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________________ - गीता दर्शन भाग-1 AM है, श्रद्धा नहीं; क्योंकि वह ईसाई के घर में रखकर बड़ा किया गया | भी फर्क नहीं पड़ता है। बिना विश्वास के जीना मुश्किल है। होता, तो ईसाई होता। और एक आदमी आस्तिक है; यह विश्वास | | अविश्वास इतनी तकलीफ पैदा कर देता है कि आपको श्रद्धा की है, श्रद्धा नहीं। वह रूस में अगर पैदा हुआ होता, तो नास्तिक हो यात्रा करनी ही पड़ेगी। लेकिन आप विश्वास...। गया होता। जो हमें बाहर से मिल जाता है, वह विश्वास है। जो | | इसे थोड़ा दो-चार आयाम से देखना पड़े। और धार्मिक चित्त को हमारे भीतर से जन्मता है, वह श्रद्धा है। | इसे समझ लेना बहुत ही आधारभूत है। ___ इसलिए और तीसरी बात, विश्वास हमेशा मुर्दा होता है, डेड। विश्वास और अविश्वास दोनों ही तर्क से जीते हैं। विश्वास भी, श्रद्धा सदा जीवंत होती है, लिविंग। और मुर्दे आपको डुबा सकते | | अविश्वास भी, दोनों का भोजन तर्क है। नास्तिक तर्क देता है, हैं, पार नहीं करवा सकते। मरे हुए विश्वास सिर्फ डुबा सकते हैं, ईश्वर नहीं है। आस्तिक तर्क देता है, ईश्वर है। लेकिन दोनों तर्क पार नहीं करवा सकते। और मरे हुए विश्वास जंजीर बन सकते हैं,। देते हैं और दोनों का तर्क पर भरोसा है। सेंट एनसैन के आपने मुक्ति नहीं बन सकते। और मरे हुए विश्वास बांध सकते हैं, खोल | | ईश्वर के लिए प्रमाण सुने होंगे। सारी दुनिया के आस्तिकों ने, नहीं सकते। इसलिए कृष्ण जब कह रहे हैं, श्रद्धापूर्वक, तो ईश्वर है, इसके प्रमाण दिए हैं। नास्तिकों ने प्रमाणों का खंडन किया विश्वास को बिलकुल काट डालना; विश्वास से कुछ लेना-देना है कि ईश्वर नहीं है। विश्वास, अविश्वास दोनों ही तर्क से चलते कृष्ण का नहीं है। विश्वास–जिनके पास श्रद्धा नहीं है, वे अपने हैं। और श्रद्धा, श्रद्धा इस अनुभूति का नाम है कि तर्क ना-काफी को श्रद्धा का धोखा देते हैं विश्वास से। जैसे आपके पास असली है, नाट इनफ। तर्क पर्याप्त नहीं है, इस प्रतीति से श्रद्धा की शुरुआत मोती नहीं हैं, तो इमिटेशन के मोती गले में डालकर घूम लेते हैं। होती है। जिस मनुष्य को जीवन में गहरे देखकर ऐसा दिखाई पड़ता किसी को धोखा नहीं होता। मोती को तो धोखा होता ही नहीं। है कि तर्क की सीमा है और जीवन तर्क की सीमा के आगे भी है। उसको तो पता ही है! आपको भी धोखा नहीं होता। आपको भी | | जिस व्यक्ति को ऐसा दिखाई पड़ता है कि तर्क थोड़ी दूर तक चलता पता है। और जिनको आप धोखा दे रहे हैं, उनको धोखा देने से कोई है और फिर नहीं चलता। जिसे अनुभव होता है कि जीवन में बहुत प्रयोजन नहीं है। उनको कोई प्रयोजन नहीं है। विश्वास आरोपित | कुछ है जो तर्क के बाहर पड़ जाता है, जो तर्क में नहीं है। जीवन है, श्रद्धा जन्मती है। यह फर्क है। | खुद तर्क के बाहर है। जीवन खुद अतर्व्य है, इल्लाजिकल है। आप दूसरी बात, अगर श्रद्धा जन्मती है, तो आ कैसे जाएगी? विश्वास | न होते, तो आप किसी से भी नहीं कह सकते थे कि मैं क्यों नहीं तो उधार लिया जा सकता है, बारोड हो सकता है। सब बारोड है। हूं? आप हैं, तो आप किसी से पूछ नहीं सकते कि मैं क्यों हूं? कोई बाप से, कोई गुरु से, कोई कहीं से, कोई कहीं से उधार ले लेता | | जिंदगी बिलकुल अतर्क्ष्य है। जिंदगी के पास कोई तर्क नहीं है। है, विश्वास बना लेता है। बिना विश्वास के जीना बहुत मुश्किल है। | हैं तो हैं, नहीं हैं तो नहीं हैं। प्रेम अतर्व्य है, प्रार्थना भी अतर्व्य है। मुश्किल इसीलिए है कि अविश्वास में जीना मुश्किल है। जीवन में जो भी गहरा और महत्वपूर्ण है, वह तर्क से समझ में आता और इसलिए एक अदभुत घटना घटती है कि नास्तिक को हम | नहीं, पकड़ में आता नहीं, तर्क चुक जाता है और जीवन बाहर रह अविश्वासी कहते हैं। कहना नहीं चाहिए। नास्तिक पक्का विश्वासी | जाता है। ऐसे अनुभव से पहली बार श्रद्धा की ओर कदम उठते हैं। होता है ईश्वर के न होने में। नास्तिक भी अविश्वास में नहीं जीता, | | कैसे पता चलता है कि जीवन अतळ है? कैसे पता चलता है कि नकारात्मक, निगेटिव बिलीफ में जीता है। उसका भी पक्का बुद्धि थक जाती है और जीवन नहीं चुकता? आदमी कितना सोचता विश्वास होता है और वह भी लड़ने-मारने को तैयार हो जाता है। है, कितना सोचता है, फिर कहीं नहीं पहुंचता। सिद्धांत हाथ में आ अगर आप कहो कि ईश्वर है, तो उसके ईश्वर नहीं होने की धारणा | जाते हैं कोरे, राख; अनुभव कोई भी हाथ में नहीं आता। सब गणित को चोट लगे, तो वह भी लड़ने को तैयार हो जाता है। | हार जाते हैं; कुछ अनजाना पीछे शेष रह जाता है; अननोन सदा ही नास्तिक के अपने विश्वास हैं। आस्तिक से उलटे हैं, यह दूसरी | | पीछे शेष रह जाता है। जो हम जानते हैं, वह बहुत क्षुद्र है। जो हमारे बात है, पर उसके अपने विश्वास हैं। उनके बिना वह भी नहीं जानने के क्षद्र को घेरे हए है अनजाना, वह बहत विराट है। जीता। कम्युनिस्ट भी नहीं जीता बिना विश्वासों के। हां, उसके अठारहवीं सदी का वैज्ञानिक सोचता था कि सौ वर्ष में वह विश्वास और तरह के हैं। यह बिलकुल दूसरी बात है, इससे कोई घटना घट जाएगी कि दुनिया में जानने को कुछ भी शेष नहीं रहेगा। | 424
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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