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________________ am समर्पित जीवन का विज्ञान - संपूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं और अन्न की उत्पत्ति क्योंकि प्रकृति मां है अगर, और आदमी उसका दुश्मन है, तो वृष्टि से होती है। और वृष्टि यज्ञ से होती है। और यह यज्ञ | अपनी मां से दोस्ती कितने दिन चलेगी? उस मां से भी दुश्मनी हो __कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। ही जाने वाली है। इस सूत्र के लिए मैं यह क्यों कह रहा हूं कि यह समझ लेना जरूरी है ? यह समझ लेना इसलिए जरूरी है कि जब लोग अत्यंत र स सूत्र को समझने के लिए कुछ और बातें भी भूमिका | सरल भाव से भरते हैं और जीवन को और अपने को तोड़कर नहीं र के रूप में समझनी जरूरी हैं। देखते-कोई गल्फ, कोई खाई नहीं देखते-तो फिर उस स्थिति ___ पूर्व और पश्चिम के दृष्टिकोण में एक बुनियादी फर्क | में सब कुछ परिवर्तित होता है और ढंग से। है। और चूंकि आज सारी दुनिया ही पश्चिम के दृष्टिकोण से जैसे कृष्ण कहते हैं, अन्न से बनता है मनुष्य। अन्न से बनता है प्रभावित है-पूर्व भी—इसलिए इस सूत्र को समझना बहुत कठिन मनुष्य। हम कहेंगे, अन्न से? बड़ी मैटीरियलिस्ट, बड़ी भौतिकवादी हो गया है। बात कहते हैं कृष्ण। और कृष्ण जैसे आध्यात्मिक व्यक्ति से ऐसी पूर्व ने सदा ही प्रकृति को और मनुष्य को दुश्मन की तरह नहीं बात! फिर वह पश्चिम का दृष्टिकोण दिक्कत देता है। असल में लिया, मित्र की तरह लिया। प्रकृति को हमने कहा मां, पृथ्वी को पश्चिम कहता है कि यह सब पदार्थ है। पूर्व तो कहता ही नहीं कि हमने कहा माता, आकाश को हमने कहा पिता। यह सिर्फ काव्य पदार्थ कुछ है। पूर्व तो कहता है, सभी परमात्मा है। अन्न भी। अन्न नहीं है, यह एक दृष्टि है, जिसमें हम जीवन को समग्रीभूत एक भी पदार्थ नहीं है, वह भी जीवंत परमात्मा है। परिवार मानते हैं, इस सारे विश्व को एक परिवार मानते हैं। इसलिए कृष्ण जब कहते हैं, अन्न से निर्मित होता है मनुष्य, तो इसलिए हमने कभी प्रकृति को जीतने की भाषा नहीं सोची। कोई इस भूल में न पड़े कि वे वही कह रहे हैं जैसा कि भौतिकवादी कांकरिंग दि नेचर! पश्चिम में प्रकृति और आदमी के बीच कहता है कि बस खाना-पीना, इसी से निर्मित होता है; मिट्टी, बुनियादी शत्रुता की दृष्टि है। इसलिए वे कहते हैं, जीतना है प्रकृति पदार्थ, तत्व, इन्हीं से निर्मित होता है। वे यह नहीं कह रहे हैं। यहां को। अब मां को कोई जीतता नहीं! लेकिन पश्चिम में प्रकृति और मामला बिलकुल उलटा है। यहां वे यह कह रहे हैं कि अन्न से जीवन और जगत और मनष्य के बीच एक शत्रता का भाव निर्मित होता है मनष्य: और जब अन्न से मनष्य निर्मित होता है. तो है-जीतना है, लड़ना है, हराना है। अन्न भी जीवंत है, जीवन है। अन्न भी पदार्थ नहीं है। और अन्न बट्रेंड रसेल की एक किताब है, कांक्वेस्ट आफ नेचर। पश्चिम | आता है वृष्टि से। वह आता है वर्षा से। वर्षा न हो, तो अन्न न हो। का कोई दार्शनिक लिख सकता है, प्रकृति की विजय। लेकिन कोई | यहां वे जोड़ रहे हैं, जीवन और प्रकृति को गहरे में। कणाद, कोई कपिल, कोई महावीर, कोई बुद्ध, कोई कृष्ण, पूर्व का वे कहते हैं, अन्न आता है वर्षा से। और वर्षा कहां से आती है? कोई भी दार्शनिक नहीं कह सकता, प्रकृति की विजय। क्योंकि हम | | अब वर्षा कहां से आती है? कृष्ण कहते हैं, यज्ञ से। वैज्ञानिक प्रकृति के ही तो हिस्से हैं, अंश हैं। उसकी विजय हम कैसे करेंगे? | कहेगा, बेकार की बात कर रहे हैं! वर्षा और यज्ञ से? पागल हैं! वह विजय वैसा ही पागलपन है, जैसे मेरा हाथ सोचे, शरीर की वैज्ञानिक कहेगा, वर्षा! वर्षा यज्ञ से नहीं आती, वर्षा बादलों से विजय कर ले। पागलपन है। मेरा हाथ शरीर की विजय कैसे | | आती है। लेकिन कृष्ण पूछना चाहेंगे कि बादल कहां से आते हैं? करेगा? मेरा हाथ मेरे शरीर का एक हिस्सा है। मेरा हाथ मेरा शरीर | विज्ञान उत्तर देता चला जाएगा, समुद्र से आता है, नदी से आता है। ही है। हाथ लड़ेगा किससे? जीतेगा किससे? जीतने की भाषा ही | | लेकिन अंततः सवाल यह है कि क्या मनुष्य में और आकाश में खतरनाक है। चलने वाले बादलों के बीच कोई आत्मिक संबंध है या नहीं है? लेकिन पश्चिम कांफ्लिक्ट, द्वंद्व की भाषा में सोचता है। वह कृष्ण जब कहते हैं कि वर्षा आती है यज्ञ से, तो वे यह कह रहे सोचता है, प्रकृति और हम दुश्मन हैं। यह बड़े आश्चर्य की बात हैं कि वर्षा और हमारे बीच भी संबंध है। वर्षा हमारे लिए आती है; है। और इसलिए पश्चिम में अगर बेटा बाप का दुश्मन हुआ जा हमारी कामनाओं, हमारी आकांक्षाओं, हमारी भूख, हमारी प्यास रहा है, तो ठीक कोरोलरी है। उसका परिणाम होने वाला है। को पूरा करने आती है। वे यह कह रहे हैं कि हमारी प्रार्थनाएं सुनकर 361]
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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