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________________ ON वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक पुनर्स्थापना - है। लेकिन कृष्ण जब बोलते हैं, तो वे यह कह रहे हैं कि मैं, कुछ | | पर अगर हम बैठ गए, जिन पर अगर हम रुक गए, जिन पर अगर भी करने योग्य नहीं है, फिर भी किए चला जाता हूं; और कुछ भी | हम ठहर गए, तो हम पदार्थ के ही घेरे में बंद रह जाएंगे और पाने योग्य नहीं है, फिर भी दौड़ता हूं और चलता हूं। क्यों? | | परमात्मा के प्रकाश को कभी उपलब्ध न हो पाएंगे। इसलिए कि चारों ओर जो लोग हैं, मैं चाहूं तो सब छोड़ सकता हूं | इसलिए कृष्ण कहते हैं, मैं जिसे कि सब कुछ मिल गया, मैं करना, मैं चाहूं तो सब छोड़ सकता हूं पाना; लेकिन तब मुझे जिसने कि सब कुछ पा लिया, जिसके लिए अब कोई आकांक्षा देखकर वे बहुत से लोग, जिन्हें अभी पाने को बहुत कुछ शेष है, | | शेष नहीं रही, जिसके लिए अब कोई भविष्य नहीं है...। खयाल पाना छोड़ देंगे; और जिन्हें अभी करने को बहुत कुछ शेष है, करना | रहे, भविष्य निर्मित होता है आकांक्षाओं से, कल निर्मित होता है छोड़ देंगे। वासनाओं से। कल हम निर्माण करते हैं इसलिए कि आज बहुत इस बात को थोड़ा गहरे देखना जरूरी है। असल में जिसे अभी कुछ है, जो पाने को शेष रह गया। कृष्ण जैसे व्यक्ति के लिए कोई परमात्मा नहीं मिला, उसे बहुत कुछ पाने को शेष है। सच तो यह भविष्य नहीं है। सब कुछ अभी है, यहीं है। रुक जाना चाहिए। है कि जिसे परमात्मा नहीं मिला, उसे सभी कुछ पाने को शेष है। लेकिन बड़े मजे की बात है, कृष्ण जैसा व्यक्ति नहीं रुकता और उसने अभी जो भी पाया है, उसका कोई भी मूल्य नहीं है। और जिसे हम रुक जाते हैं। जिन्हें नहीं रुकना चाहिए, वे रुक जाते हैं; जिसे अभी मुक्ति नहीं मिली और जिसने आत्मा की स्वतंत्रता को अनुभव रुक जाना चाहिए, वह नहीं रुकता है। हम नासमझ रुकने वालों के नहीं किया, अभी उसे बहुत कुछ करने को शेष है। असल में अभी लिए, ठहर जाने वालों के लिए, पड़ाव को मंजिल, गलत रास्ते को तक उसने जो कुछ भी किया है, उससे वह कहीं भी नहीं पहुंचा है। सही रास्ता समझ लेने वालों के लिए कृष्ण जैसे व्यक्ति को करुणा लेकिन कृष्ण जैसा व्यक्ति, जिसके पाने की यात्रा पूरी हुई, करने से ही चलते रहना पड़ता है। की यात्रा पूरी हुई, जो मंजिल पर खड़ा है, अगर वह भी बैठ जाए, इसलिए कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से कि तू रुकेगा, तू ठहरेगा, तो तो हम रास्तों पर ही बैठ जाएंगे। खतरनाक है। खतरनाक दो कारणों से है। खुद अर्जुन के लिए भी हम तो बैठना ही चाहते हैं। हम तो उत्सुक हैं कि बैठने के लिए खतरनाक है। अर्जुन भी अभी वहां नहीं पहुंच गया है, जो मंजिल बहाना मिल जाए। हम तो आतुर हैं कि हमें कोई कारण मिल जाए है। अभी श्रम अपेक्षित है। अभी संकल्प की जरूरत है। अभी और हम यात्रा बंद कर दें। हम यात्रा बड़े बेमन से कर रहे हैं। हम साधना आवश्यक है। अभी कदम उठाने हैं, सीढ़ियां चढ़नी हैं। चल भी रहे हैं तो ऐसे जैसे कि बोझ की भांति चलाए जा रहे हैं। अभी मंदिर आ नहीं गया और प्रतिमा दूर है। अर्जुन के लिए भी जिंदगी हमारी कोई मौज का गीत नहीं, और जिंदगी हमारा कोई नृत्य | रुक जाना खतरनाक है। और अर्जुन के लिए खतरनाक है ही, पर नहीं है। जिंदगी हमारी वैसी है, जैसे बैल चलते हैं गाड़ी में जुते हुए, | वह एक ही व्यक्ति के लिए खतरनाक है। अर्जुन को देखकर पीछे ऐसे हम जिंदगी में जुते हुए चलते हैं। हम तो कभी भी आतुर हैं कि चलने वाले बहुत से लोग रुक जाएंगे। जब अर्जुन जैसा व्यक्ति मौका मिले और हम रुकें। | रुके, तो वे रुक जाएंगे। लेकिन अगर हम रुक जाएं, तो हम परमात्मा को पाने से ही रुक कृष्ण की सारी सक्रियता करुणा है। करुणा उन पर, जो अभी जाएंगे। क्योंकि अभी जो पाने योग्य है, वह पाया नहीं गया; अभी अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच गए हैं। उनके लिए कृष्ण दौड़ते रहेंगे जो जानने योग्य है. वह जाना नहीं गया। और जानने योग्य क्या है? कि उनमें भी गति आती रहे। उनके लिए कष्ण खोजते रहेंगे उसको जानने योग्य वही है, जिसको जान लेने के बाद फिर कुछ जानने को जिसे उन्होंने पा ही लिया है, ताकि वे भी खोज में लगे रहें। उनके शेष नहीं रह जाता है। और पाने योग्य क्या है? पाने योग्य वही है लिए कृष्ण श्रम करते रहेंगे उसके लिए, जो कि उनके हाथ में है, कि जिसको पा लेने के बाद फिर पाने की आकांक्षा ही तिरोहित हो। ताकि वे भी श्रम करते रहें, जिनके कि हाथ में अभी नहीं है। जाती है। मंजिल वही है, जिसके आगे फिर कोई रास्ता ही नहीं होता। इस सत्य को अगर हम ठीक से देख पाएं, तभी हम बुद्ध, जिस मंजिल के आगे रास्ता है, वह मंजिल नहीं है, पड़ाव है। | महावीर, कृष्ण या क्राइस्ट की सक्रियता को समझ पाएंगे। उनकी हम तो अभी पड़ाव पर भी नहीं हैं, रास्तों पर हैं। शायद ठीक | | सक्रियता और हमारी सक्रियता में एक बुनियादी भेद है। वे कुछ रास्तों पर भी नहीं हैं, गलत रास्तों पर हैं। ऐसे रास्तों पर हैं, जिन | | पाने के बाद भी सक्रिय हैं और हम कुछ पाने के पहले सक्रिय हैं। 387
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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