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________________ 9 वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक पुनर्स्थापना -AIR बहुत-सी बातें इंप्लाइड हैं, उसमें बहुत-सी बातें अंतर्गर्भित हैं। जैसे वृद्धावस्था में संन्यस्त हो जाएंगे, तो हमारी प्रतीक्षा व्यर्थ होने वाली महावीर ने अंतिम अवस्था में संन्यास नहीं लिया, बुद्ध ने अंतिम है। उसके कई कारण हैं। वृद्धावस्था में संन्यास तभी फलित हो अवस्था में संन्यास नहीं लिया। क्योंकि जिनके जीवन की पिछले सकता है, जब तीन आश्रम पहले गजरे हों, अन्यथा फलित नहीं हो जन्म की यात्रा, वहां पहुंच गई, जहां से इस जन्म में शुरू से ही | सकता। आप कहें कि वृक्ष में फूल आएंगे वसंत में। लेकिन वसंत संन्यास हो सकता है, वे पचहत्तर वर्ष तक प्रतीक्षा करें, यह बेमानी | | में फूल तभी आ सकते हैं, जब बीज बोए गए हों, जब खाद डाली है। यही जन्म सब कुछ नहीं है। हम इस जन्म में कोरे कागज, | गई हो, जब वर्षा में पानी भी पड़ा हो और गर्मी में धूप भी मिली टेबुलारेसा की तरह पैदा नहीं होते हैं, जैसा कि रूसो और सारे लोग | हो। न गर्मी में धूप आई, न वर्षा में पानी गिरा, न बीज बोए गए, मानते हैं। गलत मानते हैं। हम कोरे कागजकी तरह पैदा नहीं होते। न माली ने खाद दिया और वसंत में फूल की प्रतीक्षा कर रहे हैं! हम सब बिल्ट-इन-प्रोग्रैम लेकर पैदा होते हैं। हमने पिछले जन्म | ___चौथा आश्रम संन्यास फलित होता था, यदि तीन आश्रम में जो भी किया, जाना, सोचा, समझा है, वह सब हमारे साथ | | नियमबद्ध रूप से पहले गुजरे हों, अन्यथा फलित नहीं होगा। जन्मता है। इसलिए जीवन के साधारण क्रम में यह बात सच है कि ब्रह्मचर्य बीता हो पच्चीस वर्ष का, गार्हस्थ्य बीता हो पच्चीस वर्ष आदमी चौथी अवस्था में संन्यास को उपलब्ध हो, लेकिन जो लोग | का, वानप्रस्थ बीता हो पच्चीस वर्ष का, तब अनिवार्यरूपेण, पिछले जन्म से संन्यास का गहरा अनुभव लेकर आए हों, या गणित के हल की तरह, चौथे आश्रम का चरण उठता था। जीवन के रस से पूरी तरह डिसइल्यूजंड होकर आए हों, उनके लिए | आज तो कठिनाई है। आज तो तीन चरण का कोई उपाय नहीं कोई भी कारण नहीं है। लेकिन वे सदा अपवाद होंगे। | रहा। तो अब दो ही उपाय हैं। एक तो उपाय यह है कि हम संन्यास __इसलिए बुद्ध और महावीर ने अपवाद के लिए मार्ग खोजा। | के सुंदरतम फूल को-जिससे सुंदर फूल जीवन में दूसरा नहीं कभी-कभी नियम भी बंधन बन जाते हैं, उसके लिए हमें अपवाद खिलता-मुरझा जाने दें, उसे खिलने ही न दें। और या फिर हिम्मत छोड़ना पड़ता है। आइंस्टीन को अगर हम गणित उसी ढंग से | करें और जहां भी संभव हो सके, जिस स्थिति में भी संभव हो सके, सिखाएं, जिस ढंग से हम सबको सिखाते हैं, तो हम आइंस्टीन की | | संन्यास के फूल को खिलाने की कोशिश करें। शक्ति को जाया करेंगे। अगर हम मोजार्ट को संगीत उसी तरह ___ इसका यह मतलब नहीं है कि सारे लोग संन्यासी हो सकते हैं। सिखाएं, जिस तरह हम सबको सिखाते हैं, तो हम उसकी शक्ति असल में जिसके मन में भी आकांक्षा पैदा होती है संन्यास की, को बहत जाया करेंगे। मोजार्ट ने तीन साल की उम्र में संगीत में वह उसके प्राण उसे सचना दे रहे हैं कि उसके पिछले जन्मों में कुछ स्थिति पा ली, जो कि कोई भी आदमी अभ्यास करके तीस साल अर्जित है, जो संन्यास बन सकता है। में नहीं पा सकता है। तब मोजार्ट के लिए हमें अपवाद बनाना __ फिर मैं यह कहता हूं कि बुरे काम को करके सफल हो जाना पड़ेगा। बीथोवन ने सात साल में संगीत में वह स्थिति पा ली, जो | | भी बुरा है; अच्छे काम को करके असफल हो जाना भी बुरा नहीं कि संगीतज्ञ सत्तर साल की उम्र में नहीं पा सकते अभ्यास करके। है। एक आदमी चोरी करके सफल भी हो जाए, तो बुरा है; और तो बीथोवन के लिए हमें अलग नियम बनाना पड़ेगा। इनके लिए | एक आदमी संन्यासी होकर असफल भी हो जाए, तो बुरा नहीं है। हमें नियम वही नहीं देने पड़ेंगे। | अच्छे की तरफ आकांक्षा और प्रयास भी बहुत बड़ी घटना है। इसलिए हर नियम के अपवाद तो होते ही हैं। और अपवाद से और अच्छे के मार्ग पर हार जाना भी जीत है और बुरे के मार्ग पर नियम टूटता नहीं, सिर्फ सिद्ध होता है। एक्सेप्शन प्रूव्स दि रूल। जीत जाना भी हार है। और आज हारेंगे, तो कल जीतेंगे। इस जन्म वह जो अपवाद है, वह सिद्ध करता है कि अपवाद है, इसलिए शेष में हारेंगे, तो अगले जन्म में जीतेंगे। लेकिन प्रयास, आकांक्षा, सबके लिए नियम प्रतिकूल है। तो ऐसा नहीं है कि भारत में बचपन अभीप्सा होनी चाहिए। से संन्यास लेने वाले लोग न थे, वे थे, लेकिन वे अपवाद थे। फिर चौथे चरण में जो संन्यास आता था, उसकी व्याख्या और आज तो अपवाद को नियम बनाना पड़ेगा। क्यों बनाना बिलकुल अलग थी; और जिसे मैं संन्यास कहता हूं, उसकी पड़ेगा? वह इसलिए बनाना पड़ेगा, कि आज तो चीजें इतनी रुग्ण | | व्याख्या को मजबूरी में अलग करना पड़ा है—मजबूरी में, स्मरण और अस्तव्यस्त हो गई हैं कि अगर हम प्रतीक्षा करें कि लोग रखें। चौथे चरण में जो संन्यास आता था, वह पूरे जीवन से ऐसे 393
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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