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- गीता दर्शन भाग-1
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सदा कमजोर है, वासना सदा भयभीत है। जहां भय है, वहां वासना सीढ़ी भी वही होती है, सिर्फ रुख बदल जाता है। चढ़ते वक्त ऊपर है। जहां वासना है, वहां भय है। सिर्फ अभय वही होता है, जो | की तरफ नजर होती है, उतरते वक्त नीचे की तरफ नजर होती है। वासना में नहीं है। चोरी से घर के पीछे से चढ़ते हैं। लगता है रस्सी | नहीं, कृष्ण जब वैरी कह रहे हैं वासना को, तो निंदा नहीं कर लटकी है, सांप लटकता है वर्षा का। दिखाई नहीं पड़ता, | | रहे हैं, सिर्फ सूचना दे रहे हैं अर्जुन को कि वासना वैरी बन सकती हिप्नोटाइज्ड हैं, सम्मोहित हैं।
है, बन जाती है। सौ में निन्यानबे मौकों पर वैरी ही होती है। और जो देखना चाहते हैं, वही दिखाई पड़ता है वासना में; वह नहीं जब मैं कहता हूं कि वासना मित्र है, तो मैं कह रहा हूं कि सौ में दिखाई पड़ता है, जो है। जो देखना चाहते हैं, वही दिखाई पड़ता | निन्यानबे मौकों पर वासना वैरी होती है, लेकिन सौ में निन्यानबे है। अभी रस्सी चाहिए चढ़ने के लिए, इसलिए सांप रस्सी दिखाई मौके पर भी वासना मित्र बन सकती है। मैं संभावना की बात कह पड़ता है। अभी पार होने के लिए लकड़ी चाहिए, तो मुरदा लकड़ी | रहा हूं, कृष्ण वास्तविकता की बात कह रहे हैं। कृष्ण कह रहे हैं, दिखाई पड़ता है। वासना में वही दिखाई पड़ता है, जो आप देखना | जो है; मैं कह रहा हूं वह, जो हो सकता है। और जो है, वह चाहते हैं; वह नहीं दिखाई पड़ता, जो है। आत्मा में वही दिखाई | | इसीलिए कह रहे हैं, ताकि वह हो सके, जो होना चाहिए। अन्यथा पड़ता है, जो है; वह नहीं दिखाई पड़ता, जो आप देखना चाहते हैं। | जो है, उसको कहने का कोई भी प्रयोजन नहीं है। इसलिए आत्मा तो सत्य को देखती है, वासना अपने खुद के झूठे सत्य निर्मित करती है, प्रोजेक्ट करती है। अब यह सांप नहीं दिखाई पड़ा, रस्सी दिखाई पड़ी। प्रोजेक्शन हो गया। रस्सी चाहिए थी, चढ़ प्रश्नः भगवान श्री, अभी आपने कहा कि.वासना, गए।
अधिक वासना का अर्थ है, परमात्मा से अधिक दूरी; पत्नी ने एक बात कही कि जितना मेरे लिए दौड़ते हैं, काश, | और दूसरी जगह आप कहते हैं कि वासना की चरम इतना राम के लिए दौडे। बस. वासना मित्र हो गई। उसी दिन से |
| ऊंचाइयों पर ही रूपांतरण होता है। कृपया इसे स्पष्ट मित्र हो गई, उसी घड़ी, उसी क्षण। इस क्षण के पहले तक शत्रु थी। करें। यात्रा बदल गई, रुख बदल गया, मुंह फिर गया। कल तक जहां पीठ थी, उस तरफ आंखें हो गईं; और कल तक जहां आंखें थीं, वहां पीठ हो गई। रास्ता वही है, लेकिन यात्रा बदल गई। निश्चय ही, जितने दूर होते हैं हम, वासना में जितने
आप यहां तक आए हैं। जिस रास्ते से आए हैं. उसी रास्ते से IUI गहरे होते हैं, उतने परमात्मा से दूर होते हैं। लेकिन वापस लौटेंगे। रास्ता वही है, लेकिन अभी मेरी तरफ आते थे, तो गहराइयों का भी अंत है। और जब कोई व्यक्ति आंखें मेरी तरफ थीं; अब घर की तरफ जाएंगे, तो घर की तरफ | | वासना की चरम सीमा पर पहुंच जाता है, तो उसके आगे वासना आंखें होंगी। अभी आए थे, तो घर की तरफ पीठ थी। | नहीं है फिर। जिस दिन कोई वासना के आखिरी छोर को छु लेता
वासना ही रास्ता है परमात्मा से दर जाने का भी और परमात्मा | | है, उस दिन ऐसा आदमी है वह, जो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा के पास आने का भी। वासना में ज्यादा जाइए, तो दूर चले जाएंगे। | आया और अब भलीभांति जानता है कि क्षितिज आकाश को कहीं वासना में कम से कम जाइए-लौटते आइए, लौटते आइए-तो | भी नहीं छूता। उस दिन रूपांतरण, उस दिन परमात्मा की तरफ परमात्मा में आ जाएंगे। जिस दिन वासना पूर्ण होगी, उस दिन लौटना शुरू होता है। परमात्मा से डिस्टेंस एब्सोल्यूट होगा। जिस दिन वासना शून्य ___ इसलिए जब मैं कहता हूं कि वासना पूरी है, तो परमात्मा से पूरी होगी, उस दिन परमात्मा से नो डिस्टेंस पूर्ण होगा। उस दिन | दूरी है, तब मैं यह नहीं कह रहा हूं कि लौटना असंभव है। सच तो निकटता पूरी हो जाएगी, जिस दिन वासना नहीं होगी। जिस दिन | यह है कि पूरी दूरी से ही लौटना आसान होता है, बीच से लौटना वासना ही वासना होगी, उस दिन दूरी पूर्ण हो जाएगी। रास्ता वही आसान नहीं होता। इसलिए हम अक्सर देखते हैं कि पापी शीघ्रता होता है। सीढ़ी वही होती है, जो ऊपर ले जाती है मकान के। सीढ़ी | से संतत्व को उपलब्ध हो जाते हैं। मीडियाकर, मध्यवर्गीय चित्त के वही होती है, जो नीचे लाती है मकान के। आप भी वही होते हैं, लोग शीघ्रता से संतत्व को उपलब्ध नहीं होते। कोई वाल्मीकि
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