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m परमात्म समर्पित कर्म AM
परमात्मा को देखते हैं, कितना एब्सेंट है! जगत बहुत प्रेजेंट है। उस फकीर ने कहा, यह तो ठीक, लेकिन अब जब तुम दे ही रहे संसार बहुत मौजूद है और परमात्मा बिलकुल गैर-मौजूद है। हो, तो थोड़ी बात और दे दो। और क्या? पहले तो तुमने कुछ भी असल में जिसके पास अहंकार नहीं, वह मौजूद हो भी कैसे सकता न मांगा! उसने कहा, पहले मांगने की कोई जरूरत न थी। लेकिन है! उसके मौजूद होने का कोई उपाय भी तो नहीं है, वह गैर-मौजूद | | एक चीज जहां मिले, वहां चीजों की श्रृंखला शुरू हो जाती है। एक ही हो सकता है। उसकी एब्सेंस ही उसकी प्रेजेंस है; उसकी | | चीज और दे जाओ। वह चीज क्या? अनुपस्थिति ही उसकी मौजूदगी है।..
उस फकीर ने कहा, यह और जोड़ दो इसमें कि इसका मुझे पता मैंने सुना है, एक ईसाई फकीर पर देवता प्रसन्न हो गए—कहानी | | न चले। मुरदा जिंदा हो, हो; लेकिन मुझे पता न चले कि जिंदा हो है और उन्होंने आकर उसके पैर पकड़ लिए, देवताओं ने, उन्होंने | गया। बीमार ठीक हो, हो; लेकिन मुझे पता न चले। क्योंकि अब कहा कि हम तुझे कोई वरदान देने आए हैं। मांग ले, तुझे जो कुछ वापस मेरे मैं को बुलाने की पीड़ा और नर्क में मैं नहीं पड़ना चाहता मांगना हो। तो उस फकीर ने कहा, बड़ी गलती की, बड़ी देर से | | हूं। अब तुम मुझे क्षमा कर दो। यह वरदान खतरनाक है। जब मुरदा आए। जब मेरे पास मांग थी, तब तुम्हारा कोई पता न चला; और जिंदा होगा, तो मुझे पता न चल जाए कि मैंने जिंदा किया है। तो अब जब मेरी कोई मांग नहीं रह गई, तब तुम आए हो! अब तो तुम ऐसा करो कि यह वरदान मुझे मत दो, मेरी छाया को दे दो। कुछ मांगने को नहीं बचा, क्योंकि मांगने वाला ही नहीं बचा। अब मेरी छाया किसी मुरदे पर पड़ जाएगी, वह जिंदा हो जाएगा, तो मुझे तुम व्यर्थ परेशान हो रहे हो। तुम किससे कह रहे हो? उन्होंने कहा, | | पता ही नहीं चलेगा। छाया पीछे पड़ेगी, मुरदा ठीक हो जाएगा, हम तुम से कह रहे हैं! उस फकीर ने कहा, लेकिन मैं तो अब हूं | फूल खिल जाएंगे; मुरझाए हुए पौधे ठीक हो जाएंगे, मैं भागता नहीं; तुम परमात्मा से ही पूछ लेना, अब तो वही है। रहूंगा छाया से। कृपा करके तुम यह वरदान मेरी छाया को दे दो।
लेकिन ऐसे आदमी पर देवता और प्रसन्न हो गए। उन्होंने परमात्मा कहीं दिखाई नहीं पड़ता, सिर्फ उसकी छाया बिलकुल उसके पैर ही पकड़ लिए और कहा कि कुछ मांगना ही | | कभी-कभी कहीं-कहीं दिखाई पड़ती है। सिर्फ उसकी छाया। इतना पड़ेगा। उसने कहा, लेकिन अब मांगे कौन? किससे मांगे? और | सारा जगत उसकी छाया से चलता है।
अगर मैं मांगंगा, तो वह सबत होगा इस बात का कि परमात्मा पर कृष्ण अर्जन से यही कह रहे हैं, त छाया भर हो जा, इस मैं को मेरा भरोसा नहीं। जो उसे देना होगा, देगा; जो उसे नहीं देना होगा, | जाने दे। तू जी, श्वास ले, कर्म कर। भाग मत। क्योंकि भागने में नहीं देगा। जो उचित होगा, वह होगा। जो उचित नहीं होगा, वह भी तेरा अहंकार तो बना ही रहेगा कि मैं बच निकला, मैं भाग नहीं होगा। असल में जो होगा, वह उचित होगा। और जो नहीं | निकला। मैं हूं। मैंने अपने को बंधन से बचा लिया, कर्म से बचा होगा, वह अनुचित होगा। इसलिए तुम जाओ। तुम गलत आदमी | लिया। तेरा मैं तो जाएगा नहीं; बंधन मौजूद होगा। तू तो इतना ही के पास आ गए हो।
भर कर कि मैं को छोड़ दे और यज्ञरूपी कर्म में प्रवृत्त हो जा। जैसे लेकिन उन्होंने कहा कि हम ऐसे आदमी की तलाश में रहते हैं; | | पूरा परमात्मा जगत को यज्ञरूपी कर्म में निर्मित कर रहा है, ऐसे ही जो मांगता है, उसके पास तो हम कभी नहीं जाते। जो नहीं मांगता, | | तू भी उसका एक हिस्सा हो जा, तो तू मुक्त हो जाता है। हम उसके पास आते हैं। जो होता है, उसके पास तो हम कभी नहीं जाते, क्योंकि उसके भीतर जगह ही नहीं होती हमारे आने लायक। जो नहीं हो जाता है, हम उसके भीतर आते हैं। हम आ गए हैं। तुम
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । जरूर मांगो! उस फकीर ने कहा, अब तुम नहीं मानते, तुम्हें कुछ | परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ।।११।। देना हो तो दे जाओ। मेरा मांगने का कोई सवाल नहीं है। तथा तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो और
तो उन्होंने कहा, हम तुम्हें एक वरदान देते हैं कि तुम अगर मुरदे | | वे देवता लोग तुम लोगों की उन्नति करें। इस प्रकार आपस को छु दोगे, तो वह जिंदा हो जाएगा। अगर तुम बीमार पर हाथ रख में कर्तव्य समझकर उन्नति करते हुए परम कल्याण को दोगे, तो वह स्वस्थ हो जाएगा। अगर तुम मुरझाए फूल की तरफ
प्राप्त होओगे। देख दोगे, तो वह फिर से खिल जाएगा।
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