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वासना की धूल,
बाहर निकालता और मैं बड़ा बुद्धिमान आदमी हूं! परमात्मा है या नहीं, इसका विचार करता । गीता का क्या अर्थ है, इसका हिसाब लगाता। और अब मैं धुआं बाहर और भीतर करने का काम कर रहा हूं – ईडियाटिक, स्टुपिड़ । एक आदमी धुआं बाहर-भीतर करे, इससे स्टुपिड और कोई काम हो सकता है ! अब मैं यह कर रहा हूं, मैं स्टुपिड आदमी हूं, ऐसा समझकर करें। बुद्धिमान मत समझें। हालांकि हालत उलटी है। सिगरेट पीने वाले जब सिगरेट नहीं पीते, तो उतने अकड़े हुए नहीं मालूम पड़ते, जब पीते हैं तब वे ज्यादा अकड़ जाते हैं। लगता है कि बहुत बुद्धिमानी का काम कर रहे हैं। बड़ा कोई, कोई ऐसा काम कर रहे हैं प्रतिभा का, जिसका कोई हिसाब लगाना मुश्किल है।
जरूर कहीं भूल हो रही है। थोड़ा एनालाइज करें, विश्लेषण करें कि क्या, कर क्या रहे हैं ? धुआं बाहर-भीतर कर रहे हैं! मशीन भी कर सकती है। इसमें बुद्धिमानी की कहां जरूरत आती है ? और जानते हुए कर रहे हैं कि यह धुआं क्या करता है ! भलीभांति जानते हुए कर रहे हैं। यह क्या कर रहे हैं? अगर एक आदमी अपने कमरे
कुर्सी इधर से उठाकर उधर रखे, उधर से उठाकर इधर रखे, तो आप कहेंगे, पागल है। क्यों ? धुआं इधर से उधर करना पागलपन नहीं है, तो कुर्सी इधर से उधर करना पागलपन है? तो धुएं ने ऐसा कौन-सा पुण्य कर्म किया है और कुर्सी का ऐसा क्या पाप है !
नहीं, मनःपूर्वक करें, और करना मुश्किल हो जाएगा। जो भी इंद्रियां करवाती हों, उसको पूरे मनःपूर्वक, विद फुल अवेयरनेस, पूरे होशपूर्वक करें कि यह मैं कर रहा हूं। और जानते हुए करें कि मैं क्या कर रहा हूं! और आप पाएंगे कि इंद्रियों की शक्ति मन से कम होती चली जाएगी और मन की शक्ति इंद्रियों पर बढ़ती चली जाएगी।
फिर ऐसा ही मन के साथ बुद्धि के द्वारा करें। मन कुछ भी करता रहता है, आप करने देते हैं। कभी बुद्धि को बीच में नहीं लाते, जब तक कि मन उलझ न जाए। आप करते रहते हैं मन में ।
एक आदमी बैठा हुआ है अपनी कुर्सी पर वह न मालूम क्या-क्या सोच रहा है कि इस बार अब मध्यावधि चुनाव में खड़े हो गए हैं, इलेक्शन जीत ही गए। अभी मध्यावधि हुआ नहीं, लेकिन वे जीत गए अपनी कुर्सी पर अब वे देख रहे हैं, उनका जुलूस निकल रहा है, प्रोसेशन निकल रहा है। अब यह मन कर रहा है और बुद्धि कहीं नहीं आएगी इसमें बीच में। बुद्धि को कोई मतलब ही नहीं है; मन को करने दे रहे हैं आप |
बुद्धि को हम भी बीच में लाते हैं। जब मन उलझ जाता। उलझ
चेतना का दर्पण 4
जाता मतलब यह कि आप जब कोई ऐसी चीज पाते हैं जो मन हल नहीं कर पाता, कोई प्राब्लम खड़ा हो जाता, मन के बाहर होता । गाड़ी चलाए चले जा रहे हैं अपनी, स्टीअरिंग हाथ में लिए हैं, सिगरेट मुंह में दबी है; चले जा रहे हैं कार चलाते हुए। और मन इलेक्शन जीत रहा है और यह सब चल रहा है। एकदम एक्सिडेंट होने की हालत आ जाती है, तो मन बंद होता है और बुद्धि आती है। कभी आपने खयाल किया, जब एकदम से ब्रेक लगता है, तो मन एकदम झटके से बंद हो जाता है। श्वास भी ठहर जाती है, विचार भी ठहर जाता है। तत्काल बुद्धि आ जाती है कि उसकी | जरूरत पड़ी; अब यह मन के हाथ में नहीं छोड़ा जा सकता इतना खतरनाक मामला, तो बुद्धि बीच में आ जाती है। तत्काल बुद्धि कुछ करती है। बुद्धि को आप तभी बुलाते हैं, जब उसकी सेवा की जरूरत होती है। अन्यथा मन अपना करता रहता है।
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नहीं, बुद्धि को बीच में लाएं। जब मन चुनाव जीतने लगे, जब प्रोसेशन निकलने लगे, तब जरा बुद्धि को कहें कि आओ, देखो, यह मन क्या कर रहा है ! यह मैं क्या कर रहा हूं ! तो आपके कितने सपने न बिखर जाएं, और आपके मन की कितनी कामनाएं न गिर जाएं, और मन के कितने व्यर्थ के जाल न टूट जाएं। और बुद्धि बीच में आए, तो मन एकदम डर जाता है। बुद्धि बीच में आए, तो मन की हालत वैसी हो जाती है, जैसे शिक्षक कमरे में आता है, तो बच्चों की हो जाती है। वे जल्दी अपनी-अपनी जगह ठीक-ठाक बैठ गए हैं। सब काम ठीक हो गया, कोई दूसरे की जगह पर नहीं है।
लेकिन बुद्धि को हम बीच में आने नहीं देते। हमारे मन की हालत ऐसी है जैसे... पुराने जमाने में तो ऐसा होता था, अब तो इससे उलटा होगा, अभी होता तो नहीं, लेकिन होगा । शिक्षक अक्सर उपद्रवी लड़कों को क्लास के बाहर कर देता था। अब आगे तो ऐसा ही होगा कि लड़के अक्सर उपद्रवी शिक्षकों को क्लास के बाहर कर देंगे, कि आप बाहर रहिए, हम भीतर अपने शांति से हैं। तो मन जो है वह शिक्षक को, बुद्धि को बाहर किए जीता है। और मन अपना करता रहता है, वह जो नासमझियां कर सकता है, करता है; क्योंकि मन पास कोई विवेक नहीं है। मन ड्रीमिंग फैकल्टी है, सिर्फ स्वप्नवान है । मन सिर्फ सपने देख सकता, कल्पना कर सकता, स्मृतियां कर सकता है। मन सोच नहीं सकता। मन के पास विचार की शक्ति | विचार की शक्ति बुद्धि के पास है।
बुद्धि को बीच में लाएं और मन के कामों को बुद्धि के लिए कहें कि जागरूक होकर मन को करने दे । मन जो भी करे, बुद्धि को