SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - गीता दर्शन भाग-1-m अलग हो जाना था, जैसे पका हुआ फल वृक्ष से अलग हो जाता लोग रोक रहे थे, तभी विदा हो जाए; जब घर के लोग रोते हों, तभी है, जैसे सूखा पत्ता वृक्ष से गिर जाता है। न वृक्ष को खबर मिलती | | विदा हो जाए; जब घर के लोग कहते हों कि रुकें, अभी मत जाएं, है, न सूखे पत्ते को पता चलता, कब अलग हो गए। वह बहुत | तभी विदा हो जाए। यही ठीक क्षण है। वह अपने पीछे एक मधुर नेचरल रिनंसिएशन था। उसके कारण हैं। स्मृति छोड़ जाए। वह मधुर स्मृति घर के लोगों के लिए ज्यादा अभी भी पचहत्तर साल का बूढ़ा घर से टूट जाता है-अभी | प्रीतिकर होगी, बजाय आपकी कठिन मौजूदगी के।। भी। लेकिन न तो बूढ़ा टूटना चाहता है...। अभी भी पचहत्तर साल लेकिन वह चौथा चरण था। तीन चरण जिसने पूरे किए हों, और का बूढ़ा घर में बोझ हो जाता है। कोई कहता नहीं, सब अनुभव | | जिसने ब्रह्मचर्य का आनंद लिया हो, और जिसने काम का दुख करते हैं। बेटे की आंख से पता चलता है, बहू की आंख से पता | भोगा हो, और जिसने वानप्रस्थ होने की, वन की तरफ मुख रखने चलता है, घर के बच्चों से पता चलता है कि अब इस बूढ़े को विदा | | की अभीप्सा और प्रार्थना में क्षण बिताए हों, वह चौथे चरण में होना चाहिए। कोई कहता नहीं; शिष्टाचार कहने नहीं देता; लेकिन | अपने आप चुपचाप-चुपचाप-विदा हो जाता है। अशिष्ट आचरण सब कुछ प्रकट कर देता है। टूट जाता है, टूट ही नीत्से ने कहीं लिखा है, राइपननेस इज़ आल, पक जाना सब जाता है। लेकिन बूढ़ा भी हटने को राजी नहीं। वह भी पैर जमाकर कुछ है। लेकिन अब तो कोई नहीं पकता। पका हुआ आदमी भी जमा रहता है। और जितना हटाने के आंखों में इशारे दिखाई पड़ते | लोगों को धोखा देना चाहता है कि मैं अभी कच्चा हूं। हैं, वह उतने ही जोर से जमने की कोशिश करता है। बहुत बेहूदा मैंने सुना है कि एक स्कूल में शिक्षक बच्चों से पूछ रहा था कि है, एब्सर्ड है। एक व्यक्ति उन्नीस सौ में पैदा हुआ, तो उन्नीस सौ पचास में उसकी असल में वक्त है हर चीज का, जब जुड़े होना चाहिए, और जब | उम्र कितनी होगी? तो एक बच्चे ने खड़े होकर पूछा कि वह स्त्री है टूट जाना चाहिए। वक्त है, जब स्वागत है; और वक्त है, जब | कि पुरुष ? क्योंकि अगर पुरुष होगा, तो पचास साल का हो गया अलविदा भी है। समय का जिसे बोध नहीं होता, वह आदमी | | होगा। और अगर स्त्री होगी, तो कहना मुश्किल है कि कितने साल नासमझ है। पचहत्तर साल की उम्र ठीक वक्त है, क्योंकि तीसरी, | की हुई हो। तीस की भी हो सकती है, चालीस की भी हो सकती चौथी पीढ़ी जीने को तैयार हो गई है। और जब चौथी पीढ़ी जीने को है, पच्चीस की भी हो सकती है। तैयार हो गई, तो आप कट चुके जीवन की धारा से। अब जो नए लेकिन जो स्त्री पर लागू होता था, अब वह पुरुष पर भी लागू बच्चे घर में आ रहे हैं, उनसे आपका कोई भी तो संबंध नहीं है। | है। अब उसमें कोई फर्क नहीं है। पका हुआ भी कच्चे होने का आप उनके लिए करीब-करीब प्रेत हो चुके, घोस्ट हो चुके। अब | धोखा देना चाहता है। बूढ़ा आदमी भी नई जवान लड़कियों से आपका होना सिर्फ बाधा है। आपकी मौजूदगी सिर्फ जगह घेरती | | राग-रंग रचाना चाहता है। इसलिए नहीं कि नई लड़की बहुत है। आपकी बातें सिर्फ कठिन मालूम पड़ती हैं। आपका होना ही | | प्रीतिकर लगती है, बल्कि इसलिए कि वह अपने को धोखा देना बोझ हो गया है। उचित है कि हट जाएं; वैज्ञानिक है कि हट जाएं। चाहता है कि मैं अभी लड़का ही हूं। लेकिन नहीं, आप कहां हटकर जाएं ? खयाल ही भूल गया है। | मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बूढ़े लोग कम उम्र की स्त्रियों में खयाल इसलिए भूल गया है कि तीन चरण पूरे नहीं हुए। अन्यथा | । इसीलिए उत्सुक होते हैं कि वे भुलाना चाहते हैं कि हम बूढ़े हैं। बच्चे हटाते, उसके पहले आप हट जाते। और जो पिता बच्चों के | और अगर कम उम्र की स्त्रियां उनमें उत्सुक हो जाएं, तो वे भूल हटाने के पहले हट जाता है, वह कभी अपना आदर नहीं खोता है,। | जाते हैं कि वे बूढ़े हैं। अगर बटैंड रसेल अस्सी साल की उम्र में कभी अपना आदर नहीं खोता। जो मेहमान विदा करने के पहले बीस साल की लड़की से शादी करता है, तो इसका असली कारण विदा हो जाता है, वह सदा स्वागतपूर्ण विदा पाता है। जो मेहमान | | यह नहीं है कि बीस साल की लड़की बहुत आकर्षक है। अस्सी डटा ही रहता है जब तक कि घर के लोग पुलिस को न बुला लाएं, | | साल के बूढ़े को आकर्षक नहीं रह जानी चाहिए। और साधारण तब फिर सब अशोभन हो जाता है। इससे घर के लोगों को भी बूढ़े को नहीं, बड रसेल की हैसियत के बूढ़े को। मारे मुल्क में तकलीफ होती है, अतिथि को भी तकलीफ होती है और आतिथ्य | | अगर दो हजार साल पहले बड रसेल पैदा हुआ होता, तो अस्सी का भाव भी नष्ट होता है। ठीक समझदार आदमी वह है कि जब साल की उम्र में वह महर्षि हो जाता। लेकिन इंग्लैंड में वह अस्सी 394
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy