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PM श्रद्धा है द्वार HAM
उसे पक्का विश्वास था विज्ञान पर। सौ साल पहले वैज्ञानिक को | उठता है, क्यों बनाई! एक विश्वास हुआ कि सवाल खड़ा हुआ, पक्का विश्वास था विज्ञान पर, कि हम सब जान लेंगे, जो भी | क्यों बनाई! फिर दूसरा सवाल उठता है कि ऐसी क्यों बनाई, जिसमें अनजाना है, जान लिया जाएगा। आज वैज्ञानिक कहता है कि जो | इतना दुख है! फिर तीसरा सवाल उठता है कि जब वही बनाने वाला हमने जाना, वह तो कुछ नहीं, लेकिन जितना हमने जानने की | है, तो इस सब दुख को क्यों नहीं मिटा देता! फिर सवाल उठते चले कोशिश की, उससे हजार गुना अनजाना प्रकट हो गया है। एक इंच | जाते हैं। आपने तय किया कि ईश्वर ने दुनिया नहीं बनाई। तब फिर हम जानते हैं, हजार इंच और खुल जाते हैं, जो अनजाने हैं। एक | सवाल उठता है, फिर कैसे बनी? तो फिर वैज्ञानिक खोजता है कि सवाल हल होता है, हजार सवाल खड़े हो जाते हैं। और अब | नेबुला, और अणु, और परमाणु और उन सबसे दुनिया बनती है। वैज्ञानिक हिम्मत बांधकर नहीं कह पाता कि हम कभी भी सब जान | लेकिन वे अणु-परमाणु कहां से आते हैं? और तब सवालों की लेंगे। अब वह इतना ही कह पाता है कि हम जो भी जानेंगे, वह यात्रा फिर शुरू हो जाती है। हर विश्वास सवालों की यात्रा पर ले उसके मुकाबले ना-कुछ होगा, जो अनजाना छूट जाएगा। विज्ञान जाता है। लेकिन रहस्य का बोध सवालों को गिरा देता है और सौ साल में हारा। दार्शनिक हजारों साल कोशिश करके हार गए। मिस्ट्री में, रहस्य में डुबा देता है। और जब कोई व्यक्ति रहस्य में और उन्होंने कहा, कुछ है, जो विचार के बाहर छूट जाता है। इस डूबता है, तो श्रद्धा अंकुरित होती है। बात की प्रतीति कि कछ है. जो विचार के बाहर छट जाता है. श्रद्धा जैसे बीज को अगर पत्थर पर रख दें, तो कभी अंकुर न आएगा। के जन्म का पहला अंकुर है।
जीसस कहा करते थे कि मैं एक मुट्ठीभर बीज फेंक दूं अंधेरे में; क्या आपको जीवन रहस्य मालूम पड़ता है, मिस्ट्री? तो आपकी | कुछ पत्थर पर गिरें, कुछ रास्ते पर गिरें, कुछ खेत की मेड़ पर गिरें, जिंदगी में श्रद्धा पैदा हो सकती है। और ध्यान रखें, विश्वासी को | कुछ खेत के बीच की भूमि में गिर जाएं। जो पत्थर पर गिरेंगे, वे जिंदगी मिस्ट्री नहीं मालूम पड़ती है। उसके लिए तो सब खुला हुआ | पड़े ही रहेंगे, वे कभी अंकुरित न होंगे। जो रास्ते पर गिरेंगे, वे मामला है। सब गणित साफ है। वह कहता है, यहां स्वर्ग है, यहां | | अंकुरित होना भी चाहेंगे, रास्ता उन्हें अंकुरित होने के लिए सहायता नर्क है; यहां मोक्ष है, यहां भगवान बैठा हुआ है। यहां यह हो रहा | भी देगा। तो इसके पहले कि वे अंकुरित हों, किन्हीं के पैर उनकी है, वहां वह हो रहा है। सब नक्शा साफ है। विश्वासी के पास पूरा | संभावनाओं को नष्ट कर जाएंगे। खेत की मेड़ पर जो बीज गिरेंगे, गणित है, परामैप है,सब सिद्धांत हैं. सब साफ है। विश्वासी कभी वे अंकरित हो जाएंगे। लेकिन मेड से लोग कभी न कभी गजरते भी रहस्य में नहीं होता। जो आदमी रहस्य में होता है, वह श्रद्धा में | हैं, वे भी बच न सकेंगे। खेत के ठीक बीच में जो बीज पड़ गए हैं, जा सकता है। मिस्ट्री श्रद्धा का द्वार है। तर्क, गणित, प्रमाण | वे अंकुरित भी होंगे, बड़े भी होंगे, फूल को उपलब्ध भी होंगे। विश्वासों के द्वार हैं। उनसे हम विश्वास निर्मित कर लेते हैं। क्या श्रद्धा का बीज जब रहस्य की भूमि में गिरता है, तभी अंकुरित आपको जिंदगी में रहस्य मालूम होता है? क्या आपको लगता है | होता है। रहस्य की भूमि में श्रद्धा अंकुरित होती है। और श्रद्धावान कि हम कुछ भी नहीं जानते? तो आपकी जिंदगी में श्रद्धा पैदा हो ही-और ध्यान रहे, श्रद्धावान से मेरा मतलब कभी भी भूलकर सकती है।
विश्वास करने वाला नहीं है-श्रद्धावान अर्थात वह जो जीवन को कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं, जो श्रद्धापूर्वक अर्थात जो जीवन के | रहस्य की भांति अनुभव करता है। ऐसा व्यक्ति, कृष्ण कहते हैं, रहस्य को अंगीकार करता है...।
अगर मेरे मार्ग पर आ जाए...और ऐसा व्यक्ति सदा ही पूरा का और जो जीवन के रहस्य को अंगीकार करता है, उसके पास | | पूरा आ जाता है। क्योंकि रहस्य खंड-खंड नहीं बनाता, तर्क संदेह का उपाय नहीं बचता। यह भी समझ लेना जरूरी है। आप में | खंड-खंड बनाता है। संदेह तभी तक उठते हैं, जब तक आप विश्वास को पकड़ते हैं, यह भी खयाल में ले लें कि तर्क एनालिटिक है; तर्क तोड़ता है; क्योंकि सब संदेह विश्वास के खिलाफ उठते हैं। जिस आदमी का तर्क चल ही नहीं सकता तोड़े बिना। तर्क प्रिज्म की तरह है। जैसे कोई विश्वास नहीं, उसके भीतर कोई संदेह भी नहीं पैदा होता। कि कांच के प्रिज्म में से हम सूरज की किरण निकालें, तो सात संदेह पैदा होते हैं विश्वास के खिलाफ।
टुकड़ों में टूट जाती है। ऐसे ही तर्क के प्रिज्म से कुछ भी निकले, आपने विश्वास किया कि परमात्मा ने दुनिया बनाई, तब सवाल तो खंड-खंड हो जाता है। तर्क तोड़ता है, एनालिटिक है। श्रद्धा
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