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________________ 10 वासना की धूल, चेतना का दर्पण - प्रश्नः भगवान श्री, आप कहते हैं कि खाद की दुर्गंध | | जिसका दुरुपयोग, अशुभ उपयोग न हो सके। उपयोग सदा हम पर ही फल की सुगंध बनती है और काम-ऊर्जा ही निर्भर है। आत्म-ऊज किन यहां काम को ज्ञानियों | हम वासना का शत्र की तरह व्यवहार कर सकते हैं। हम करते का नित्य वैरी कहकर उसके प्रति निंदाभाव क्यों | हैं। हम वासना से करते क्या हैं? हम वासना से सिर्फ अपने को व्यक्त किया गया है? | थकाते हैं। हम वासना से सिर्फ अपने को गंवाते हैं। हम वासना से सिर्फ अपने को चुकाते हैं। हम वासना से सिर्फ छेद-छेद से जैसे पानी रीतता चला जाए किसी घड़े से, ऐसे हम अपने जीवन को नहीं , निंदाभाव नहीं है। वैरी कहकर सिर्फ एक तथ्य की | रिताते हैं। हम और वासना से करते क्या हैं? वासना हमारे लिए OL सूचना दी गई है। और जब मैं कहता हूं कि खाद की | | शक्ति का, ऊर्जा का, परमात्मा की उपलब्धि का द्वार नहीं बनती दुर्गंध ही फूल की सुगंध बनती है, तब मैं यह नहीं कह | है। वासना हमारे लिए ऊर्जा का, शक्ति का, प्रभु का, आत्मा का रहा हं कि खाद में दर्गध नहीं होती। खाद में दर्गध तो होती ही है। खोने का मार्ग बनती है। वासना का रूपांतरण हो सकता है। और आप घर में खाद ही रख लें लाकर, तो फूलों की सुगंध पैदा | ___ इसलिए कृष्ण जब वैरी कह रहे हैं, तो उनका प्रयोजन निंदा का नहीं हो जाती। सिर्फ दुर्गध ही बढ़ेगी; खाद सड़ेगा और दुर्गंध | | नहीं है। और जब मैं मित्र कहता हूं, तो मेरा प्रयोजन भी प्रशंसा का बढ़ेगी। जो आदमी खाद को घर में रखकर बैठ जाता है, उसके | नहीं है। फिर से दोहराऊ-जब कृष्ण कहते हैं, वासना शत्रु है, तो लिए खाद वैरी है। लेकिन जो आदमी खाद को बगिया में डालकर, उनका प्रयोजन निंदा का नहीं है; और जब मैं कहता है, वासना मित्र मिट्टी में मिलाकर, बीजों के साथ बिछा देता है, उसके लिए खाद | है, तो मेरा प्रयोजन प्रशंसा का नहीं है। कृष्ण आधी बात कह रहे हैं मित्र हो जाता है। और ध्यान रहे, वैरी का होना वैरी, कोई उसकी | | कि शत्रु है और सूचना दे रहे हैं कि उसे शत्रु ही मत बनाए रखना। नियति नहीं हैं, वह मित्र भी हो सकता है। जो वैरी हो सकता है, | मैं भी आधी बात कह रहा हूं कि मित्र है और सूचना दे रहा हूं कि वह मित्र भी हो सकता है। जो मित्र हो सकता है. वह वैरी भी हो उसे मित्र बना लेना है। सकता है। शत्रु मित्र बनाए जा सकते हैं; दुर्गधे सुगंधे बनाई जा सकती हैं; यहां कृष्ण सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि जिसकी वासना धुआं | धुआं आग की तरफ ले जाने वाला बन सकता है और धुआं आग बनकर उसके चित्त को घेर लेती है, उसकी वासना उसकी ही दुश्मन | से दूर ले जाने वाला भी बन सकता है। यह हम पर निर्भर करता है हो जाती है। लेकिन जो इस धएं से अपनी अग्नि को पहचानता है कि हम वासना का क्या उपयोग करते हैं। वासना विनाशक हो कि अग्नि भी भीतर होनी चाहिए, क्योंकि धुआं बाहर है। और सकती है और वासना सृजनात्मक भी हो सकती है। वासना ही • जहां-जहां धुआं है वहां-वहां अग्नि है, बिना अग्नि के धुआं नहीं हो | | मनुष्य को वहां पहुंचा सकती है, जहां परमात्मा का मंदिर है। और सकता। जो इस वासना के धुएं को देखकर भीतर की अग्नि के वासना ही वहां भी पहुंचा सकती है, जहां परमात्मा की तरफ पीठ स्मरण से भर जाता और धुएं को हटाकर अग्नि को उपलब्ध होता भी हो जाती है। दोनों ही हो सकता है। है, उसके लिए वासना शत्रु नहीं रह जाती, मित्र हो जाती है। लेकिन | हमने तुलसीदास की कहानी पढ़ी है; सभी को पता है। वासना कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि वैरी है। वैरी का मतलब केवल इतना | | शत्रु थी—कृष्ण के अर्थों में—वैरी थी। पत्नी गई है मायके, तो ही है कि अभी तू जिस स्थिति में खड़ा है, वहां तूने अपनी वासना | | रुक नहीं सके। पागल की तरह, विक्षिप्त की तरह, अंधे की तरह को वैरी की स्थिति में ही बांध रखा है। वह तेरी मित्र नहीं बन पाएगी। | भागे। आंखें देखती नहीं, कान सुनते नहीं, हाथ छूते नहीं! वर्षा है, इस जगत में जो भी चीज हानि पहुंचा सकती है, वह लाभ पहुंचा बाढ़ है, कूद पड़ते हैं। लगता है कि कोई लकड़ी बहती है, उसका सकती है। रास्ते पर पड़ा हुआ पत्थर रुकावट भी बनता है, | सहरा ले लेते हैं। लकड़ी नहीं है वहां, सिर्फ एक मुरदा बह रहा है! समझदारों के लिए सीढ़ी भी बन जाता है। उसी पर चढ़कर वे और उसी का सहारा लेकर नदी पार कर जाते हैं। मुरदा नहीं दिखाई ऊपर उठ जाते हैं। जिंदगी में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका शुभ पड़ता, दिखाई पड़ता है लकड़ी है। वासना अंधी है। आधी रात उपयोग न हो सके। और जिंदगी में ऐसा भी कुछ भी नहीं है, | पहुंच गए हैं घर पर, द्वार खुलवाने की हिम्मत नहीं पड़ती। वासना 461
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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