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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM जोड़ती है, सिंथेटिक है। सब जुड़ जाता है, एक हो जाता है, जैसे | पकड़े हुए है, जैसे कि बाप परमात्मा है, सब उसे मालूम है। किरणें प्रिज्म से वापस लौट गईं और एक हो गईं। एक बेटा आया है और अपनी मां की गोद में सिर रखकर सो रहस्य टोटल है। विश्वास हमेशा पार्शियल है। आप कभी पूरा | गया है-ट्रस्ट! जैसे मां की गोद सारे दुखों के बाहर है, सारी विश्वास नहीं कर सकते। लेकिन आप कभी अधूरे रहस्य में नहीं | | चिंताओं के बाहर है। मां नहीं है बाहर चिंताओं के, मां नहीं है बाहर हो सकते। यह आपने कभी खयाल किया. आप यह नहीं कह दखों के. मां परेशानियों में हो सकती है। लेकिन जो छोटा-सा सकते कि मैं थोड़ा-थोड़ा रहस्य अनुभव कर रहा हूं! रहस्य जब भी |बेटा, दिनभर थका-मांदा बाहर से खेलकर लौट आया है, वह मां अनुभव होता है, तो पूरा अनुभव होता है। रहस्य कभी थोड़ा-थोड़ा की गोद में सिर रखकर सो गया निश्चित, उसे परमात्मा की गोद अनुभव नहीं होता। मिस्ट्री कभी थोड़ी-थोड़ी अनुभव नहीं होती है, | मिल गई-ट्रस्ट। मां को नहीं है, बेटे को है। और इसलिए बेटे के पूरी अनुभव होती है। या तो होती है अनुभव या नहीं होती। लेकिन लिए मां की गोद परमात्मा का स्थान बन सकती है। खुद मां को जब भी होती है, तो पूरी अनुभव होती है। नहीं है वह अनुभव। वह ट्रस्ट ने उस गोद को इतना शांत, और विश्वास सदा थोड़ा-थोड़ा होता है, इसलिए हिस्सा मन का कटा इतने आनंद से भर दिया है। रहता है। रहस्य का अनुभव मन को इकट्ठा कर देता है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, जो इतनी श्रद्धा से, जैसे कि छोटा बेटा बाप का जितना सरल चित्त व्यक्ति हो, उतने रहस्य को अनुभव कर पाता | हाथ पकड़ ले और बेटा मां की गोद में सिर रखकर सो जाए और है। छोटे बच्चे इसीलिए, उनकी आंखों में, उनके उठने-बैठने, समझे कि अब दुनिया में कोई खतरा नहीं है, कोई इनसिक्योरिटी उनके खेलने में परमात्मा की झलक कहीं-कहीं से दिखाई पड़ती है। नहीं है, अब दुनिया में कोई मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, अब क्योंकि सारा जीवन रहस्य है। तितलियां उड़ रही हैं, और उनके बात खतम हो गई, अब वह निश्चित सो गया है, अब कोई चिंता लिए हीरे-जवाहरात उड़ रहे हैं। पत्थर खिसक रहे हैं, और उनके नहीं है-इस भांति जो मेरी बात को मानकर चलता है, वह सब लिए स्वर्ग का आनंद उतर रहा है। नदी बह रही है, और उनके लिए कर्मों से मुक्त हो जाता है। द्वार खुला है कुबेर के खजाने का। सब रहस्य है। लेकिन मेरी बात को मानकर चलता है। क्या कृष्ण का मतलब जेकब बोहमे ने कहा है कि जब मैं पहली दफे रहस्य के अनभव यह है कि जो किसी और की बात को मानकर चलता है. वह मक्त को उपलब्ध हुआ, तब मैंने कहा कि मैं भी क्या पागल था! यह नहीं होता? ऐसा मतलब लगाया जाता है; लगाएंगे ही। अनुयायी तो बचपन को ही फिर से पा लेना है। यह तो मैं फिर से बच्चा हो तो ऐसे अर्थ लगाएंगे ही। वे कहेंगे कि देखो, कृष्ण ने कहा है कि गया हूं। मेरी बात को मानकर जो चलता है, तो बाइबिल की बात मत जीसस से किसी ने पछा कि कौन लोग तम्हारे स्वर्ग के राज्य को मानना, नहीं तो भटक जाओगे; कुरान की बात मत मानना, नहीं पाने के अधिकारी होंगे? तो उन्होंने कहा, वे जो बच्चों की भांति | | तो भटक जाओगे। कृष्ण ने साफ कहा है कि जो मेरी बात मानकर फिर से हो जाएंगे। चलता है श्रद्धापूर्वक, वह कर्मों के जाल से मुक्त हो जाता है। इतनी तो बच्चे श्रद्धालु होते हैं। बूढ़े ज्यादा से ज्यादा विश्वासी हो | साफ बात और क्या? अब किसी और की मत मान लेनासकते हैं, बच्चे श्रद्धालु होते हैं। महावीर की मत मानना, बुद्ध की मत मानना। कभी देखा है, बच्चे को बाप का हाथ पकड़े हुए? बाप का हाथ | लेकिन यह बिलकुल गलत अर्थ है। कृष्ण के भीतर से जो कह पकड़कर बच्चा चलता है। उसका हाथ बाप के हाथ को पकड़े हुए, | रहा है कि मेरी बात मानकर जो चलता है, वह पहुंच जाता है, वही देखा है कभी! कितना ट्रस्ट, बाप के हाथ को छोटा-सा बच्चा | बुद्ध के भीतर से कहता है कि मेरी बात मानकर जो चलता है, वह पकड़े हुए, कितना भरोसा! बाप को खुद इतना भरोसा नहीं है कि | पहुंच जाता है। वही क्राइस्ट के भीतर से कहता है कि जो मेरी बात हाथ को संभाल पाएगा कि नहीं संभाल पाएगा; रास्ते का पता है मानकर चलता है, वह पहुंच जाता है। वही मोहम्मद के भीतर से या नहीं है! उसको खुद भी पता नहीं है कुछ भी। लेकिन बेटा उसके कहता है कि जो मेरी बात मानकर चलता है, वह पहुंच जाता है। हाथ को इतने ट्रस्ट...। श्रद्धा के लिए अगर अंग्रेजी में ठीक शब्द | वह जिस मैं की बात चल रही है, वह एक ही है। ये दरवाजे पच्चीस है, तो वह ट्रस्ट है-बिलीफ नहीं, फेथ नहीं-ट्रस्ट। बेटा हाथ | हैं, वह आवाज एक की है। इसलिए इस भ्रांति में मत पड़ना कि जो 426
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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