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________________ 2- अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण - है। जब बाईं तरफ जाता है, तब हमें लगता है कि बाईं तरफ जा रहा । हममें भी जो दुर्योधन की तरह हैं, वे निश्चित हैं; वे मकान बना है। लेकिन जो घड़ी के विज्ञान को समझते हैं, वे यह भी जानते हैं रहे हैं; वे दिल्ली में, राजधानियों के सिंहासन चढ़ रहे हैं; वे धन कि वह बाईं तरफ जाते समय दाईं तरफ जाने की शक्ति इकट्ठी कर | कमा रहे हैं। हममें भी जो अर्जुन की तरह हैं, वे बेचैन और परेशान रहा है, मोमेंटम इकट्ठा कर रहा है। वह जितनी दूर बाईं तरफ जाएगा, | | हैं। वे बेचैन हैं इसलिए कि जहां हैं, वह जगह घर बनाने योग्य नहीं उतनी ही दूर दाईं तरफ जाने की ताकत इकट्ठी कर रहा है। असल में मालूम पड़ती। जहां से आ गए हैं, वहां से आगे बढ़ गए हैं, पीछे वह बाईं तरफ इसीलिए जा रहा है कि दाईं तरफ जा सके। और दाईं लौटना संभव नहीं है। जहां पहुंचे नहीं हैं, उसका कोई पता नहीं है तरफ जाते वक्त इसीलिए जा रहा है कि बाईं तरफ जा सके। । | कि वह कहां है मार्ग; वह मंदिर कहां है! उसका कोई पता नहीं है। ___ आदमी पूरे समय पशु और परमात्मा के बीच पेंडुलम की तरह धार्मिक आदमी स्वभावतः संकटग्रस्त होता है, क्राइसिस में होता घूम रहा है। अर्जुन आदमी का प्रतीक है। और आज के आदमी का | | है। अधार्मिक आदमी क्राइसिस में नहीं होता। इसलिए मंदिरों में तो और भी ज्यादा है। आज के आदमी की चेतना ठीक अर्जुन की | बैठा आदमी ज्यादा चिंतित दिखाई पड़ेगा, बजाय कारागृहों में बैठे चेतना है। इसलिए दुनिया में दोनों बातें एक साथ हैं, एक ओर | | आदमी के। कारागृह में बैठा आदमी इतना चिंतित नहीं मालूम मनुष्य अपनी चेतना को समाधि तक ले जाने के लिए आतुर है; | | पड़ता है, निश्चित है। एक किनारे पर वह है, वह सेतु पर नहीं है। और दूसरी तरफ आदमी एल एस डी से, मैस्कलीन से, मारिजुआना | एक अर्थों में वह सौभाग्यशाली मालूम पड़ सकता है, ईर्ष्या-योग्य, से, शराब से, सेक्स से पशु की तरफ ले जाने को आतुर है। कितना निश्चित है! लेकिन उसका सौभाग्य बड़े गहरे अभिशाप को और अक्सर ऐसा होगा कि एक ही आदमी ये दोनों काम करता | | छिपाए है। वह इसी तट पर रह जाएगा। उसमें अभी मनुष्य की हआ मालम पड़ेगा। वही आदमी भारत की यात्रा पर आएगा, वही किरण भी पैदा नहीं हुई। आदमी अमेरिका में एल एस डी लेता रहेगा। वह दोनों एक साथ मनुष्य के साथ ही उपद्रव शुरू होता है, मनुष्य के साथ ही संताप - कर रहा है। | शुरू होता है, क्योंकि मनुष्य के साथ ही परमात्मा होने की । मनुष्य बेहोश हो जाए, तो पशु हो सकता है। लेकिन बेहोश ज्यादा | संभावना, पोटेंशियलिटी के द्वार खुलते हैं। देर नहीं रहा जा सकता। बेहोशी के सुख भी होश में ही अनुभव हो | वह अर्जुन पशु होना नहीं चाहता; स्थिति पशु होने की है। पाते हैं। बेहोशी में बेहोशी का सुख भी अनुभव नहीं होता। शराब | परमात्मा होने का उसे पता नहीं है। बहुत गहरी अनजान में आकांक्षा का भी मजा, जब शराब पीए होता है आदमी, तब पता नहीं चलता। परमात्मा होने की ही है, इसीलिए वह पूछ रहा है; इसीलिए प्रश्न पता तो तभी चलता है, जब शराब का नशा उतर जाता है। नींद में | उठा रहा है। इसीलिए जिज्ञासा जगा रहा है। जिसके जीवन में भी जब आप होते हैं, तब नींद का कोई मजा पता नहीं चलता। वह सुबह प्रश्न हैं, जिसके जीवन में भी जिज्ञासा है, जिसके जीवन में भी जागकर पता चलता है कि बड़ी आनंदपूर्ण निद्रा थी। बेहोशी के सुख असंतोष है-उसके जीवन में धर्म आ सकता है। जिसके जीवन में के लिए होश में आना जरूरी है। और होश में कोई सुख नहीं मालूम नहीं है चिंता, नहीं है प्रश्न, नहीं है संदेह, नहीं है जिज्ञासा, नहीं है पड़ता, इसलिए फिर बेहोशी में उतरना पड़ता है। असंतोष-उसके जीवन में धर्म के आने की कोई सुविधा नहीं है। अर्जुन मनुष्य की चेतना है, इसलिए अदभुत है। गीता इसीलिए __जो बीज टूटेगा अंकुरित होने को, चिंता में पड़ेगा। बीज बहुत अदभुत है कि वह मनुष्य की बहुत आंतरिक मनःस्थिति का आधार | | मजबूत चीज है, अंकुर बहुत कमजोर होता है! बीज बड़ा निश्चित है। मनुष्य की आंतरिक मनःस्थिति अर्जुन के साथ कृष्ण का जो होता है, अंकुर बड़ी चिंता में पड़ जाता है। अंकुर निकलता है जमीन संघर्ष है पूरे समय, वह जो अर्जुन के साथ कृष्ण का संवाद है या से पत्थरों को तोड़कर। अंकुर जैसी कमजोर चीज पत्थरों को विवाद है, वह जो अर्जुन को खींच-खींचकर परमात्मा की तरफ | तोड़कर, मिट्टी को काटकर बाहर निकलती है, अज्ञात, अनजाने लाने की चेष्टा है, और अर्जुन वापस शिथिल-गात होकर बैठ जाता। | जगत में, जिसका कोई परिचय नहीं, कोई पहचान नहीं। कोई बच्चा है; वह फिर पशु में गिरना चाहता है; यह जो संघर्ष है, वह अर्जुन | तोड़ डालेगा; कोई पशु चर जाएगा; किसी के पैर के नीचे दबेगा! के लिए है, दुर्योधन के लिए नहीं। दुर्योधन निश्चित है। अर्जुन भी | क्या होगा, क्या नहीं होगा! बीज अपने में रहे, तो बहुत निश्चित वैसा हो तो निश्चित हो सकता है। वैसा नहीं है। है। न किसी बच्चे के पैर के नीचे दबेगा, न कोई अज्ञात के खतरे
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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