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________________ गीता दर्शन भाग - 14 में किसी ने एक महल खड़ा कर लिया, तो सुखी नहीं हो पाते। किसी की पत्नी मर गई है, तो आप दुखी हो पाते हैं; लेकिन किसी को सुंदर पत्नी मिल गई है, तो आप फिर भी दुखी होते हैं, सुखी नहीं हो पाते। दूसरे के सुख में सुख अनुभव करना बहुत बड़ा आत्मिक फैलाव है। लेकिन इससे भी बड़ा फैलाव तो तब होगा, जब हम दूसरे को आनंद देने में भी समर्थ होंगे। यह तो दूसरे का अपना आनंद है, उसमें हम आनंदित हों, तो भी आत्मा बड़ी होती है; दूसरे को आनंद देना तो और भी बड़ी घटना है। बड़ी, जिसको कहें, एक्सपैंशन आफ कांशसनेस, चेतना का विस्तार है। चेतना का विस्तार होता है आनंद को देने से। और जब चेतना का विस्तार होता है, तो आपका परमात्मा से आनंद लेने का आयतन बढ़ जाता है। जितनी बड़ी आत्मा है आपके पास, उतनी ही परमात्मा की वर्षा आप पर हो सकती है। छोटी-सी आत्मा है, छोटा-सा पात्र है, तो उतनी वर्षा होती है। आत्मा बड़ी हो जाती है, तो उतना बड़ा । जिस दिन किसी के पास पूरे ब्रह्मांड जैसी आत्मा हो जाती है, तो ब्रह्म का सारा आनंद उस पर बरस पड़ता है। पात्रता चाहिए। लेकिन ध्यान रहे, दुख में उलटा होता है। जब आप किसी को दुख देना चाहते हैं, तो आप छोटे हो जाते हैं। आपने कभी दुख दिया हो, तो आपको पता चलेगा, कि एक संकोच का, फिजिकल संकोच का पता चलता है; भीतर कुछ सिकुड़ जाता है। किसी को मारें एक चांटा, तो आपको पता लगेगा कि कोई चीज भीतर सिकुड़ गई है। किसी के घाव पर मलहम पट्टी रखें, और आपकोफिजिकली मैं कह रहा हूं – भौतिक रूप से आपको अनुभव होगा कि भीतर कोई चीज फैल गई, समथिंग एक्सपैंडिंग। रास्ते पर गिर पड़े किसी को उठाएं और भीतर देखें, तो आपको पता लगेगा, कोई चीज बड़ी हो गई। किसी की छाती में छुरा भोंक दें, तो आपको पता लगेगा, भीतर कोई चीज एकदम छोटी हो गई। दुख जब आप दूसरे को देते हैं, तब आप एकदम सिकुड़ जाते हैं। और जितने सिकुड़ उतना ही आनंद पाने में असमर्थ हो जाते हैं। अब यह बड़े मजे की बात है कि आनंद के लिए बड़ा हृदय चाहिए और दुख के लिए छोटा हृदय चाहिए। दुख छोटे हृदय को पात्र बनाता है आनंद बड़े हृदय पात्र बनाता है। दुख चूहों जैसा है, छोटी-छोटी पोलों में प्रवेश करता है। जितना छोटा हृदय होता है, दुख उतने जल्दी प्रवेश करता है। क्योंकि जितना छोटा हृदय रहता है, उतना ही कम प्रकाशित है। वहां प्रकाश मुश्किल है पहुंचना । अंधेरा, गंदगी, वह सब वहां होगी । और जब आप दूसरे को दुख देते चले जाते हैं, तो धीरे-धीरे | हृदय सिकुड़कर पत्थर की भांति कड़ा हो जाता है। हम ऐसे ही नहीं | कहते हैं भाषा में कि फलां आदमी पाषाण हृदय है; हम ऐसे ही नहीं कहते कि पत्थर जैसा उसका हृदय है! क्यों? पत्थर जैसे हृदय में क्या बात होती है? पत्थर में बिलकुल भी जगह नहीं होती प्रवेश की। ठोस, उसमें कहीं से कोई चीज प्रवेश नहीं कर सकती। जितना | हृदय पत्थर जैसा हो जाता है - और दूसरे को दुख देने में पंत्थर जैसा हो ही जाता है। दूसरे को दुख देने के लिए पत्थर जैसा होना | जरूरी है, अन्यथा दूसरे को दुख नहीं दे सकते। और जितने पथरीले हो जाएंगे, उतने ही आनंद को पाने की क्षमता क्षीण हो जाएगी। | दुख है क्या ? आनंद को पाने की जो अक्षमता है, आनंद को पाने की जो इनकैपेसिटी है, जो अपात्रता है, वही दुख है । जितना हम कम आनंद को पा सकते हैं, उतने दुखी हो जाते हैं। और जितना हम दुख बांटते हैं, उतने दुखी होते चले जाते हैं। क्योंकि कोई दुख तो लेता नहीं, दुख लौट लौटकर आ जाता है। हर जगह द्वार बंद | मिलते हैं। और हृदय क्रोधित होता है, और दुख लौट आता है। और हृदय क्रोधित होता है, और हम बांटने जाते हैं, और दरवाजे बंद होते चले जाते हैं। आखिर में दुखी आदमी पाता है, आइलैंड बन गया, अकेला रह गया, लोनली हो गया, कोई नहीं है उसका संगी-साथी | दुख में कोई मित्र होता है ? दुख में कोई संगी-साथी होता है ? दुख में आप अकेले हो जाते हैं। एक पंक्ति: याद आती है बचपन में पढ़ी हुई । एक आंग्ल | कवि की पंक्ति है, रोओ और तुम अकेले रोते हो, वीप एंड यू वीप एलोन; हंसो और सारा जगत तुम्हारे साथ हंसता है, लाफ एंड दि होल वर्ल्ड लाफ्स विद यू | देखें करके : रोओ और तुम अकेले रोते हो, हंसो और सारा जगत तुम्हारे साथ हंसता है। जितना दुखी आदमी, उतना अकेला रह जाता है। जितना आनंदित आदमी, उतना ही सबके साथ एक हो जाता है। इसलिए | दुख बांटा नहीं जा सकता, बांटा जाता है। आनंद बांटा जा सकता है, बांटा नहीं जाता है। आनंद जो बांटता है, उसका आनंद बढ़ | जाता है। दुख जो बांटता है, उसका दुख बढ़ जाता है। 360 अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ।। १४ ।।
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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