसके पास आत्मिक प्रकाश है। क्योंकि तब नहीं है। इसलिए अर्जुन उस युद्ध के स्थल पर विशेष है। विशेष इन | | अंधकार को, उसका होना ही अंधकार को मिटा देता है। अर्थों में है कि जीवन की तैयारी उसकी वही है, जो दुर्योधन की है; अर्जुन या तो दुर्योधन जैसा हो जाए, नीचे गिर जाए, विचार से जीवन की तैयारी उसकी वही है, जो दुर्योधन की है, लेकिन मन की विचारहीनता में गिर जाए, तो युद्ध में चला जाएगा। और या कृष्ण तैयारी उसकी भिन्न है। मन में उसके विचार है, संदेह है, डाउट है। | जैसा हो जाए, विचार से निर्विचार में पहुंच जाए, इतना ज्योतिर्मय मन में उसके शक है। वह पूछ सकता है, वह प्रश्न उठा सकता है। | हो जाए, इतना ज्योति से भर जाए भीतरी कि देख पाए कि कौन और जिज्ञासा का बुनियादी सूत्र उसके पास है।
| मरता है, कौन मारा जाता है! देख पाए कि यह जो सब हो रहा है, और सबसे बड़े प्रश्न वे नहीं हैं, जो हम जगत के संबंध में उठाते स्वप्न से ज्यादा नहीं है। या तो इतने बड़े सत्य को देख पाए तो युद्ध
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